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रविवार, 17 नवंबर 2013

साथी


   मुझे अपने प्रदेश के मार्गों पर पैदल घूमना चलना अच्छा लगता है क्योंकि ऐसा करने से मैं वहाँ की सुरम्य सुन्दरता और भव्यता को भली-भांति निहार सकता हूँ, उसका आनन्द उठा सकता हूँ। यह मुझे इस बात का भी स्मरण दिलाता है कि मैं अपने तथा जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के साथ एक आत्मिक यात्रा पर भी हूँ, जिसमें प्रभु यीशु मेरा साथी और मार्गदर्शक है। प्रभु यीशु भी, अपने पृथ्वी के समय में सारे इस्त्राएल देश में चलता फिरता और शिष्य बनाता रहा, उनसे यह कह कर, "मेरे पीछे चले आओ" (मत्ती 4:19)।

   जॉन बनयन द्वारा लिखित सुप्रसिद्ध पुस्तक "मसीही मुसाफिर" में एक स्थान पर मसीही यात्री कठिनाई के पहाड़ पर पहुँचता है, और उसे चढ़ने से पहले वह थोड़ा रुककर विश्राम करता है। उस विश्राम के समय में वह अपने पास विद्यमान परमेश्वर के वचन को पढ़ता है जो उसे परमेश्वर की उसके साथ बनी हुई उपस्थिति को स्मरण कराता है और आश्वस्त करता है कि परमेश्वर की सामर्थ उसके साथ है। इस विश्राम और मनन से वह नई स्फूर्ति पाता है और अपनी यात्रा पर आगे बढ़ने और कठिनाई के पहाड़ पर चढ़ने के लिए तैयार हो जाता है।

   मसीही विश्वास के जीवन की यह यात्रा सरल नहीं है; अनेक बार इसमें आगे बढ़ने से सरल और बेहतर लगता है इसे छोड़ देना, पीछे हट जाना, मार्ग बदल लेना। लेकिन जब ऐसे कठिन समय आएं तब उचित होता है थोड़ा समय रुककर विश्राम करना और पुनः सामर्थ प्राप्त करना - बीती यात्रा में हमारे साथ बनी रही परमेश्वर प्रभु यीशु की उपस्थिति और सहायता को स्मरण कर के और कभी साथ ना छोड़ने के उसके वायदे तथा उसके वचनों में दी गई हमारी भलाई की प्रतिज्ञाओं के स्मरण से आश्वासन लेने के द्वारा।

   केवल परमेश्वर ही यह जानता है कि हमारी यह जीवन यात्रा कितनी लंबी है, तथा कब, कहाँ और कैसे समाप्त होगी; लेकिन उसका आश्वासन सदा अपने लोगों के साथ है, "...और देखो, मैं जगत के अन्‍त तक सदैव तुम्हारे संग हूं" (मत्ती 28:20)। प्रभु यीशु का यह आश्वासन किसी कथन को सुन्दर बनाने वाला कोई अलंकार मात्र नहीं है। प्रभु यीशु की साथ बनी रहने वाली उपस्थिति वास्तविक है जो अनेक मसीही विश्वासियों ने अपनी विश्वास की यात्रा में भिन्न समयों और परिस्थितियों में अनुभव की है। ऐसा कोई पल नहीं जिसमें मसीह यीशु अपने विश्वासियों के साथ ना हो, ऐसी कोई यात्रा नहीं जिसके प्रत्येक पग में वह साथी ना हो। 

   मैंने अपने अनुभव से जाना है कि वह मेरा ऐसा साथी है जो मेरी जीवन यात्रा को अपनी सामर्थ और मार्गदरशन से सुगम बना देता है। क्या आपने भी मसीह यीशु को आपनी जीवन यात्रा का साथी बनाया है? - डेविड रोपर


जीवन यात्रा के कठिन मार्ग पर अपने बोझ प्रभु यीशु को सौंप दीजिए।

हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। - मत्ती 11:28

बाइबल पाठ: मत्ती 4:18-22
Matthew 4:18 उसने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। 
Matthew 4:19 और उन से कहा, मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाऊंगा। 
Matthew 4:20 वे तुरन्त जालों को छोड़ कर उसके पीछे हो लिए। 
Matthew 4:21 और वहां से आगे बढ़कर, उसने और दो भाइयों अर्थात जब्‍दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने पिता जब्‍दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधारते देखा; और उन्हें भी बुलाया 
Matthew 4:22 वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़ कर उसके पीछे हो लिए।

एक साल में बाइबल: 
  • यहेजकेल 5-7 
  • इब्रानियों 12