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शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

प्रार्थना


   हम सभी का, जो कंप्यूटर पर कार्य करते हैं, यह अनुभव होगा कि थोड़े थोड़े समय बाद कंप्यूटर के कार्य करने की गति शिथिल होने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि विभिन्न प्रोग्राम और दस्तावेज़ों पर कार्य करते करते जब हम अपने कार्य को ’सेव’ करते हैं तो कंप्यूटर उस कार्यांश को हार्ड-डिस्क पर संजो देता है। धीरे धीरे कार्यांश के ये टुकड़े हार्ड-डिस्क पर कई जगह छित्रे हुए संजोए जाते हैं और इनपर कार्य करने के लिए पहले कंप्यूटर को इन्हें भिन्न स्थनों से खोज कर एकत्रित करना होता है और फिर आगे के कार्य के लिए प्रस्तुत करना होता है जिस में समय अधिक लगता है। इस समस्या के समाधान के लिए लोग एक विशेष प्रोग्राम प्रयोग करते हैं जो कंप्यूटर की हार्ड-डिस्क को ’डीफ्रैगमैन्ट’ करता है, अर्थात उन छित्रे हुए कार्यांशों को जमा करके सही क्रम में एकीकृत करता है जिससे उन्हें पुनः प्रयोग के लिए समय व्यय ना हो। इससे कंप्यूटर की कार्य गति फिर से ठीक हो जाती है।

   कंप्यूटर के समान, हमारा जीवन भी ऐसे ही टुकड़ों में बंट जाता है और हमारी जीवन गति शिथिल होने लगती है, कार्य अस्त-व्यस्त होने लगते हैं और जीवन में खींचातानी बढ़ने लगती है। जब हम किसी बात पर ध्यान लगाने का प्रयास कर रहे होते हैं तो कोई और परिस्थिति हमारी भावनाओं पर प्रहार कर रही होती है। हर ओर से कोई न कोई माँग हमारा ध्यान और कार्य चाहती है। हम प्रयास करते हैं कि सभी माँगों को पूरा कर सकें किंतु दिमाग़ केंद्रित नहीं रह पाता, मन शांत नहीं हो पाता और शरीर साथ नहीं देता। जीवन के दबावों और मांगों के आगे हम अपने आपको थका और अयोग्य अनुभव करने लगते हैं।

   हाल ही में मैंने एक सभा में भाग लिया जिसमें बांटे गए पर्चों में से एक में एक प्रार्थना भी थी जो मेरी दशा को बयान कर रही थी। प्रार्थना में लिखा था: "प्रभु मैं बिखरा हुआ, अशांत और अधूरे मन का हो गया हूँ।"

   राजा दाऊद भी ऐसे अनुभव से होकर निकला था (भजन ५५:२)। उसने प्रार्थना में अपनी हालत परमेश्वर के सामने रखी; प्रातः, दोपहर, संध्या वह परमेश्वर के आगे प्रार्थना में लगा रहा। उसे निश्चय था कि परमेश्वर उसकी प्रार्थना को सुनेगा और उत्तर देगा (पद १७)। परमेश्वर ने ऐसा ही किया और दाऊद कहने पाया: "जो लड़ाई मेरे विरुद्ध मची थी उस से उसने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है" (भजन ५५:१८); और इस बात से प्रेर्णा लेकर उसने आगे कहा: "अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा" (भजन ५५:२२)।

   प्रार्थना हमारे बिखरे हुए जीवन को एकीकृत करके संजो देती है। जब हम अपने बोझों को परमेश्वर पर डाल देते हैं और उसके निर्देषों तथा मार्गों पर चलने का निर्णय ले लेते हैं तो परमेश्वर हमें वह भी बताता है जो हमें करना है, और वह भी बताता है जो वह करेगा। परमेश्वर पर भरोसा रखें और प्रार्थना की सामर्थ को समझें।  - जूली एकैरमैन लिंक


जब सांसारिक व्यस्तता के कारण प्रार्थना का समय सबसे कम होता है, उसी दशा में हमें प्रार्थना की सामर्थ की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।

अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा। - भजन ५५:२२

बाइबल पाठ: भजन ५५:१-८
Psalms55:1 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़!
Psalms55:2 मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं।
Psalms55:3 क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं।
Psalms55:4 मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है।
Psalms55:5 भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं।
Psalms55:6 और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता!
Psalms55:7 देखो, फिर तो मैं उड़ते उड़ते दूर निकल जाता और जंगल में बसेरा लेता,
Psalms55:8 मैं प्रचण्ड बयार और आन्धी के झोंके से बचकर किसी शरण स्थान में भाग जाता।

एक साल में बाइबल: 
  • निर्गमन २९-३० 
  • मत्ती २१:२३-४६