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शनिवार, 11 मई 2013

शांति एवं मेल


   सन 1865 में जब अमेरीकी गृह-युद्ध समाप्त हुआ तो लाखों सैनिक मर चुके थे, राष्ट्र की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई थी और राजनैतिक रूप से लोगों में बहुत मतभेद तथा गहरा विभाजन था। ऐसे शोक और कटुता के समय में दो महिलाओं ने शान्ति और मेल को बढ़ावा देने के लिए वर्ष में एक बार माताओं को स्मरण करने का दिवस मनाने की योजना को बढ़ावा दिया। सन 1870 में जूलिया वार्ड हाओ ने अन्तर्राष्ट्रीय मात्र दिवस का प्रस्ताव रखा, जिस दिन सभी महिलाएं एक जुट होकर युद्ध के हर स्वरूप का विरोध करें। इसके कुछ वर्ष पश्चात अन्ना रीव्स जार्विस ने युद्ध के कारण अलग और विमुख हुए परिवारों और पड़ौसियों को फिर से एक करने के लिए सालाना मात्र मित्रता दिवस मनाना आरंभ किया। जब भी परिवार और मित्र एक दुसरे के विमुख होकर बिखर जाते हैं तो यह बहुत कष्टदायक होता है।

   परमेश्वर भी अपनी सृष्टि को अपने से अलग नहीं देखना चाहता; वह भी चाहता है कि सब एक होकर साथ रहें। इस मेल-मिलाप और शांति के लिए ही उसने अपने पुत्र प्रभु यीशु को संसार में भेजा, जिससे लोग पापों से मुक्ति पाकर आपसी प्रेम में एक दूसरे के साथ और परमेश्वर के साथ जुड़ जाएं। इस शान्ति और मिलाप का एक बहुत महत्वपूर्ण आधार है क्षमा - जो प्रभु यीशु में होकर परमेश्वर हर एक पश्चातापी पापी को सेंत-मेंत उपलब्ध कराता है। यही क्षमा परमेश्वर अपने लोगों में भी देखना चाहता है। प्रभु यीशु से एक बार उनके शिष्य पतरस ने जानना चाहा कि वह अपने भाई को कितनी बार क्षमा करे यदि वह बार बार उसके विरुद्ध अपराध करे। प्रभु के उत्तर "सात के सत्तर गुणा तक" ने सब को चौंका दिया। फिर प्रभु यीशु ने एक अविस्मरणीय कहानी - एक दास को अपने स्वामी से बहुत बड़े अपराध की क्षमा मिली किंतु यह बड़ी क्षमा पाकर भी वह अपने एक संगी दास को एक छोटे से अपराध के लिए क्षमा ना कर सका और अपनी क्षमा के लाभ को खो बैठा; द्वारा यह बात समझाई (मत्ती 18:21-35)।

   इस कहानी के द्वारा प्रभु यीशु ने सब सुनने वालों को स्मरण दिलाया कि जैसे परमेश्वर ने उनके बड़े बड़े पाप और अपराध क्षमा किए हैं वैसे ही उन्हें भी आपस में एक दुसरे के पापों और अपराधों को क्षमा करना है। जहाँ क्षमा और सहिषुण्ता होगी वहाँ शांति और मेल भी होंगे। - डेविड मैक्कैसलैंड


क्षमाशील व्यवहार व्यावाहरिक मसीही जीवन है।

सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था? - मत्ती 18:33

बाइबल पाठ: मत्ती 18:21-35
Matthew 18:21 तब पतरस ने पास आकर, उस से कहा, हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं, क्या सात बार तक?
Matthew 18:22 यीशु ने उस से कहा, मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन सात बार के सत्तर गुने तक।
Matthew 18:23 इसलिये स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा।
Matthew 18:24 जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके साम्हने लाया गया जो दस हजार तोड़े धारता था।
Matthew 18:25 जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्‍वामी ने कहा, कि यह और इस की पत्‍नी और लड़के बाले और जो कुछ इस का है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए।
Matthew 18:26 इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा; हे स्‍वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूंगा।
Matthew 18:27 तब उस दास के स्‍वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका धार क्षमा किया।
Matthew 18:28 परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उसको मिला, जो उसके सौ दीनार धारता था; उसने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा, और कहा; जो कुछ तू धारता है भर दे।
Matthew 18:29 इस पर उसका संगी दास गिरकर, उस से बिनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूंगा।
Matthew 18:30 उसने न माना, परन्तु जा कर उसे बन्‍दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे।
Matthew 18:31 उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जा कर अपने स्‍वामी को पूरा हाल बता दिया।
Matthew 18:32 तब उसके स्‍वामी ने उसको बुलाकर उस से कहा, हे दुष्‍ट दास, तू ने जो मुझ से बिनती की, तो मैं ने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया।
Matthew 18:33 सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?
Matthew 18:34 और उसके स्‍वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्‍ड देने वालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उन के हाथ में रहे।
Matthew 18:35 इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 राजा 13-14 
  • यूहन्ना 2