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बुधवार, 17 अप्रैल 2013

धन की चिन्ता


   परमेश्वर के वचन बाइबल में लिखी प्रभु यीशु की शिक्षाओं में, विषयानुसार, सबसे अधिक शिक्षाएं धन-संपत्ति से संबंधित हैं। जितना प्रभु यीशु ने धन-संपत्ति के बारे में सिखाया उतना किसी अन्य विषय के बारे में नहीं सिखाया। लूका 12 धन के विषय में उनकी शिक्षाओं का एक अच्छा सारांश है। उन्होंने धन की निन्दा नहीं करी लेकिन अपने भविष्य और आवश्यकताओं के लिए धन-संपत्ति पर भरोसा करने के विषय में चेतावनी अवश्य दी क्योंकि धन-संपत्ति जीवन की समस्याओं का हल नहीं कर सकते।

   प्रभु यीशु ने धन-संपत्ति के विषय में बहुत सी बातें कहीं, लेकिन एक प्रश्न पर उन्होंने ध्यान केंद्रित रखा, "धन-संपत्ति का तुम्हारे जीवन में क्या प्रयोजन हैं?" धन-संपत्ति किसी के भी जीवन को नियंत्रित कर सकते हैं और उनका ध्यान परमेश्वर से हटा सकते हैं। इसके विपरीत प्रभु चाहते हैं कि हम स्वर्ग में अपना धन एकत्रित करें क्योंकि वह धन ना केवल इस जीवन में वरन आते जीवन में भी हमारे काम आएगा।

   प्रभु यीशु, धन-संपत्ति अर्जित करते रहने की लालसा में पड़े रहने, इसे ही अपने जीवन का ध्येय बनाने और धन-संपत्ति की अनिश्चित सामर्थ पर भरोसे के नियंत्रण से बचाए रखने को कहते हैं चाहे इसके लिए हमें अपना सब कुछ छोड़ना ही क्यों ना पड़े। हमारा भरोसा नाश्मान धन पर नहीं वरन अविनाशी परमेश्वर पर होना चाहिए क्योंकि हमारे जीवन की आवश्यकताएं पूरी करने में परमेश्वर सक्षम है, और परमेश्वर जो देता है उससे बेहतर संसार की कोई सामर्थ, कोई धन नहीं दे सकता। उदहरणस्वरूप प्रभु ने संसार के सबसे धनी राजा सुलेमान का उदाहरण दिया और कहा कि राजा सुलेमान अपने सारे वैभव में भी मैदानों में उगने वाला एक जंगली फूल, जो आज है और कल जाता रहता है, के समान सुन्दर नहीं हो सका। इसलिए अपने खाने-पीने, रहने, पहनने-ओढ़ने की चिंता मत करो (लूका 12:27-29) वरन परमेश्वर के राज्य और उसकी धर्मिकता की खोज में रहो तो जीवन की सब आवश्यकताएं भी परमेश्वर की ओर से स्वतः ही पूरी कर दी जाएंगी (लूका 12:31)।

   सच है; नाशमान और क्षणिक धन-संपत्ति पर भरोसा रखने की बजाए अविनाशी और अनन्त परमेश्वर पर, जो सारी सृष्टि के देखभाल और संचालन करता है, भरोसा रखना अधिक युक्ति संगत तथा लाभकारी है। - फिलिप यैन्सी


हमारे धन-संपत्ति का सही माप स्वर्ग में जो हमने अर्जित किया है वही है।

हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। - लूका 12:32 

बाइबल पाठ: लूका 12:22-31
Luke 12:22 फिर उसने अपने चेलों से कहा; इसलिये मैं तुम से कहता हूं, अपने प्राण की चिन्‍ता न करो, कि हम क्या खाएंगे; न अपने शरीर की कि क्या पहिनेंगे।
Luke 12:23 क्योंकि भोजन से प्राण, और वस्‍त्र से शरीर बढ़कर है।
Luke 12:24 कौवों पर ध्यान दो; वे न बोते हैं, न काटते; न उन के भण्‍डार और न खत्ता होता है; तौभी परमेश्वर उन्हें पालता है; तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है।
Luke 12:25 तुम में से ऐसा कौन है, जो चिन्‍ता करने से अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?
Luke 12:26 इसलिये यदि तुम सब से छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातों के लिये क्यों चिन्‍ता करते हो?
Luke 12:27 सोसनों के पौधों पर ध्यान करो कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न परिश्रम करते, न कातते हैं: तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपने सारे वैभव में, उन में से किसी एक के समान वस्‍त्र पहिने हुए न था।
Luke 12:28 इसलिये यदि परमेश्वर मैदान की घास को जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा पहिनाता है; तो हे अल्प विश्वासियों, वह तुम्हें क्यों न पहिनाएगा?
Luke 12:29 और तुम इस बात की खोज में न रहो, कि क्या खाएंगे और क्या पीएंगे, और न सन्‍देह करो।
Luke 12:30 क्योंकि संसार की जातियां इन सब वस्‍तुओं की खोज में रहती हैं: और तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें इन वस्‍तुओं की आवश्यकता है।
Luke 12:31 परन्तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो ये वस्‍तुऐं भी तुम्हें मिल जाएंगी।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 शमूएल 1-2 
  • लूका 14:1-24