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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

सहायक


   कुछ महिलाओं ने मिलकर धन-संग्रह करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था, और वे उस कार्यक्रम की तैयारियों को अन्तिम रूप दे रही थीं। वे भारत से थीं, परन्तु अब अमेरिका में आकर रहने लगी थीं। परन्तु अपने मूल देश के प्रति उनका लगाव और चिंता बनी हुई थी। जब उन्होंने भारत में मसीहियों द्वारा "औटिस्टिक" बच्चों के लिए चलाए जा रहे एक स्कूल की कठिन आर्थिक परिस्थितियों के बारे में सुना, तो उन्होंने सहायाता करने के लिए कुछ करना ठान लिया, और यह कार्यक्रम आयोजित किया।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में हम नहेम्याह के बारे में पढ़ते हैं। वह इस्त्राएल से बन्धुआ बना कर ले जाए लोगों में से एक था, परन्तु अब राजा का पिलानेहारा था और उस समय और स्थान के सबसे ताकतवर व्यक्ति, राजा, का विश्वासपात्र था। नहेम्याह ने अपनी आरामदायक परिस्थिति को अपने देश-वासियों के प्रति चिंता के आड़े नहीं आने दिया। उसने जब यरुशलेम से लौट कर आए लोगों से वहाँ की दुर्दशा के बारे में सुना (नहेम्याह 1:2), तो उसे मालुम पड़ा कि, "...जो बचे हुए लोग बन्धुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं" (पद 3)।

   यह सुनकर नहेम्याह का हृदय टूट गया; और उसने विलाप, उपवास और प्रार्थना की, और परमेश्वर आग्रह किया कि वहाँ की उस दुर्दशा के लिए कोई समाधान दे (पद 4)। उसकी प्रार्थना के उत्तर में परमेश्वर ने नहेम्याह को इस योग्य किया कि वह यरुशलेम को लौट सके और उसके पुनःनिर्माण के कार्यों का नेतृत्व करे (नहेम्याह 2:1-8)। नहेम्याह अपने लोगों के लिए महान कार्य कर सका, क्योंकि उसने परमेश्वर से महान बातें माँगीं, और परमेश्वर पर उन बातों को करने के लिए भरोसा भी किया।

   प्रार्थना करें कि परमेश्वर आपकी आँखें भी आप के आस-पास के लोगों की आवश्यकताओं के लिए खोले और आपको ऐसा हृदय दे जिससे आप परमेश्वर के सामर्थ्य और सहायता से एक उत्साही तथा रचनात्मक समस्या-निवारक बन सकें, जो दूसरों के लिए आशीष का कारण हो। - पोह फैंग चिया


जो परमेश्वर के साथ चलते हैं वे औरों की आवश्यकताओं से भागेंगे नहीं।

तब राजा उन्हें उत्तर देगा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया। - मत्ती 25:40

बाइबल पाठ: नहेम्याह 1:1-11
Nehemiah 1:1 हकल्याह के पुत्र नहेमायाह के वचन। बीसवें वर्ष के किसलवे नाम महीने में, जब मैं शूशन नाम राजगढ़ में रहता था, 
Nehemiah 1:2 तब हनानी नाम मेरा एक भाई और यहूदा से आए हुए कई एक पुरुष आए; तब मैं ने उन से उन बचे हुए यहूदियों के विषय जो बन्धुआई से छूट गए थे, और यरूशलेम के विष्य में पूछा। 
Nehemiah 1:3 उन्होंने मुझ से कहा, जो बचे हुए लोग बन्धुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं। 
Nehemiah 1:4 ये बातें सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और कितने दिन तक विलाप करता; और स्वर्ग के परमेश्वर के सम्मुख उपवास करता और यह कह कर प्रार्थना करता रहा। 
Nehemiah 1:5 हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य ईश्वर! तू जो अपने प्रेम रखने वाले और आज्ञा मानने वाले के विष्य अपनी वाचा पालता और उन पर करुणा करता है; 
Nehemiah 1:6 तू कान लगाए और आंखें खोले रह, कि जो प्रार्थना मैं तेरा दास इस समय तेरे दास इस्राएलियों के लिये दिन रात करता रहता हूँ, उसे तू सुन ले। मैं इस्राएलियों के पापों को जो हम लोगों ने तेरे विरुद्ध किए हैं, मान लेता हूँ। मैं और मेरे पिता के घराने दोनों ने पाप किया है। 
Nehemiah 1:7 हम ने तेरे साम्हने बहुत बुराई की है, और जो आज्ञाएं, विधियां और नियम तू ने अपने दास मूसा को दिए थे, उन को हम ने नहीं माना। 
Nehemiah 1:8 उस वचन की सुधि ले, जो तू ने अपने दास मूसा से कहा था, कि यदि तुम लोग विश्वासघात करो, तो मैं तुम को देश देश के लोगों में तितर बितर करूंगा। 
Nehemiah 1:9 परन्तु यदि तुम मेरी ओर फिरो, और मेरी आज्ञाएं मानो, और उन पर चलो, तो चाहे तुम में से निकाले हुए लोग आकाश की छोर में भी हों, तौभी मैं उन को वहां से इकट्ठा कर के उस स्थान में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने अपने नाम के निवास के लिये चुन लिया है। 
Nehemiah 1:10 अब वे तेरे दास और तेरी प्रजा के लोग हैं जिन को तू ने अपनी बड़ी सामर्थ और बलवन्त हाथ के द्वारा छुड़ा लिया है। 
Nehemiah 1:11 हे प्रभु बिनती यह है, कि तू अपने दास की प्रार्थना पर, और अपने उन दासों की प्रार्थना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपने दास का काम सफल कर, और उस पुरुष को उस पर दयालु कर। (मैं तो राजा का पियाऊ था।) 

एक साल में बाइबल: 
  • ज़कर्याह 9-12
  • प्रकाशितवाक्य 20