ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

व्यस्त या उपयोगी?


   हमसे संपर्क बढ़ाने वाले कभी कभी पूछते हैं "क्या आप व्यस्त हैं?" प्रश्न तो सामान्य है और उसमें कोई हानि की बात भी प्रतीत नहीं होती, किंतु मेरे मन में इस प्रश्न के कारण कुछ और बातें उठती हैं। मुझे लगता है कि इस प्रश्न के उत्तर में यदि मैं पूछने वाले को तुरन्त ही ऐसे कार्यों की एक लंबी सूची नहीं दे पाता जो मुझे अभी करने हैं तो मैं यह स्वीकार कर रहा हूँ कि मैं कुछ विशेष उपयोगी नहीं हूँ, मेरा कोई खास मूल्य नहीं है।

   किंतु क्या परमेश्वर भी हमें इससे ही आंकता है कि हम कितने व्यस्त हैं और हमने क्या कुछ करने पाए हैं? क्या वह हमें इस बात पर पुरुस्कार देता है कि हमने अपना और अपने परिवार का ध्यान रखे बिना, थक कर चूर होते हुए भी कार्य करना ज़ारी रखा है? क्या व्यक्ति के मूल्यांकन के उसके मापदण्ड भी संसार के समान ही हैं?

   अपने बचपन में, परमेश्वर के वचन बाइबल के पदों से जो आरंभिक पद मैं ने सीखे थे उनमें से एक प्रभु यीशु मसीह द्वारा कही गई बात थी मत्ती ११:२८: "हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।" बचपन में मेरे लिए इस पद का कोई विशेष अर्थ नहीं था क्योंकि मैं थकान और व्यस्तता नहीं जानती थी। लेकिन अब जब मैं व्यसक हूँ तो संसार तथा साथ के अन्य लोगों से कहीं पीछे ना रह जाऊँ, इसलिए उन के समान कार्य करने और वैसे ही व्यस्त रहने की इच्छा बार बार मुझ पर हावी होना चाहती है।

   लेकिन प्रभु यीशु के अनुयायियों को ऐसी मनसा के साथ जीने की आवश्यक्ता नहीं है। यह नहीं कि उन्हें मेहनत नहीं करनी है और बैठे-बिठाये ही उन्हें सब कुछ मिलता रहेगा; परन्तु उन्हें इस बात को ध्यान करते हुए कार्य करना है कि उनके प्रभु ने उन्हें ना केवल पाप के दासत्व से मुक्ति दी है वरन इस धारणा से भी कि उसकी दृष्टि में उनका मूल्य इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वे अपने आप तथा अपने परिवार को कितना नज़रंदाज़ करते हैं और अपने आप को कितना थकाते तथा निढ़ाल करते हैं।

   परमेश्वर के नाम से बहुत सा कार्य करने के द्वारा हम अपनी दृष्टि में मूल्यवान हो सकते हैं, लेकिन परमेश्वर हमें तब मूल्यवान मानता है जब हम उसे, हम में होकर वह कार्य करने देते हैं जो वह हम में चाहता है - कि हम उसके पुत्र, हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के स्वरूप में ढलें (रोमियों ८:२८-३०)।

   परमेश्वर को हमारी सामर्थ और योग्यताओं की नहीं हमारी आवश्यक्ता है। जो उसके हाथों में पूर्णतः समर्पित हैं उन्हें वह अपनी सामर्थ और अपनी योग्यताओं से भरकर अपने लिए उपयोगी बना लेता है। - जूली ऐकैरमैन लिंक


हमारा मूल्य इस से नहीं कि हम परमेश्वर के नाम में क्या क्या करते हैं, वरन इस से है कि उसने हम में क्या और हमारे लिए क्या कुछ किया है।

क्‍योंकि जिन्‍हें उस ने पहिले से जान लिया है उन्‍हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्‍वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। फिर जिन्‍हें उन से पहिले से ठहराया, उन्‍हें बुलाया भी, और जिन्‍हें बुलाया, उन्‍हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्‍हें धर्मी ठहराया, उन्‍हें महिमा भी दी है। - रोमियों ८:२९-३०

बाइबल पाठ: मत्ती ११:२५-३०
Mat 11:25  उसी समय यीशु ने कहा, हे पिता, स्‍वर्ग और पृथ्वी के प्रभु; मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा दखा, और बालकों पर प्रगट किया है। 
Mat 11:26  हां, हे पिता, क्‍योंकि तुझे यही अच्‍छा लगा। 
Mat 11:27   मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे। 
Mat 11:28   हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। 
Mat 11:29  मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्‍योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। 
Mat 11:30  क्‍योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है।

एक साल में बाइबल: 

  • यशायाह २०-२२ 
  • इफिसियों ६