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सोमवार, 12 दिसंबर 2011

मन से मूँह तक

   शरीर की एक व्याधि होती है एफेज़िया (Aphasia), जिस से पीड़ित रोगी बोल नहीं पाता। बोलने में बाधा मूँह अथवा जीभ कि किसी कमज़ोरी या रोग के कारण नहीं वरन मस्तिष्क और मूँह के बीच तालमेल की कमी के कारण  होती है। किसी चोट अथवा बिमारी के कारण मस्तिष्क में बोलने के लिए सोचे गये शब्द का सन्देश जीभ तक नहीं पहुंच पाता, और बोलने की सामर्थ तथा मस्तिष्क में सोचने की शक्ति ठीक होने पर भी, एफेज़िया रोगी द्वारा सोचा और चाहा गया बोला नहीं जाता।

   इस से मिलता जुलता आत्मिक रोग बहुतेरे मसीही विश्वासियों को भी जकड़े रहता है। वे मसीह यीशु को जानते हैं, परन्तु उसके बारे में किसी से कुछ कहते नहीं। वे परमेश्वर के उद्धार के मार्ग और योजना को जानते हैं परन्तु किसी को उसके बारे में बताते नहीं। वे उन आरंभिक मसीही विश्वासियों द्वारा प्रदर्शित उस उत्साह को नहीं दिखाते जिसके अन्तर्गत उन विश्वासियों ने, मसीह यीशु में उद्धार के प्रचार के लिए उन पर लाए गए उत्पीड़न के समय कहा, "क्‍योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें" (प्रेरितों ४:२०)।

   ज्ञान और गवाही के मध्य इस बाधित संबंध को ठीक किया जाना अनिवार्य है। बहुत बार भय इस संबंध के खराब होने का कारण होता है, या, हमारे जीवन का छिपा पाप हम में मसीह के बारे में बोलने की स्वतंत्रता आने नहीं देता। जब मसीही विश्वासी केवल पवित्र आत्मा की सामर्थ पर निर्भर रहते हैं, और अपने पाप का अंगीकार कर के उसका परित्याग करते हैं, तब ही वे निर्बाध रूप से मसीह यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार का सुसमाचार बाँट सकते हैं।

   अपने स्वर्गारोहण से तुरंत पूर्व, प्रभु यीशु ने अपने चेलों को इस सुसमाचार को समस्त संसार में ले जा पाने की सामर्थ से परिपूर्ण होने का वायदा किया (प्रेरितों १:८)। यह सामर्थ है परमेश्वर के पवित्र आत्मा का प्रत्येक मसीही विश्वासी के अन्दर निवास करना, और यह सामर्थ परमेश्वर द्वारा प्रत्येक विश्वासी को उसके उद्धार के साथ दान दी गई है। किंतु यदि हम पवित्र आत्मा को शोकित करते हैं अथवा बुझा देते हैं तो उसकी सामर्थ भी हमारे जीवनों में कार्यकारी नहीं हो सकेगी और हम मसीह के सच्चे और प्रभावी गवाह भी नहीं बन सकेंगे।

   मसीह यीशु में विश्वास द्वारा पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार को लगातार हम मसीही विश्वासियों में से अपने आस-पास तथा संसार में प्रवाहित होते रहना है। आत्मिक एफेज़िया कभी हमारी गवाही को बन्द करने ना पाए।

   प्रत्येक मसीही विश्वासी के ना केवल मस्तिष्क से मूँह का, वरन मन से मूँह तक का मार्ग भी कभी अवरुद्ध नहीं होना चाहिए। - पौल वैन गोर्डर


यदि परमेश्वर का वचन हमारे मन में बसा हुआ है, तो वह समय और आवश्यक्ता अनुसार उपयुक्त शब्द हमारे मूँह में भी देगा।

परन्‍तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्‍तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं। जिन को हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्‍तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिला कर सुनाते हैं। - १ कुरिन्थियों २:१२, १३

बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों २:९-१६
1Co 2:9  परन्‍तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुनी, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं।
1Co 2:10  परन्‍तु परमेश्वर ने उन को अपने आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्‍योंकि आत्मा सब बातें, वरन परमेश्वर की गूढ़ बातें भी जांचता है।
1Co 2:11  मनुष्यों में से कौन किसी मनुष्य की बातें जानता, केवल मनुष्य की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेवर का आत्मा।
1Co 2:12  परन्‍तु हम ने संसार की आत्मा नहीं, परन्‍तु वह आत्मा पाया है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
1Co 2:13  जिन को हम मनुष्यों के ज्ञान की सिखाई हुई बातों में नहीं, परन्‍तु आत्मा की सिखाई हुई बातों में, आत्मिक बातें आत्मिक बातों से मिला मिला कर सुनाते हैं।
1Co 2:14  परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्‍योंकि वे उस की दृष्‍टि में मूर्खता की बातें हैं, और न वह उन्‍हें जान सकता है क्‍योंकि उन की जांच आत्मिक रीति से होती है।
1Co 2:15  आत्मिक जन सब कुछ जांचता है, परन्‍तु वह आप किसी से जांचा नहीं जाता।
1Co 2:16  क्‍योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाए परन्‍तु हम में मसीह का मन है।
 
एक साल में बाइबल: 
  • होशे ९-११ 
  • प्रकाशितवाक्य ३