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रविवार, 16 सितंबर 2012

एक और इतवार?


   एक इतवार चर्च के बाद, दोपहर के समय, मैं अपने पड़ौस में टहलने निकला। एक पडौसी अपने घर के सामने, सड़क के किनारे की घास काट रहा था और हम दोनो ने एक दुसरे से औपचारिकता वाला ’नमस्कार; कैसे हैं’ कहा; उसने उत्तर दिया, ’बस एक और इतवार’ बाद में मैं सोचने लगा कि ऐसा कहने से उसका क्या तात्पर्य था? क्या वह कहना चाह रहा था कि, ’कुछ विशेष नहीं, मैं तो हमेशा की तरह, अपनी नित्यक्रियाएं ही पूरी कर रहा हूँ।’

   कई बार लोगों के लिए चर्च जाना भी एक नित्यकर्म बन कर रह जाता है; बस एक और इतवार, एक और बार उन्हीं क्रियाओं का वैसे ही दोहराया जाना, इससे अधिक कुछ नहीं। लेकिन आरंभिक चर्च में ऐसा नहीं था (प्रेरितों २:४१-४७)। लोगों का परमेश्वर की आराधना के लिए एक साथ जमा होना उनके लिए एक आनन्द और उत्तेजना का विषय होता था। उस समय चर्च आरंभ ही हुआ था और सभी नए विश्वासी थे, इसलिए वे सभी उत्साहित रहते थे। लेकिन हमारे लिए क्या है? हम इतवार कि आराधना को उत्साहवर्धक और आनन्दमय बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? यदि पहले चर्च की वह उत्सुक्ता और परमेश्वर की उपस्थिति में होने का एहसास हमारे साथ हो तो पहले चर्च वाली उत्तेजना और आनन्द भी हमारे साथ रहेगा। 

   प्रत्येक इतवार हम व्यक्तिगत रीति से कम से कम चार बातें अपने लिए अवश्य कर सकते हैं:

   १. परमेश्वर के साथ मिलने के पूर्वाभास के साथ जाएं। यद्यपि परमेश्वर हर समय हमारे साथ रहता है (इब्रानियों १३:५), लेकिन जब हम उसके चाहने और जानने वालों के साथ सामूहिक रूप से एकत्रित होते हैं तो उसकी एक विशेष उपस्थिति वहां पर होती है (मत्ती १८:२०; याकूब ४:८)। ऐसे में हम एक दूसरे के साथ और परमेश्वर के साथ अपने बोझ और अपने धन्यवाद तथा आराधना की बातें बांट सकते हैं, एक दूसरे के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और एक दुसरे के लिए परमेश्वर का धन्यवाद कर सकते हैं।

   २. परमेश्वर के बारे में सीखने की इच्छा से जाइए। परमेश्वर के वचन के सत्य हमें सदा ही प्रोत्साहित करने और मार्ग दिखाने वाले होते हैं (भजन ११९:१०५)। परमेश्वर से उसकी बात सुनने सीखने की मनसा और इस इच्छा के अनुसार तैयार किया गया मन, आते दिनों के लिए परमेश्वर के वचन से कुछ न कुछ नया मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करेगा।

   ३. दूसरों के साथ संगति करने की इच्छा से जाईए। मसीही विश्वास की इस यात्रा में हमें एक दुसरे के साथ की आवश्यक्ता है। एक दुसरे को प्रोत्साहित करने, विश्वास में बढ़ने में उत्तेजित करने और एक दूसरे के लिए प्रार्थनाएं करने से हम एक दुसरे को इस यात्रा में प्रोत्साहित कर सकते हैं, एक दूसरे का साथ निभा सकते हैं (इब्रानियों १०:२४-२५); उन्हें अकेलेपन या भटकने से बचा कर रख सकते हैं।

   ४. परमेश्वर से प्रार्थना के साथ जाएं कि वह हमारे मनों को तैयार करे, एक नया जोश हम में भरे, कि यह हमारे लिए ’बस एक और इतवार’ न बने। - ऐने सेटास


यदि आप आत्मिक भोजन से तृप्त होना चाहते हैं तो परमेश्वर के वचन की भूख के साथ चर्च जाएं।

और वे प्ररितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे। - प्रेरितों २:४२

बाइबल पाठ: प्रेरितों २:४१-४७
Act 2:41  सो जिन्‍होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्‍होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए। 
Act 2:42   और वे प्ररितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।
Act 2:43  और सब लोगों पर भय छा गया, और बहुत से अद्भुत काम और चिन्‍ह प्रेरितों के द्वारा प्रगट होते थे। 
Act 2:44  और वे सब विश्वास करने वाले इकट्ठे रहते थे, और उन की सब वस्‍तुएं साझे की थीं। 
Act 2:45   और वे अपनी अपनी सम्पत्ति और सामान बेच बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती थी बांट दिया करते थे। 
Act 2:46  और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्‍दिर में इकट्ठे होते थे, और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्‍द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे। 
Act 2:47  और परमेश्वर की स्‍तुति करते थे, और सब लोग उन से प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता था।

एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन २५-२६ 
  • २ कुरिन्थियों ९