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शुक्रवार, 22 मई 2015

आवश्यकताएं


   भोजन मेरे लिए जीवन की आवश्यकता से बढ़कर जीवन का एक अति आनन्दायक भाग है। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब मैं अच्छे से बनाए गए भोजन का आनन्द लेने बैठता हूँ, विशेषकर तब जब मैं भूखा होता हूँ। मेरे विचार से प्रभु यीशु के चेले भी, जब वे लौट कर उस कूएं पर आए जहाँ प्रभु यीशु उस सामरी स्त्री से वार्तालाप कर रहा था, भोजन के लिए भूखे थे। जब उन्होंने प्रभु से आग्रह किया कि वह भोजन ग्रहण कर ले, तो प्रभु ने उनसे कहा के उसके पास ऐसा भोजन है जिसके बारे में वे नहीं जानते; यह उत्तर सुनकर उन चेलों को लगा कि किसी अन्य ने आकर प्रभु को भोजन दिया है (यूहन्ना 4:31-33)।

   मुझे ऐसा भी लगता है कि वे चेले भोजन के बारे में सोचने में इतने व्यस्त थे कि उन्हें उसके आगे कुछ सूझ ही नहीं पड़ रहा था। जो वहाँ उस कूएं पर घटित हो रहा था, वे उस बात के महत्व से बिलकुल अनभिज्ञ थे। प्रभु यीशु के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात थी, "...मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजने वाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं" (यूहन्ना 4:34); और जब चेले लौट कर उस कुएं पर आए, उस समय प्रभु का पूरा ध्यान उस सामरी स्त्री की आत्मिक आवश्यकताओं पर केंद्रित था, क्योंकि उस स्त्री की वह आत्मिक आवश्यकता केवल प्रभु ही पूरी कर सकता था।

   तत्कालीन आवश्यकताओं में उलझ कर अन्य बातों को नज़रन्दाज़ कर देना सरल होता है; लेकिन हमारा उद्धारकर्ता प्रभु परमेश्वर हमें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं से आगे निकल कर उन लोगों की आवश्यकताओं के बारे में भी सोचने को कहता है जो अपने जीवन की गहरी आत्मिक ज़रूरतों के उत्तर खोज रहे हैं, उत्तर जो केवल प्रभु यीशु के पास हैं।

   इसलिए प्रभु यीशु के साथ मिलकर चलें, और उसकी सामर्थ तथा मार्गदर्शन से दूसरों तक उस आत्मिक भोजन के सन्देश को पहुँचाएं जिसकी उन्हें आवश्यकता है; ऐसी आवश्यकता जो केवल प्रभु यीशु में ही पूरी हो सकती है। - जो स्टोवैल


अपने आस-पास के लोगों की आवश्यकताओं के निवारण का माध्यम बनने के लिए लालायित रहें।

यीशु ने उन से कहा, जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा। - यूहन्ना 6:35

बाइबल पाठ: यूहन्ना 4:27-38
John 4:27 इतने में उसके चेले आ गए, और अचंभा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; तौभी किसी ने न कहा, कि तू क्या चाहता है? या किस लिये उस से बातें करता है।
John 4:28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी।
John 4:29 आओ, एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया: कहीं यह तो मसीह नहीं है?
John 4:30 सो वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे।
John 4:31 इतने में उसके चेले यीशु से यह बिनती करने लगे, कि हे रब्बी, कुछ खा ले।
John 4:32 परन्तु उसने उन से कहा, मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।
John 4:33 तब चेलों ने आपस में कहा, क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है?
John 4:34 यीशु ने उन से कहा, मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजने वाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।
John 4:35 क्या तुम नहीं कहते, कि कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं? देखो, मैं तुम से कहता हूं, अपनी आंखे उठा कर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं।
John 4:36 और काटने वाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है; ताकि बोने वाला और काटने वाला दोनों मिलकर आनन्द करें।
John 4:37 क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है कि बोने वाला और है और काटने वाला और।
John 4:38 मैं ने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा, जिस में तुम ने परिश्रम नहीं किया: औरों ने परिश्रम किया और तुम उन के परिश्रम के फल में भागी हुए।

एक साल में बाइबल: 

  • 1 इतिहास 16-18
  • यूहन्ना 7:28-53