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शनिवार, 25 मार्च 2017

दृष्टिकोण


   मैं समय निकाल कर दो वृद्ध महिलाओं से मिलने जाया करती हूँ। उन में से एक को कोई आर्थिक घटी या चिंता नहीं है, अपनी उम्र के अनुसार वह स्वस्थ है, और अपने ही घर में रहती है। परन्तु उसके पास कहने के लिए सदा ही कुछ ना कुछ नकारात्मक होता है। दूसरी महिला गठिया से अपंग और भूल जाने वाली है। वह साधारण से स्थान पर रहती है, और अपने आप को स्मरण दिलाते रहने के लिए अपने कार्य एक पुस्तिका में लिखती रहती है, जिसे वह अपने पास रखती है। उससे मिलने जो भी आता है, उससे उस महिला के पहले शब्द होते हैं "परमेश्वर मेरे साथ बहुत भला है।" पिछली बार जब मैं उस महिला से मिलने गया था, तो उसकी स्मरण पुस्तिका उसे लौटाते समय मेरा ध्यान पिछले दिन के विषय में लिखी उसकी टिप्पणी पर गया, जहाँ उसने लिखा था, "कल दोपहर के भोजन पर बाहर आमंत्रण है! अद्भुत! जीवन का एक और अच्छा दिन।"

   परमेश्वर के वचन बाइबल में, प्रभु यीशु के जन्म के समय में, हन्नाह नामक परमेश्वर की एक भक्त थी, जो कठिन परिस्थितियों में रहती थी (लूका 2:36-37)। वह बहुत पहले विधवा हो गई थी और संभवतः निःसन्तान थी। वह अपने आप को निर्बल और निरुद्देश्य समझ सकती थी, परन्तु उसका दृष्टिकोण भिन्न था। उसका ध्यान परमेश्वर और उसकी सेवकाई की ओर, तथा लालसा आने वाले जगत के उद्धारकर्ता के प्रति थी। इन बातों में तल्लीन, वह परमेश्वर के कार्यों - प्रार्थना करना, उपवास रखना और जो कुछ उसने परमेश्वर से सीखा था उसे दूसरों को सिखाने में व्यस्त रहती थी।

   इतने वर्षों से उस आने वाले उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा में लगे, अब उसकी आयु अस्सी वर्ष से अधिक की हो गई थी, परन्तु उसने अपना दृष्टिकोण नहीं बदला था, वह निरन्तर यही सब करती रहती थी। अब परमेश्वर का समय आ गया, और जब यहूदियों की रीति के अनुसार शिशु प्रभु यीशु को मन्दिर में लाया गया, तो हन्नाह को भी उसे देखने का अवसर मिल गया, वर्षों की उसकी धैर्यपूर्ण साधना पूरी हो गई। जगत के उद्धारकर्ता को देखकर उसका मन आनन्द और स्तुति से भर उठा, उसने तुरंत ही परमेश्वर की आराधना की, और फिर इस सुसमाचार को दूसरों तक पहुँचाने में लग गई; कैसा विलक्षण तथा शिक्षाप्रद धैर्य एवं दृष्टिकोण!

   आज परिस्थितियों के कारण आपका दृष्टिकोण कैसा है - हर बात में परमेश्वर के प्रति धन्यवादी और आनन्दित रहने वाला, या कुड़कुड़ाते रहने वाला। - मैरियन स्ट्राउड


परमेश्वर की योजना तथा हमारे उत्तरदायित्वों, 
दोनों पर नज़र बनाए रखना कठिन होता है,
 परन्तु इन दोनों का जहाँ मिलन होता है, 
वही सर्वोत्तम स्थान है।

मैं यहोवा की बाट जोहता हूं, मैं जी से उसकी बाट जोहता हूं, और मेरी आशा उसके वचन पर है; - भजन 130:5

बाइबल पाठ: लूका 2:36-40
Luke 2:36 और अशेर के गोत्र में से हन्नाह नाम फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन थी: वह बहुत बूढ़ी थी, और ब्याह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी। 
Luke 2:37 वह चौरासी वर्ष से विधवा थी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर कर के रात-दिन उपासना किया करती थी। 
Luke 2:38 और वह उस घड़ी वहां आकर प्रभु का धन्यवाद करने लगी, और उन सभों से, जो यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोहते थे, उसके विषय में बातें करने लगी। 
Luke 2:39 और जब वे प्रभु की व्यवस्था के अनुसार सब कुछ निपटा चुके तो गलील में अपने नगर नासरत को फिर चले गए।
Luke 2:40 और बालक बढ़ता, और बलवन्‍त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था। 

एक साल में बाइबल: 
  • यहोशू 19-21
  • लूका 2:25-52