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मंगलवार, 20 मार्च 2012

विवाह

   विवाह परमेश्वर की ओर से दिया गया वह संस्थान है जो एक महान मिलन पर आधारित है। यह पवित्र और गंभीर है, स्त्री तथा पुरुष को एक अद्भुत एकता में बांधता है और मानव जाति की बढ़ोतरी, समाज की उन्नति तथा समाज में नैतिक मूल्यों के बने रहने का आधार है। समस्त संसार का इतिहास गवाह है कि जहाँ कहीं विवाह के पवित्र और गंभीर संबंध की अवहेलना करी गई है और इसे हल्के या छिछोरे रूप में लिया गया है, उस परिवार और समाज में गिरावट ही आई है और उस सभ्यता का पतन ही हुआ है। परमेश्वर इस संबंध की गरिमा को कितनी गंभीरता से लेता है, तथा इसकी पवित्रता को कितना बहुमूल्य आंकता है, इस बात का अंदाज़ा हम इसी से लगा सकते हैं कि परमेश्वर ने अपने और अपनी प्रजा के संबंध तथा प्रभु यीशु मसीह और उसकी मण्डली के आपसी संबंध को स्त्री-पुरुष के विवाह के संबंध द्वारा समझाया: "क्योकि तेरा कर्त्ता तेरा पति है, उसका नाम सेनाओं का यहोवा है; और इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ाने वाला है, वह सारी पृथ्वी का भी परमेश्वर कहलाएगा" (यशायाह ५४:५); " हे पतियों, अपनी अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया" (इफिसियों ५:२५)।

   परमेश्वर का वचन बाइबल हमें इस पवित्र संबंध और इससे जुड़ी परमेश्वर की मनशा के बारे में बहुत कुछ बताती है; उदाहरणस्वरूप:
  •    विवाह दो भिन्न परिवारों से लेकर एक नए परिवार की स्थापना है: "इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे" (इफिसियों ५:३१)।
  •    विवाह परमेश्वर द्वारा दी गई शरीर की इच्छा की पूर्ति की पवित्र एवं लाभकारी विधि है: "परन्‍तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरूष की पत्‍नी, और हर एक स्त्री का पति हो; तुम एक दूसरे से अलग न रहो, परन्‍तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे" (१ कुरिन्थियों ७:२, ५)।
  •    विवाह द्वारा एक परस्पर सहायक जोड़ी बनती है "भली पत्नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूंगों से भी बहुत अधिक है। उसके पति के मन में उसके प्रति विश्वास है।.... वह अपने जीवन के सारे दिनों में उस से बुरा नहीं, वरन भला ही व्यवहार करती है" (नीतिवचन ३१:१०, १२)।
   
विवाह परमेश्वर द्वार दी गई विधि है जिसमें एक स्त्री और एक पुरुष एक साथ लाए जाकर एक ऐसे संबंध में जोड़े जाते हैं जिससे परमेश्वर का आदर और समाज की सहायता तथा उन्नति होती है। परमेश्वर की इच्छानुसार किया गया विवाह परमेश्वर की महिमा के लिए दो व्यक्तियों को जोड़ता है और उसी की महिमा के लिए एक नया परिवार बनाता है।

   अपने जीवन और समाज में विवाह कि पवित्रता और गरिमा को कभी कम ना होने दें। - डेव ब्रैनन

परमेश्वर ने पति और पत्नी को एक दुसरे के पूरक होने के लिए बनाया है।
 
इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे। - इफिसियों ५:३१
 
बाइबल पाठ: इफिसियों ५:२१-३३
Eph 5:21  और मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो।
Eph 5:22  हे पत्‍नियों, अपने अपने पति के ऐसे अधीन रहो, जैसे प्रभु के।
Eph 5:23  क्‍योंकि पति पत्‍नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है।
Eph 5:24  पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्‍नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें।
Eph 5:25  हे पतियों, अपनी अपनी पत्‍नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।
Eph 5:26  कि उस को वचन के द्वारा जल के स्‍नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए।
Eph 5:27  और उसे एक ऐसी तेजस्‍वी कलीसिया बनाकर अपने पास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न झुर्री, न कोई ऐसी वस्‍तु हो, वरन पवित्र और निर्दोष हो।
Eph 5:28  इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्‍नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है।
Eph 5:29  क्‍योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा वरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है;
Eph 5:30   इसलिये कि हम उस की देह के अंग हैं।
Eph 5:31  इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे।
Eph 5:32   यह भेद तो बड़ा है, पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूं।
Eph 5:33  पर तुम में से हर एक अपनी पत्‍नी से अपने समान प्रेम रखे, और पत्‍नी भी अपने पति का भय माने।
 
एक साल में बाइबल: 
  • यहोशू ४-६ 
  • लूका १:१-२०