ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

कमज़ोरी में सामर्थ

   कोई कमज़ोर दिखन नहीं चाहता, इसलिए हम सब किसी न किसी प्रकार से सामर्थी दिखने के प्रयास करते हैं। कोई भावनाओं के आवेश से दूसरों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है तो कोई अपने व्यक्तित्व या बुद्धि से। यद्यपि ये बातें सामर्थ का भ्रम उत्पन्न करतीं हैं किंतु वास्तव में ये सब कमज़ोरी की निशानियाँ हैं।

   जो वास्तव में सामर्थी होते हैं वे अपनी सीमाओं को मान लेने से नहीं हिचकिचाते और ना ही अपनी कमज़ोरियों के प्रकट होने से घबराते हैं। उन्हें अपनी सामर्थ के लिए परमेश्वर पर अपने निर्भर होने को बताने में कोई संकोच नहीं होता। इसलिए वास्तविक सामर्थ अकसर संसार को कमज़ोरी प्रतीत होती है। जब प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर से प्रार्थना करी कि उसकी व्यथा जो उसे परेशान कर रही थी उससे दूर हो जाए तो परमेश्वर का उत्तर था "...मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है, क्‍योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है"; परमेश्वर से इस अप्रत्याशित उत्तर को पाकर पौलुस की प्रतिक्रिया और भी विसमित करने वाली थी; उसने कहा "...इसलिये मैं बड़े आनन्‍द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्‍ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लि्ये निर्बलताओं, और निन्‍दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं, क्‍योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्‍त होता हूं" (२ कुरिन्थियों १२:९-१०)।

   प्रभु यीशु की इस पृथ्वी पर शारीरिक रूप में सेवकाई के अन्त के निकट उनके कुछ चेलों में, आते दिनों और समयों के लिए, प्रमुख स्थान पाने की होड़ लग गई। प्रभु यीशु ने इस बात को लेकर उनके आपसी विवाद को अवसर बनाया उन्हें समझाने का कि उसके राज्य में संसार के राज्य से बात अलग होती है, प्रमुख होने के तरीके भिन्न हैं: प्रभु यीशु ने उन्हें बताया कि परमेश्वर के राज्य में बड़ा वही है जो जानबूझकर कमज़ोरी और निम्नता का स्वरूप ले लेता है (मत्ती २०:२६)।

   यह एक कटु सत्य है और इसे स्वीकार कर लेना आसान नहीं है क्योंकि कमज़ोरी की सच्चाई को मानने कि बजाए सामर्थ के छल को दिखाना ही लोग अधिक पसन्द करते हैं और अपने जीवनों में यही निभाते रहते हैं। किंतु परमेश्वर चाहता है कि हम इस बात का एहसास करें कि सच्ची सामर्थ तभी आती है जब हम लोगों को नियंत्रित करने के प्रयासों की बजाए उनकी सेवा करने के अवसर ढ़ूंढने लगें और प्रयास करने लगें। - जूली एकरमैन लिंक


हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी में परमेश्वर की सबसे बड़ी सामर्थ प्रकट हो सकती है।

परन्‍तु तुम में ऐसा न होगा; परन्‍तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। - मत्ती २०:२६
 
बाइबल पाठ: मत्ती २०:२०-२८
Mat 20:20 जब जब्‍दी के पुत्रों की माता ने अपने पुत्रों के साथ उसके पास आकर प्रणाम किया, और उस से कुछ मांगने लगी।
Mat 20:21 उस ने उस से कहा, तू क्‍या चाहती है? वह उस से बोली, यह कह, कि मेरे ये दो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरे दाहिने और एक तेरे बाएं बैठें।
Mat 20:22 यीशु ने उत्तर दिया, तुम नहीं जानते कि क्‍या मांगते हो जो कटोरा मैं पीने पर हूं, क्‍या तुम पी सकते हो? उन्‍होंने उस से कहा, पी सकते हैं।
Mat 20:23  उस ने उन से कहा, तुम मेरा कटोरा तो पीओगे पर अपने दाहिने बाएं किसी को बिठाना मेरा काम नहीं, पर जिन के लिये मेरे पिता की ओर से तैयार किया गया, उन्हीं के लिये है।
Mat 20:24  यह सुनकर, दसों चेले उन दोनों भाइयों पर क्रुद्ध हुए।
Mat 20:25 यीशु ने उन्‍हें पास बुलाकर कहा, तुम जानते हो, कि अन्य जातियों के हाकिम उन पर प्रभुता करते हैं, और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं।
Mat 20:26 परन्‍तु तुम में ऐसा न होगा; परन्‍तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने।
Mat 20:27 और जो तुम में प्रधान होना चाहे वह तुम्हारा दास बने।
Mat 20:28 जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल की जाए, परन्‍तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे और बहुतों की छुडौती के लिये अपने प्राण दे।
 
एक साल में बाइबल: 
  • गिनती १७-१९ 
  • मरकुस ६:३०-५६