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बुधवार, 26 दिसंबर 2012

प्रतिक्रिया


   मेरी पत्नि मुझे बता रही थी कि उसका दिन कैसा रहा; उसने दिन में घटित एक रोचक घटना भी बताई। हमारी दो वर्षीय पोती एलियाना हमारे पास आई हुई थी और खिलौनों से खेल रही थी। खेलते हुए जब एलियाना ने घर के एक अन्य भाग में जाना चाहा तो उसकी दादी अर्थात मेरी पत्नि ने उससे कहा, "एलियाना, पहले अपने खिलौने संभाल कर रख दो, फिर जाना।" बिना क्षण भर भी रुके या सोचे, तपाक से एलियाना का चौंका देने वाला उत्तर आया, "अभी मेरे पास समय नहीं है!" भला वह दो वर्ष की बच्ची किस बात में इतनी व्यस्त रही होगी कि उसके पास समय ना हो? वास्तविक बात समय का ना होना नहीं वरन आज्ञाकारिता की इच्छा ना होना थी जिसके लिए एलियाना ने समय को बहाना बना दिया।

   मैं सोचता हूँ कि ऐसे ही कई दफा परमेश्वर भी हमारी भलाई और सुरक्षा के लिए उसके द्वारा दी हुई आज्ञाओं के प्रति हमारी अनाज्ञाकारिता और फिर बहानेबाज़ी की प्रतिक्रीयाओं से ऐसे ही विस्मित होता होगा।

   उदहरणस्वरूप, विचार कीजिए, प्रभु यीशु कहता है: "हे सब बोझ से दबे और थके लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा" (मत्ती ११:२८); और हम प्रत्युत्तर में कहते हैं, "मेरी समस्याएं अनेक और परिस्थितियाँ बहुत विषम हैं, मुझे स्वयं ही इनका समाधान खोज लेने दें!" परमेश्वर कहता है: "शांत हो जाओ और जान लो कि मैं ही परमेश्वर हूँ (भजन ४६:१०); और हमारी प्रतिक्रीया होती है, "मैं बहुत व्यस्त हूँ, अभी मैं शांत नहीं हो सकता; परमेश्वर के लिए समय नहीं दे सकता!" परमेश्वर कहता है: "पवित्र बनो क्योंकि तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है" (१ पतरस १:१६), और हम उत्तर देते हैं, "लेकिन संसार और संसार की बातों में तो इतना मज़ा है; थोड़ा आनन्द इनका भी ले लेना चाहिए!" इन सब और ऐसी ही अन्य बातों में परमेश्वर हमारी प्रतिक्रिया के बारे में क्या सोचता होगा?

   परमेश्वर ने कह दिया है; अब उसकी आज्ञाकारिता ही एकमात्र उचित प्रतिक्रिया है उसके प्रति अपने प्रेम और आदर को दिखाने की। - डेव ब्रैनन


परमेश्वर की आज्ञाकारिता के लिए सर्वोत्तम प्रेर्णा परमेश्वर को प्रसन्न रखने की हमारी इच्छा है।

इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है... - व्यवस्थाविवरण ३०:२०

बाइबल पाठ: याकूब १:२१-२७
Jas 1:21   इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। 
Jas 1:22  परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। 
Jas 1:23  क्‍योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्‍वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है। 
Jas 1:24  इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्‍त भूल जाता है कि मैं कैसा था। 
Jas 1:25  पर जो व्यक्ति स्‍वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर नहीं, पर वैसा ही काम करता है। 
Jas 1:26   यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है। 
Jas 1:27  हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों ओर विधवाओं के क्‍लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्‍कलंक रखें।

एक साल में बाइबल: 
  • हाग्गै १-२ 
  • प्रकाशितवाक्य १७