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रविवार, 10 जुलाई 2011

भय की प्राथमिकताएं

मैंने एक प्रचारक को कहते सुना कि हमें केवल परमेश्वर से भय रखना चाहिए, यद्यपि उसके कहने का तातपर्य सही था, तो भी मैं उससे पूर्णतः सहमत नहीं हूँ। परमेश्वर के वचन बाइबल में ही प्रेरित पतरस द्वारा परमेश्वर के आत्मा ने लिखवाया है कि सेवक अपने स्वामियों के भय में रहें (१ पतरस २:१८) और पौलुस प्रेरित द्वारा लिखवाया कि बुराई करने वालों को सामाजिक अधिकारियों के भय में रहना चाहिए (रोमियों १३:४)। यह हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हम जिन बातों का भय रखते हैं उनकी सही प्राथमिकताएं भी रखें और उन सही प्राथमिकताओं के अनुसार भय को निभाएं।

एक युवक ने मुझे अपने अनुभव के बारे में बताया, उसके मित्र उसे नशीले पदार्थों के सेवन के लिए उकसा रहे थे, उसे भय था कि यदि उसने उनकी ना मानी तो वे उसे कायर समझेंगे; लेकिन इससे भी अधिक भय उसे इस बात से था कि यदि उसने उन पदार्थों को लेना आरंभ कर दिया तो उसका परिणाम क्या होगा। अपने भय की सही प्राथमिकताओं के कारण ही वह बुरी आदत और उसके दुषपरिणामों से बच सका। एक सैनिक ने अपने युद्ध भूमि के अनुभव बताए। उसने अपनी स्वेच्छा से एक बहुत खतरनाक मुहिम पर जाने की रज़ामन्दी अपनी टुकड़ी के नायक को दी। उसने माना कि उस मुहिम पर जाने के लिए उसे भय तो बहुत था लेकिन उस भय से भी अधिक भय इस बात का था कि यदि दुशमन जीत गया तो क्या परिणाम होगा। भय की प्राथमिकताओं ने ही इन दोनो जवानों को सही निर्णय लेने की प्रेरणा दी।

बाइबल हमें सिखाती है कि हमारा सब से बड़ा भय होना चाहिए परमेश्वर को अप्रसन्न करने का भय। यह वह भय है जिसे सदा हमारे प्राणों के भय से भी बढ़कर रहना चाहिए। यदि एक मसीही विश्वासी के सामने बुराई करने अथवा पीड़ा उठाने या प्राण गंवाने की परिस्थिति हो तो निसन्देह, बिन झिझके उसे परमेश्वर की आज्ञाकारिता के लिए पीड़ा उठाने या प्राणों का जोखिम उठाने को चुनना चाहिए, ना कि बुराई के लिए समझौता करने को। प्रभु यीशु ने अपने चेलों से कहा, "जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है" (मत्ती १०:२८)।

भय हमारे जीवन का एक भाग है। यदि हम भय की प्राथमिकताएं बनाना सीख जाएं और परमेश्वर के भय को सदा सर्वोपरी रखें तो भय हमारे लिए लाभ का कारण बन जाएगा। - हर्ब वैन्डर लुग्ट


मनुष्यों के भय से लज्जा किंतु परमेश्वर के भय से विवेक जागृत होता है।

इसलिये हर एक का हक चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; जिस से डरना चाहिए, उस से डरो; जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो। - रोमियों १३:७



बाइबल पाठ: रोमियों १३:१-७

Rom 13:1 हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे, क्‍योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो, और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।
Rom 13:2 इस से जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करने वाले दण्‍ड पाएंगे।
Rom 13:3 क्‍योंकि हाकिम अच्‍छे काम के नहीं, परन्‍तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं; सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्‍छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी;
Rom 13:4 क्‍योंकि वह तेरी भलाई के लिये परमेश्वर का सेवक है। परन्‍तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्‍योकि वह तलवार व्यर्थ लिये हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करने वाले को दण्‍ड दे।
Rom 13:5 इसलिये अधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्‍तु डर से अवश्य है, वरन विवेक भी यही गवाही देता है।
Rom 13:6 इसलिये कर भी दो, क्‍योंकि वे परमश्‍ेवर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।
Rom 13:7 इसलिये हर एक का हक चुकाया करो, जिस कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; जिस से डरना चाहिए, उस से डरो; जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।

एक साल में बाइबल:
  • अय्युब ४१-४२
  • प्रेरितों १६:२२-४०