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सोमवार, 13 जुलाई 2015

जीवन शैली


   अमेरिका के टैक्सस प्रांत के ऑस्टिन शहर में आयोजित होने वाले सालाना पुस्तक मेला हज़ारों लोगों को आकर्षित करता है, जो पुस्तकों का आनन्द लेने के लिए आते हैं, प्रसिद्ध लेखकों के साथ चर्चाओं में भाग लेते हैं, और पेशेवर लेखकों से मिलने वाली सलाह का लाभ अर्जित करते हैं। ऐसे ही एक मेले में किशोर और युवाओं के लिए लिखने वाले एक लेखक ने महत्वकांक्षी लेखकों को सलाह देते हुए कहा, "ऐसी पुस्तक लिखें जैसी आप यहाँ देखना चाहते हैं।" यह जीवन और लेखन के लिए वास्तव में एक प्रबल सलाह है। कैसा रहे यदि हम वैसा ही जीवन जीने की ठान लें जैसा हम चाहते हैं कि लोग हमारे साथ जीएं।

   प्रभु यीशु ने अपने अनुयायियों से चाहा कि वे ऐसा जीवन जीएं जो लोगों को परमेश्वर के अनुग्रह को दर्शाए (लूका 6:27-36); उदाहरणस्वरूप: "परन्तु मैं तुम सुनने वालों से कहता हूं, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उन का भला करो। जो तुम्हें श्राप दें, उन को आशीष दो: जो तुम्हारा अपमान करें, उन के लिये प्रार्थना करो" (पद 27-28); प्रभु ने यह भी कहा कि जो लोग हमारे प्रति अनुचित व्यवहार करते हैं, प्रत्युत्तर में उनके प्रति उदारता और बदला ना लेने की भावना का व्यवहार करना चाहिए (पद 29-30), तथा, "और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो" (पद 31)।

   असंभव? जी हाँ, तब जब हम अपनी ही सामर्थ तथा संकल्प पर विश्वास करके ऐसी जीवन शैली अपनाना चाहें। ऐसी जीवन शैली जीने की सामर्थ केवल परमेश्वर के पवित्र आत्मा से प्राप्त होती है, तथा ऐसा करने के संकल्प को बनाए रखना परमेश्वर द्वारा हमारे साथ किए गए व्यवहार को स्मरण रखने से होता है: "वरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो: और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। जैसा तुम्हारा पिता दयावन्‍त है, वैसे ही तुम भी दयावन्‍त बनो" (पद 35-36)।

   मसीही विश्वास के जीवन की यह जीवन शैली कौन नहीं देखना चाहेगा? - डेविड मैक्कैसलैंड


हम में मसीह है कहना मसीही विश्वास का जीवन नहीं है, वरन जी कर दिखाना कि मसीह का जीवन हमारे जीवन में है।

इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्तओं की शिक्षा यही है। - मत्ती 7:12

बाइबल पाठ: लूका 6:27-36
Luke 6:27 परन्तु मैं तुम सुनने वालों से कहता हूं, कि अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उन का भला करो। 
Luke 6:28 जो तुम्हें श्राप दें, उन को आशीष दो: जो तुम्हारा अपमान करें, उन के लिये प्रार्थना करो। 
Luke 6:29 जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे उस की ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उसको कुरता लेने से भी न रोक। 
Luke 6:30 जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उस से न मांग। 
Luke 6:31 और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो। 
Luke 6:32 यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखने वालों के साथ प्रेम रखते हैं। 
Luke 6:33 और यदि तुम अपने भलाई करने वालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं। 
Luke 6:34 और यदि तुम उसे उधार दो, जिन से फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएं। 
Luke 6:35 वरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो: और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिये बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरों पर भी कृपालु है। 
Luke 6:36 जैसा तुम्हारा पिता दयावन्‍त है, वैसे ही तुम भी दयावन्‍त बनो।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 7-9
  • प्रेरितों 18