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रविवार, 21 अगस्त 2011

प्रतीक्षा में समय लगता है

हमारी सदी "तुरंत" की सदी है। हमें प्रत्येक चीज़ तुरंत चाहिए। हमने तुरंत तैयार होने वाले भोजन और पेय बना लिए हैं; किसी से भी, चाहे वह जन किसी सुदूर स्थान पर ही हो, तुरंत बात कर सकने की क्षमता उपलब्ध कर ली है। हमें हर बात में हर नतीजा तुरंत ही चाहिए, चाहे वह शारीरिक इलाज हो या आत्मिक उन्नति। संभवतः इसीलिए हम परमेश्वर के साथ धीरज से बैठने को भूल चुके हैं और हम अपनी तुरंत आत्मिक बढ़ोतरी चाहते हैं। लेकिन परिपक्वता समय के साथ ही आती है, उसके लिए कोई तुरंत कारगर उपाय नहीं है, जो हमें सारे अनुभव एक साथ ही दे सके।

एक पादरी ने एक गृहणी के बारे में बताया जो उसके पास अपनी गंभीर पारिवारिक समस्या ले कर सलाह के लिए आई थी। पादरी ने उसे उत्तर दिया, "तुम्हारे पास दो रास्ते खुले हैं। एक तो है कि तुम बात को अपने हाथ में ले लो और अपनी समझ के अनुसार निर्णय कर लो; लेकिन इसका नतीज होगा तुम्हारा टूटा परिवार। दूसरा मार्ग परमेश्वर का मार्ग है; बात को उसके हाथ में छोड़ दो, उसके समय की प्रतीक्षा करो। ऐसा करने में तुम्हारा धीरज अवश्य ही गंभीरता से परखा तो जाएगा लेकिन अन्त में तुम्हें एक स्थिर और संतोषजनक उत्तम परिणाम भी मिलेगा।" वह गृहणी पादरी की बात समझ गई, उसकी बात को स्वीकार कर के मान लिया और वह अपनी समस्या परमेश्वर के हाथ में सौंप कर विश्वासयोग्यता से परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करने लगी। धीरे धीरे उसने देखा कि परमेश्वर उसके घर की परिस्थितियों को बदलता जा रहा है, और उसका विश्वास भी बढ़ता गया, और अन्ततः उसने अपनी स्मस्याओं का स्थिर और संतोषजनक उत्तम हल पा लिया।

धीरज धरने का अर्थ चुपचाप बैठ कर प्रतीक्षा करना नहीं है, लेकिन हर परिस्थिति में परमेश्वर पर विश्वास रख कर उसके वचन और आज्ञानुसार अपने को चलाते रहना है; जो कई दफा आसान नहीं होता, और ऐसा करने में बहुत इच्छाशक्ति की सामर्थ चाहिए होती है।

जब विकराल समस्याओं से सामना हो और घबराहट हावी होने लगे तो स्मरण रखें कि हमारा स्वर्गीय पिता उनके पक्ष में कार्य करता है जो उसकी प्रतीक्षा करते हैं; "क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न काल से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपनी बाट जोहने वालों के लिये काम करे" - यशायाह ६४:४। - पौल वैन गोर्डर


लगातर संयम द्वारा ही हम विजयी होते हैं।

हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है। - भजन ६२:५


बाइबल पाठ: भजन ६२

Psa 62:1 सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेरश्वर की ओर मन लगाए हूं; मेरा उद्धार उसी से होता है।
Psa 62:2 सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; मैं बहुत न डिगूंगा।
Psa 62:3 तुम कब तक एक पुरूष पर धावा करते रहोगे, कि सब मिल कर उसका घात करो? वह तो झुकी हुई भीत वा गिरते हुए बाड़े के समान है।
Psa 62:4 सचमुच वे उसको, उसके ऊंचे पद से गिराने की सम्मति करते हैं; वे झूठ से प्रसन्न रहते हैं। मुंह से तो वे आशीर्वाद देते पर मन में कोसते हैं।
Psa 62:5 हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है।
Psa 62:6 सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; इसलिये मैं न डिगूंगा।
Psa 62:7 मेरा उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्वर है; मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्वर है।
Psa 62:8 हे लोगो, हर समय उस पर भरोसा रखो; उस से अपने अपने मन की बातें खोल कर कहो; परमेश्वर हमारा शरणस्थान है।
Psa 62:9 सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; तौल में वे हलके निकलते हैं; वे सब के सब सांस से भी हलके हैं।
Psa 62:10 अन्धेर करने पर भरोसा मत रखो, और लूट पाट करने पर मत फूलो; चाहे धन सम्पति बढ़े, तौभी उस पर मन न लगाना।
Psa 62:11 परमेश्वर ने एक बार कहा है और दो बार मैं ने यह सुना है: कि सामर्थ्य परमेश्वर का है।
Psa 62:12 और हे प्रभु, करूणा भी तेरी है। क्योंकि तू एक एक जन को उसके काम के अनुसार फल देता है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १०७-१०९
  • १ कुरिन्थियों ४