ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

दृष्टिकोण

   मेरी जीविका शब्दों से है। चाहे मैं स्वयं लिखूँ अथवा किसी अन्य के लिखे को संपादित करूँ, मुझे शब्दों का सहारा लेना ही पड़ता है जिससे मैं पाठकों तक विचारों को सार्थक रूप में पहुँचा सकूँ। सामान्यतः मुझे किसी अन्य के द्वारा लिखे हुए में त्रुटियाँ देखने में कोई दिक्कत नहीं होती (लेकिन शायद मैं अपने लिखे में त्रुटियाँ उतनी ही सरलता से नहीं देख पाती), और मैं बिना किसी परेशानी के यह भी निर्णय कर लेती हूँ कि उन त्रुटियों को ठीक कैसे करा जाए। एक संपादक होने के नाते मुझे आलोचनात्मक रवैया रखने की ही पगार मिलती है और मेरा यही कार्य है कि मैं देखूँ कि शब्दों के प्रयोग में क्या घटी या त्रुटि रह गई है!

   लेकिन आलोचना कर पाने और उस त्रुटि को सुधार पाने की मेरी यही योग्यता मेरे लिए अयोग्यता बन जाएगी यदि मैं इसे व्यवसायिक से व्यक्तिगत जीवन में ले आऊँ और हर बात मे बस गलतियाँ ही ढूँढती रहूँ। हर समय और हर बात में गलतियों पर ही केंद्रित रहने से हम जीवन की बहुत सी भलाईयों को खो बैठते हैं।

   प्रेरित पौलुस के पास पर्याप्त कारण था कि वह उन लोगों पर ध्यान केंद्रित करे जो उसका नुकसान चाह रहे थे। कुछ लोग थे जो प्रभु यीशु में उद्धार के सुसमाचार को निज स्वार्थ तथा पौलुस के क्लेषों को बढ़ाने के लिए कर रहे थे (फिलिप्पियों 1:16)। लेकिन पौलुस ने नकारात्मक की बजाए उनके प्रति एक सकारात्मक रवैया अपनाया, और खेदित होने की बजाए आनन्दित हुआ, क्योंकि कैसे भी और किसी भी उद्देश्य के साथ ही क्यों ना हो, मसीह यीशु में उद्धार प्राप्त होने का प्रचार तो हो ही रहा था (फिलिप्पियों 1:18)। इस बात के महत्व को हम और भी समझने पाते हैं जब यह देखते हैं कि इस घटना के समय पौलुस बन्दीगृह में पड़ा परेशानियाँ उठा रहा था।

   परमेश्वर हमसे यह अवश्य चाहता है कि हम समझ-बूझ के साथ कार्य करें और भले बुरे में अन्तर देखें, लेकिन वह यह नहीं चाहता कि हम बस बुरे पर ही केंद्रित रहें और आलोचना करते रहने और निराशा फैलाने में लगे रहें। चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों ना हों - पौलुस ने जब फिलिप्पियों को यह पत्री लिखी तब वह किसी अनुकूल परिस्थिति में नहीं था, हम हर बात में कुछ ना कुछ भला देख ही लेंगे यदि यह मान कर चलेंगे कि इन परिस्थितियों और बातों में भी परमेश्वर अपना कार्य कर रहा है और उनके द्वारा कुछ अच्छा ही करने जा रहा है! - जूली ऐकैरमैन लिंक


यदि समस्याएं आपके दृष्टिकोण को धुंधला करने लगें तो अपनी नज़रें प्रभु यीशु पर केंद्रित कर लीजिए।

हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है। - फिलिप्पियों 1:12 

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 1:12-18
Philippians 1:12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है।
Philippians 1:13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं।
Philippians 1:14 और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्‍ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं।
Philippians 1:15 कितने तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से।
Philippians 1:16 कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं।
Philippians 1:17 और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्‍लेश उत्पन्न करें।
Philippians 1:18 सो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्‍दित हूं, और आनन्‍दित रहूंगा भी।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 1-3 
  • प्रेरितों 17:1-15