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गुरुवार, 14 जुलाई 2016

सामर्थी


   अपने समय में मैं अमेरिका के अनेकों पर्वत पर चढ़ चुका हूँ, और मेरा विश्वास कीजिए, पर्वत-शिखरों पर कुछ नहीं उगता। वे शिखर केवल चट्टान ही होते हैं जिनपर या तो बर्फ या काई आदि होते हैं; अन्न तो वहाँ होता ही नहीं है, इसलिए अन्न की बहुतायत का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

   लेकिन परमेश्वर के वचन बाइबल में भजन 72 के लेखक दाऊद ने अपने पुत्र सुलेमान के राज्य में परमेश्वर की सामर्थ के बारे में कहा,  "देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा..." (भजन 72:16)। जबकि पर्वत-शिखर पर अन्न होना इतना अन्होना है, तो फिर दाऊद परमेश्वर की सामर्थ से संबंधित क्या कह रहा था? सुलेमान का तात्पर्य था कि परमेश्वर की सामर्थ अति निराशाजनक परिस्थिति में भी अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न कर सकती है।

   संभव है कि आप आज अपने आप को बहुत गौण समझते हों, परमेश्वर के राज्य के लिए कुछ भी फल ला पाने के लिए अयोग्य समझते हों; हिम्मत रखिए, परमेश्वर आप में होकर भी अपने राज्य के लिए भरपूरी की फसल उत्पन्न कर सकता है - यदि आप उसे ऐसा करने दें तो। मसीही विश्वास का यह एक बड़ा विरोधाभास है - परमेश्वर तुच्छ और अयोग्य समझे जाने वाले लोगों के माध्यम से ही अति महान कार्य करता है; उसके राज्य में उपयोगी तथा कारगर होने के लिए वे ही सबसे उपयुक्त और सबसे योग्य हैं जो सांसारिक परिभाषा से तुच्छ और अयोग्य हैं (1 कुरिन्थियों 1:27-29)।

    हम अपनी नज़रों में बहुत बड़े या अभिमानी होने के कारण परमेश्वर के लिए अनुपयोगी तो हो सकते हैं, किंतु बहुत छोटे होने के कारण परमेश्वर के लिए कभी अनुपयोगी नहीं हो सकते। जैसा प्रेरित पौलुस ने अपने अनुभव में होकर लिखा है, हम निर्बलता में ही बलवंत होते हैं: "इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्‍दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्‍त होता हूं" (2 कुरिन्थियों 12:10); और परमेश्वर के द्वारा हमें उपलब्ध करवाई गई सामर्थ से हम वह सब कुछ कर सकते जिसके लिए उसने हमें बुलाया और ठहराया है "जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं" (फिलिप्पियों 4:13)। - डेविड रोपर


परमेश्वर की सामर्थ अनुभव करने के लिए हमें अपनी सभी योग्यता तथा सामर्थ से खाली होना पड़ेगा।

परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है, कि ज्ञान वालों को लज्ज़ित करे; और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्ज़ित करे। और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्‍छों को, वरन जो हैं भी नहीं उन को भी चुन लिया, कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के साम्हने घमण्‍ड न करने पाए। - 1 कुरिन्थियों 1:27-29

बाइबल पाठ: भजन 72:12-20
Psalms 72:12 क्योंकि वह दोहाई देने वाले दरिद्र को, और दु:खी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। 
Psalms 72:13 वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। 
Psalms 72:14 वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।
Psalms 72:15 वह तो जीवित रहेगा और शेबा के सोने में से उसको दिया जाएगा। लोग उसके लिये नित्य प्रार्थना करेंगे; और दिन भर उसको धन्य कहते रहेंगे। 
Psalms 72:16 देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा; जिसकी बालें लबानोन के देवदारों की नाईं झूमेंगी; और नगर के लोग घास की नाईं लहलहाएंगे। 
Psalms 72:17 उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा; जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, और लोग अपने को उसके कारण धन्य गिनेंगे, सारी जातियां उसको भाग्यवान कहेंगी।
Psalms 72:18 धन्य है, यहोवा परमेश्वर जो इस्राएल का परमेश्वर है; आश्चर्य कर्म केवल वही करता है। 
Psalms 72:19 उसका महिमायुक्त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।
Psalms 72:20 यिशै के पुत्र दाऊद की प्रार्थना समाप्त हुई।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 10-12;
  • प्रेरितों 19:1-20