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बुधवार, 18 मार्च 2015

अक्षम?


   चार वर्षीय एलियाना, सोने जाने से पहले अपनी माँ के साथ मिलकर अपनी इधर-उधर फैली हुई चीज़ें एकत्रित कर रही थी। यह करते हुए जब उसकी माँ ने कहा कि वह बिस्तर पर पड़े हुए कपड़े भी उठा कर ठीक से रख दे, तो एलियाना का धैर्य टूट गया; वह कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गई और खिसियाकर माँ से बोली, "अब मैं ही सब कुछ तो नहीं कर सकती हूँ ना!"

   क्या परमेश्वर ने आप से जो कुछ करने के लिए कहा है उसे लेकर आपको भी कभी ऐसा ही लगता है? चर्च के कार्यों, व्यक्तिगत सेवकाई, परिवार की ज़िम्मेदारियाँ आदि को निभाने-करने की व्यस्तता से हो सकता है कि हम अपने आप को अभिभूतित अनुभव करने लगें, और एक लंबी ठंडी सांस लेकर, रुष्ठ भाव से परमेश्वर से कहें, "अब मैं ही सब कुछ तो नहीं कर सकता हूँ ना!"

   लेकिन परमेश्वर के निर्देश यह दिखाते हैं कि अपने विश्वासियों से उसकी आशाएं ऐसी नहीं हैं जो उन्हें अभिभूतित कर दें। उदाहरणस्वरूप उसके कुछ निर्देशों के साथ जुड़ी बातों को देखिए:
  • जब हमें दुसरों के साथ व्यवहार करना होता है तो उस संदर्भ में प्रभु कहता है, "जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो" (रोमियों 12:18) - वह हमारी सहनशीलता की सीमाओं को समझता है।
  • हमारे कार्य को लेकर वह कहता है, "और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझ कर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो" (कुलुस्सियों 3:23)। वह हम से लोगों को प्रभावित करने वाली सिद्धता नहीं माँगता; उसे बस इतना चाहिए कि हम अपनी खरी मेहनत और कार्यनिष्ठा के द्वारा उसको महिमा देने वाले बनें।
  • दूसरों के साथ तुलना के विषय में उसने कहा है: "पर हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्‍ड करने का अवसर होगा" (गलतियों 6:4)। हमें दूसरों की आलोचना करने वाले या उनके साथ अपनी तुलना करने वाले नहीं बनाना है क्योंकि हमारे जीवन तथा कार्यों का उद्देश्य किसी अन्य के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं है; हमें तो बस सत्यनिष्ठा के साथ अपनी ज़िम्मेदारियों को ही पूरा करना है।


   अपनी बुद्धिमता में, जो कुछ वह हम से चाहता है उसे करने के लिए परमेश्वर ने हमें भरपूर क्षमता एवं सामर्थ प्रदान करी है; अब यह हमारा कर्तव्य है कि अपने आप को उसके दिए कार्यों के लिए अक्षम समझने की बजाए उसके मार्गदर्शन में होकर उन कार्यों को पूरा करते रहें, क्योंकि उसका वायदा है कि वह हमें हमारी सामर्थ से बाहर किसी भी परीक्षा कभी नहीं पड़ने देगा (1 कुरिन्थियों 10:13)।


परमेश्वर द्वारा ज़िम्मेदारियाँ उन्हें पूरा करने के लिए आवश्यक सामर्थ के साथ ही मिलती हैं।

तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको। - 1 कुरिन्थियों 10:13

बाइबल पाठ: गलतियों 6:1-10
Galatians 6:1 हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो। 
Galatians 6:2 तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो। 
Galatians 6:3 क्योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है। 
Galatians 6:4 पर हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्‍ड करने का अवसर होगा। 
Galatians 6:5 क्योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।
Galatians 6:6 जो वचन की शिक्षा पाता है, वह सब अच्छी वस्‍तुओं में सिखाने वाले को भागी करे। 
Galatians 6:7 धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा। 
Galatians 6:8 क्योंकि जो अपने शरीर के लिये बोता है, वह शरीर के द्वारा विनाश की कटनी काटेगा; और जो आत्मा के लिये बोता है, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की कटनी काटेगा। 
Galatians 6:9 हम भले काम करने में हियाव न छोड़े, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे। 
Galatians 6:10 इसलिये जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष कर के विश्वासी भाइयों के साथ।

एक साल में बाइबल: 
  • व्यवस्थाविवरण 32-34
  • मरकुस 15:26-47