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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

रवैया


   एक परिवार झील के किनारे पिकनिक मनाने गया। सब लोग पिकनिक का आनन्द ले रहे थे, खेल रहे थे। किसी को ध्यान नहीं रहा और ५ वर्षीय जौनी पानी के अन्दर चलते चलते गहरे में चला गया और डूबने लगा। इतने में किसी ने जौनी के दिखाई ना देने को पहचाना और सब इधर-उधर भाग कर उसे पुकारने और ढूँढने लगे। वहां उपस्थित एक अन्य अजनबी व्यक्ति ने पानी की ओर ध्यान किया और कूछ दूरी पर गोते खाते और हाथ-पैर मारते जौनी को देखा। उसने तुरंत पानी में छलांग लगाई और जौनी को बचाकर तट पर ले आया; उस व्यक्ति ने जौनी को उसके परिवार को सौंपा ही था कि तभी खिसियाई आवाज़ में जौनी की माँ ने अजनबी से कहा, "अरे आप जौनी की टोपी कहाँ छोड़ आए?"

   यही बात कितनी ही दफा हमारे साथ हमारे जीवनों में होती है। हम जीवन कि छोटी छोटी बातों से निराश होकर परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाते हैं, खिसियाते हैं, अपनी असफलताओं के लिए उसे दोषी ठहराते हैं, बजाए इसके कि परमेश्वर द्वारा हमें दी गई अद्भुत आशीषों, उसकी लगातार बनी रहने वाली देख-रेख, उसके प्रेम और दया के लिए, उसके द्वारा दिए गए उद्धार के मार्ग के लिए उसके धन्यवादी हों। जब हम जीवन की छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान होते हैं और परमेश्वर को दोष देते हैं तो उस माँ के समान ही हम भी परमेश्वर से पूछ रहे होते हैं "अरे आप जौनी की टोपी कहाँ छोड़ आए?"

   प्रेरित पौलुस ने लिखा "हर बात में धन्यवाद करो: क्‍योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्‍छा है" (१ थिस्सलुनीकियों ५:१८)। चाहे हमें अपने जीवन में घटित होने वाली हर बात के लिए धन्यवाद करना कठिन लगे, किंतु हम हर परिस्थिति में एक धन्यवादी मन रख सकते हैं। हमारी इच्छानुसार यदि कोई कार्य नहीं भी हो, या कोई अप्रत्याशित घटना हमें दुखी कर दे तो भी हम इस बात में विश्वास रख कर कि परमेश्वर हर बात में हमारे लिए भलाई ही उत्पन्न करेगा (रोमियों ८:२८) और अब तक के उसके प्रेम, उसकी भलाइयों के लिए हम उसके धन्यवादी रह सकते हैं। एक धन्यवादी मन ही परमेश्वर के योग्य बलिदान है और अशीषित जीवन जीने के लिए सही रवैया भी। - डेविड रोपर


अपनी समस्याओं में उलझे रहने की बजाए परमेश्वर का धन्यवादी होने में समय बिताएं।

मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूंगा, और तेरी स्तुति अधिक अधिक करता जाऊंगा। - भजन ७१:१४

बाइबल पाठ: भजन ४२
Psa 42:1  जैसे हरिणी नदी के जल के लिये हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हांफता हूं। 
Psa 42:2  जीवते ईश्वर परमेश्वर का मैं प्यासा हूं, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा? 
Psa 42:3  मेरे आंसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 
Psa 42:4  मैं भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करने वाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है। 
Psa 42:5  हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।
Psa 42:6  हे मेरे परमेश्वर, मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिये मैं यर्दन के पास के देश से और हर्मोन के पहाड़ों और मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूं। 
Psa 42:7  तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगों और लहरों में मैं डूब गया हूं। 
Psa 42:8  तौभी दिन को यहोवा अपनी शक्ति और करूणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊंगा, और अपने जीवनदाता ईश्वर से प्रार्थना करूंगा।
Psa 42:9  मैं ईश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूंगा, तू मुझे क्यों भूल गया? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे क्यों शोक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं? 
Psa 42:10  मेरे सताने वाले जो मेरी निन्दा करते हैं मानो उस में मेरी हडि्डयां चूर चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 
Psa 42:11  हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।

एक साल में बाइबल: 
  • योएल १-३ 
  • प्रकाशितवाक्य ५