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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

सेवकाई एवं गुण


   मेरी कार स्वचलित गियर वाली है - मुझे आवश्यकतानुसार अपने हाथ द्वारा गियर बदलने नहीं पड़ते, गाड़ी में आवश्यकतानुसार स्वयं ही गियर बदलते रहते हैं; इसलिए उसे चलाते समय केवल मेरे दाहिने पैर को ही एक्सलेरटर दबाने या छोड़ने का कार्य करते रहना पड़ता है, मेरे बाएँ पैर का गाड़ी के चलाने में कोई योगदान नहीं होता। यदि मैं यह सोच लूँ कि गाड़ी चलाने में मेरे दाहिने पैर को ही क्यों मेहनत करते रहना पड़े, आधा समय तो बाएँ पैर को भी एक्सलरेटर पर कार्य करना चाहिए - तो आप क्या कहेंगे? अवश्य ही आप मुझे कहेंगे, कृप्या ऐसा करने का प्रयास भी मत कीजिएगा क्योंकि इसके परिणाम अति हानिकारक होंगे!

   यदि हमें अपने शरीर के सभी अंगों में परस्पर समान कार्य-योग्यता एवं क्षमता की आशा नहीं करते, तो फिर अपने प्रभु यीशु के देह अर्थात मसीही विश्वासियों की मण्डली अर्थात चर्च या कलीसिया के सदस्यों में इसकी आशा क्यों करते हैं? ऐसा भी नहीं है कि यह धारणा रखना आज की ही समस्या हो; प्रथम ईसवीं में रोम में स्थित मसीही विश्वासियों की मण्डली में भी यही समस्या देखने में आ रही थी। उस मण्डली के कुछ लोग अपने आप को अन्य लोगों से बेहतर समझने लगे थे क्योंकि वे कुछ ऐसे कार्य कर रहे थे जो अन्य सदस्य नहीं कर रहे थे (रोमियों 12:3)। प्रेरित पौलुस ने उन्हें लिखी अपनी पत्री में देह के उदाहरण द्वारा समझाया कि जैसे शरीर में सभी अंगों का समान कार्य नहीं होता है, वैसे ही देह के प्रत्येक अंग का भी समान कार्य नहीं होता है, किंतु देह के सुचारू रीति से कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी अंग परस्पर मिल कर और एक दूसरे के पूरक होकर अपने अपने निर्धारित कार्य भली-भांति करते रहें।

   इसी प्रकार मसीही विश्वासियों की मण्डली, अर्थात चर्च या कलीसिया में भी परमेश्वर ने सभी सदस्यों को अलग अलग कार्य तथा उन कार्यों को करने के लिए अलग अलग गुण दीए हैं। ये सभी गुण किसी के निज उन्नति के प्रयोग के लिए नहीं वरन मिलजुल कर मण्डली की उन्नति के लिए कार्य करने को हैं। जब सभी सदस्य अपनी अपनी ज़िम्मेदारी भली-भांति निभाएंगे तब ही मसीह की देह उन्नति पाएगी। इसलिए हमें यह नहीं देखना है कि कौन कितना और कैसा कार्य कर रहा है, वरन इस बात का ध्यान रखना है कि हम अपने कार्य को भली-भांति कर रहे हैं या नहीं, परमेश्वर द्वारा गिए गए गुणों का सही प्रयोग कर रहे हैं या नहीं।

   दूसरों की ओर नहीं वरन अपने अन्दर दृष्टि डालें और जाँचें कि परमेश्वर द्वारा आपको दी गई सेवकाई एवं गुणों का आप कैसा उपयोग कर रहे हैं; आप मसीही मण्डली की उन्नति में सहयोगी हैं या आपके कारण मण्डली की उन्नति बाधित हो रही है? - सी. पी. हिया


परमेश्वर के कार्यों में हम सब एक ही सेवा तो नहीं कर सकते, किंतु सुनिश्चित रखें कि हम सब परस्पर तालमेल के साथ एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करते रहें।

इसलिये तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो। - 1 कुरिन्थियों 14:12

बाइबल पाठ: रोमियों 12:3-13
Romans 12:3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। 
Romans 12:4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं। 
Romans 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह हो कर आपस में एक दूसरे के अंग हैं। 
Romans 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे। 
Romans 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे। 
Romans 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे। 
Romans 12:9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो। 
Romans 12:10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। 
Romans 12:11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो। 
Romans 12:12 आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो। 
Romans 12:13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 21-22
  • मत्ती 28