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शनिवार, 22 मार्च 2014

लालसा


   किसी ने मुझ से पूछा, "आपकी सबसे बड़ी समस्या क्या है?" मैंने उत्तर दिया, "वह जो रोज़ सुबह मुझे दर्पण में दिखाई देता है!" मेरा तात्पर्य स्वयं अपने आप से था और मेरा इशारा मेरे अन्दर के "पहले मैं" वाली लालसाओं की ओर था।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब 4:1 में आया है, "तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं?" यहाँ याकूब ’सुख-विलासों’ द्वारा अपने पाठकों का ध्यान उन स्वार्थी लालसाओं की ओर खेंचना चाह रहा है जिनकी पूर्ति में ही हम अपने आनन्द को ढूँढते हैं तथा उन के लिए उचित-अनुचित सब करने को तैयार हो जाते हैं। याकूब हमें सचेत करता है कि इन लालसाओं के कारण ही हम में परस्पर लड़ाई झगड़े पनपते हैं (पद 1, 2) और ये हमें परमेश्वर से भी विमुख कर देती हैं (पद 4)। इसीलिए इस से पहले याकूब ने लिखा: "परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंच कर, और फंस कर परीक्षा में पड़ता है" (याकूब 1:14)।

   इस कारण यह अति आवश्यक है कि हम यह ’पहले मैं’ वाला रवैया छोड़ दें। याकूब ऐसा कर पाने का उपाय भी बताता है: सर्वप्रथम, ’परमेश्वर के आधीन हो जाओ’ (पद 7) - परमेश्वर परमेश्वर ही है और हमारे जीवनों में उसी की इच्छा सदा सर्वोपरि रहनी चाहिए; अर्थात, हमें अपने प्राथमिकताओं के स्तर सही निर्धारित करने हैं और निभाने हैं। दूसरा, ’परमेश्वर के निकट आ जाओ’ (पद 8) - परमेश्वर आपके मन के अन्दर तक की प्रत्येक वास्तविकता आप से पहले और आप से बेहतर जानता है, इसलिए उस से छुपाने या संकोच करने के बजाए अपनी उन लालसाओं, कमज़ोरियों, पाप में फंसाने वाली इच्छाओं एवं बातों को लेकर, उन से शुद्धि पाने के लिए, परमेश्वर के निकट आ जाओ (1 यूहन्ना 1:9)। तीसरा, ’प्रभु के सामने दीन बनो’ (पद 10), अर्थात अपने पापों और बुराईयों के लिए पश्चातापी बनो, उनके लिए बहाने बनाने वाले या उन्हें न्यायसंगत ठहराने के लिए तर्क देने वाले ना बनो; जब उसके सामने हम दीन बनेंगे तो परमेश्वर स्वयं ही हमें शिरोमणि भी बनाएगा।

   ध्यान रखें, दुचित्ते हो कर बुराई और भलाई दोनों ही की ओर आकर्षित ना होते रहें। अपने मनों को परमेश्वर और उसके मार्ग पर लगाएं। ’पहले मैं’ या ’पहले मेरा’ वाली भावना सही मार्ग नहीं है, वरन इसके विपरीत हमारी भावना सदा ही ’पहले परमेश्वर’ एवं ’पहले परमेश्वर की इच्छा’ होना चाहिए। सही लालसा ही जीवन के लिए सही मार्ग और सही भविष्य निर्धारित करेगी। - एल्बर्ट ली


जो अपनी प्रशंसा तथा अपने स्वार्थ को भुला कर किया जाता है वो स्वतः ही प्रशंसनीय एवं विस्मरणीय हो जाता है।

कि तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्‍व को जो भरमाने वाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्‍ट होता जाता है, उतार डालो। - इफिसियों 4:22

बाइबल पाठ: याकूब 4:1-10
James 4:1 तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं? 
James 4:2 तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं; तुम हत्या और डाह करते हो, ओर कुछ प्राप्त नहीं कर सकते; तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिये नहीं मिलता, कि मांगते नहीं। 
James 4:3 तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो। 
James 4:4 हे व्यभिचारिणयों, क्या तुम नहीं जानतीं, कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है। 
James 4:5 क्या तुम यह समझते हो, कि पवित्र शास्त्र व्यर्थ कहता है जिस आत्मा को उसने हमारे भीतर बसाया है, क्या वह ऐसी लालसा करता है, जिस का प्रतिफल डाह हो? 
James 4:6 वह तो और भी अनुग्रह देता है; इस कारण यह लिखा है, कि परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है। 
James 4:7 इसलिये परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा। 
James 4:8 परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा: हे पापियों, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगों अपने हृदय को पवित्र करो। 
James 4:9 दुखी होओ, और शोक करा, और रोओ: तुम्हारी हंसी शोक में और तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए। 
James 4:10 प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 शमूएल 29-31