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मंगलवार, 2 जून 2015

दिखाएँ और बताएँ


   यदि आप लेखक बनने का प्रशिक्षण लें या लेखकों के किसी सम्मेलन में भाग लें तो बहुत संभव है कि आप वाक्याँश "बताओ नहीं दिखाओ" को अवश्य ही सुनने पाएँगे। कहने का तात्पर्य है कि लेखकों को सिखाया जाता है कि जो हो रहा है उसे वे अपने पाठकों को अपने शब्दों से "दिखाएँ" ना कि केवल उसके बारे में बताएँ; उन्हें पाठकों को केवल जो किया वह कहना मात्र नहीं है, वरन उनके सामने वर्णन रखना है कि कैसे किया गया जिससे वे अपने मनों में उस विवरण द्वारा उस कार्य-गतिविधि का एक चित्र बना सकें।

   किंतु सामन्यतः इस प्रकार से "दिखाने" की बजाए केवल "बताने" का एक कारण है कि बताना दिखाने से अधिक सहज और तीव्र होता है। यह दिखाने के लिए कि कोई कार्य कैसे किया गया, समय और प्रयास लगता है। शिक्षा में विद्यार्थियों को यह बताना सहज होता कि उन्होंने क्या क्या गलतियाँ करी हैं, बजाए इसके कि उन्हें दिखाया जाए कि उन गलतियों को करने से कैसे बचा जा सकता है। किंतु उत्त्म दीर्घकालीन प्रभाव बताने से नहीं, दिखाने से ही आते हैं।

   हज़ारों वर्षों से यहूदियों के पास केवल व्यवस्था ही थी जो उन्हें बताती थी उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। फिर उनके मध्य में प्रभु यीशु का आगमन हुआ, जिसने अपने जीवन के उदाहरण द्वारा उन यहूदियों तथा संसार को दिखाया कि परमेश्वर को स्वीकार्य तथा भावता हुआ जीवन कैसे जीना है; वह जीवन जिसके बारे में परमेश्वर उन्हें अपने द्वारा दी गई व्यवस्था में होकर सिखा रहा था।

   प्रभु यीशु ने केवल कहा ही नहीं कि "नम्र बनो" उसने अपने आपको दीन और नम्र किया (फिलिप्पियों 2:8); प्रभु ने केवल यही नहीं कहा कि "क्षमा करो"; उसने ना केवल हमें वरन अपने बैरियों और विरोधियों को भी क्षमा करके दिखाया (कुलुस्सियों 3:13; लूका 23:34); उसने केवल कहा ही नहीं कि "परमेश्वर और पड़ौसी से प्रेम रखो", उसका सारा जीवन प्रेम परमेश्वर तथा मनुष्यों के प्रति प्रेम का सजीव उदाहरण था (यूहन्ना 3:16; यूहन्ना 15:12)।

   मसीह यीशु के जीवन से मिलने वाले सिद्ध उदहरणों से हमें सीखने को मिलता है कि परमेश्वर का हम मनुष्यों के प्रति प्रेम कितना महान है और हम मसीही विश्वासियों को दूसरों के प्रति उस प्रेम को कैसे प्रदर्शित करना है। - जूली ऐकैअरमैन लिंक


प्रेम परमेश्वर की इच्छा का कार्यकारी रूप है।

यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो। - यूहन्ना 13:35

बाइबल पाठ: यूहन्ना 13:5-17
John 13:5 तब बरतन में पानी भरकर चेलों के पांव धोने और जिस अंगोछे से उस की कमर बन्‍धी थी उसी से पोंछने लगा। 
John 13:6 जब वह शमौन पतरस के पास आया: तब उसने उस से कहा, हे प्रभु, 
John 13:7 क्या तू मेरे पांव धोता है? यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि जो मैं करता हूं, तू अब नहीं जानता, परन्तु इस के बाद समझेगा। 
John 13:8 पतरस ने उस से कहा, तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा: यह सुनकर यीशु ने उस से कहा, यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं। 
John 13:9 शमौन पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, वरन हाथ और सिर भी धो दे। 
John 13:10 यीशु ने उस से कहा, जो नहा चुका है, उसे पांव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं। 
John 13:11 वह तो अपने पकड़वाने वाले को जानता था इसी लिये उसने कहा, तुम सब के सब शुद्ध नहीं।
John 13:12 जब वह उन के पांव धो चुका और अपने कपड़े पहिनकर फिर बैठ गया तो उन से कहने लगा, क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साथ क्या किया? 
John 13:13 तुम मुझे गुरू, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वही हूं। 
John 13:14 यदि मैं ने प्रभु और गुरू हो कर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दुसरे के पांव धोना चाहिए। 
John 13:15 क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो। 
John 13:16 मैं तुम से सच सच कहता हूं, दास अपने स्‍वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ अपने भेजने वाले से। 
John 13:17 तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 17-18
  • यूहन्ना 13:1-20