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गुरुवार, 5 जनवरी 2017

सहायक और शान्ति-दाता


   जब हमारी बेटी और उसके मंगेतर के पास उनके विवाह के उपहार आने लगे, तो यह उनके लिए बड़े आनन्द का समय था। वे प्रत्येक उपहार को खोलकर उसे यथास्थान रखते जाते थे। उन्हें मिले उपहारों में से एक थी एक अल्मारी जिसे बनाकर खड़ा करने के लिए उसके विभिन्न भागों को आपस में जोड़ना था। क्योंकि उन दोनों के पास करने के लिए और भी बहुत से कार्य थे इसलिए मैंने इच्छा प्रकट की कि उस अलमारी को मैं जोड़कर बना दूँगा। यह करने के लिए मुझे कुछ घण्टे लगे, परन्तु यह करना अपेक्षा से कहीं अधिक सरल निकला। अलमारी के लिए लकड़ी के विभिन्न भाग पहले से ही काट कर तैयार किए हुए थे; उन में पेच लगाकर आपस में कसने के लिए सही स्थानों पर छेद भी बने हुए थे, उन भागों को जोड़ने के लिए आवश्यक सभी चीज़ें भी साथ ही दी गई थीं और उन सबको एक साथ बैठा कर अलमारी बनाने के निर्देश भी बिलकुल स्पष्ट तथा सरल थे।

   दुर्भाग्यवश जीवन सामान्यतः ऐसा नहीं होता है। ना तो जीवन की परिस्थितियों के साथ उन से निपटने के सरल और स्पष्ट निर्देश आते हैं, और ना ही हमें समस्याओं को सुलझाने के लिए आवश्यक वस्तुएं सरलता से एक साथ मिल पाती हैं। हमें परिस्थितियों और समस्याओं का सामना बिना यह जाने करने पड़ता है कि हम किस में कदम बढ़ा रहे हैं और उससे निकल पाने के लिए क्या चाहिए होगा। कठिन समयों में हम बड़ी सरलता से अपने आप को अभिभूत हुआ पा सकते हैं।

   परन्तु हम मसीही विश्वासियों को अपनी किसी भी परिस्थिती या समस्या का सामना अकेले करने की कोई आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर चाहता है कि हम अपनी हर बात, हर परेशानी, हर आवश्यकता को उसके पास लेकर आएं; उसके बारे में उससे चर्चा करें, उसकी सलाह लें: "किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी" (फिलिप्पियों 4:6-7)।

   हमारा उद्धारकर्ता प्रभु, हमारी हर बात, हर समस्या, हर परिस्थिती, हर आवश्यकता को जानता और समझता है; और सदा हमें सलाह और शान्ति देने के लिए तैयार रहता है; प्रभु यीशु हमें कभी ना छोड़ने वाला हमारा सहायक और शान्तिदाता है जो हमें सदा सही मार्गदर्शन देता है, सदा हमारी भलाई के लिए कार्य करता है। -  बिल क्राउडर


शान्ति में रहने के लिए अपनी प्रत्येक चिन्ता परमेश्वर को सौंप दें।

इसलिये परमेश्वर के बलवन्‍त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्‍ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उसको तुम्हारा ध्यान है। - 1 पतरस 5:6-7

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 4:4-13
Philippians 4:4 प्रभु में सदा आनन्‍दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्‍दित रहो। 
Philippians 4:5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है। 
Philippians 4:6 किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। 
Philippians 4:7 तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी।
Philippians 4:8 निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्‍हीं पर ध्यान लगाया करो। 
Philippians 4:9 जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्‍हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्‍ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।
Philippians 4:10 मैं प्रभु में बहुत आनन्‍दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्‍चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 
Philippians 4:11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं। 
Philippians 4:12 मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 
Philippians 4:13 जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 13-15
  • मत्ती 5:1-26