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शुक्रवार, 17 जून 2011

बाइबल से समस्याएं

एक बाइबल कॉलेज के शिक्षक ने नए आए छात्रों की पहली क्लास में आकर एक छात्र से पूछा, "श्रीमान, क्या आपको बाइबल से कोई समस्या है?" नए छात्र ने बड़े हियाव से उत्तर दिया, "जी नहीं!" शिक्षक ने उससे कहा, "तब तो आप को बाइबल पढ़ना आरंभ कर देना चाहिए। यदि पढ़ेंगे तो अवश्य ही समस्याएं भी होंगीं।"

यह बात बिलकुल सत्य है; ध्यान पूर्वक बाइबल पढ़ने वालों के मन में प्रश्न अवश्य ही उठते हैं। प्रभु यीशु के एक चेले पतरस प्रेरित ने पौलुस प्रेरित की पत्रियों के बारे में अपनी पत्री में लिखा, "और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसे हमारे प्रिय भाई पौलुस न भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है। वैसे ही उस ने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है जिन में कितनी बातें ऐसी हैं, जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन के अर्थों को भी पवित्र शास्‍त्र की और बातों की नाईं खींच तान कर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं" (२ पतरस ३:१५, १६)।

बाइबल अध्ययन करते समय अनेक बार हमें उस समय किसी सत्य का कोई एक ही पहलु दिखाई देता है, या हमें किसी बात में कोई विरोधाभास दिखाई देता है। फिर, बाइबल अध्ययन हमारा ध्यान कई जटिल बातों की ओर ले जाता है, जैसे परमेश्वर द्वारा पहले से चुने जाना, मनुष्य की स्वतन्त्रता, बुराई का मूल, दुखों और क्लेशों के कारण आदि। लेकिन इन जटिलताओं के होने या उनका उत्तर न ढूंढ पाने के कारण हमारा विश्वास बाइबल की सच्चाईयों पर से न तो हटना चाहिए और न ही कमज़ोर पड़ना चाहिए। इन और ऐसे ही अन्य प्रश्नों का हमारे मनों में उठना इस बात को दर्शाता है कि बाइबल हमारे मनों से बात कर रही है और अपनी सच्चाई तथा खराई परखने के लिए हमें प्रेरित कर रही है।

बाइबल ही एक मात्र ऐसा धर्मग्रंथ है जो अन्धविश्वास के लिए नहीं वरन अध्ययन करने वाले द्वारा स्वयं परख कर जाँचने और तब विश्वास करने के लिए निमंत्रण देता है:
  • "सब बातों को परखो: जो अच्‍छी हैं उसे पकड़े रहो।" (१ थिसुलिनीकियों ५:२१);
  • "परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरूष जो उसकी शरण लेता है।" (भजन ३४:८);
  • "अब हम तेरे कहने ही से विश्वास नहीं करते क्‍योंकि हम ने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।" (युहन्ना ४:४२)

परमेश्वर चाहता है कि हम जिज्ञासा के साथ उसके पवित्र वचन बाइबल को पढ़ें क्योंकि जिज्ञासु मन ही खोजने वाला और सीखने का इच्छुक भी होता है। संभव है कि कभी हमारी जिज्ञासा की सम्पूर्ण सन्तुष्टी न भी हो, अथवा उस ही समय न हो। जो आज अस्पष्ट है, वह कल किसी अन्य अध्ययन में स्पष्ट हो सकता है या किसी अन्य के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। ऐसे में हमें अस्प्ष्ट अथवा अधूरी समझ में आई बातों पर अटके रह कर बाइबल पर शक करने कि बजाए बाइबल की स्पष्ट और अद्भुत बातों की ओर अपना ध्यान करना चाहिए और उन्हें अपने जीवनों में लागू करना चाहिए।

चाहे कोई भी समस्या हमें बाइबल की सच्चाईयों को पूर्णतः समझने में आड़े क्यों न आए, हम परमेश्वर के धन्यवादी हों कि उसने अपने वचन में हमें अपने बारे में इतना कुछ तो स्पष्ट बताया है कि हम उस पर अपना विश्वास ला सकते हैं, उसके सत्य के आधार पर अपने जीवन उसे समर्पित कर सकते हैं, उसकी सन्तान होने का आदर पा सकते हैं और स्वर्ग के वारिस बन सकते हैं। - डेनिस डी हॉन


बाइबल की सच्चाईयों को समझने में होने वाली कठिनाईयाँ का कारण परमेश्वर की गल्तियाँ नहीं, हमारी की अज्ञानता है।

गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं, परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिये हमारे और हमारे वंश में रहेंगी, इसलिये कि इस व्यवस्था की सब बातें पूरी ही जाएं। - व्यवस्थाविवरण २९:२९

बाइबल पाठ: २ पतरस ३:१४-१८

2Pe 3:14 इसलिये, हे प्रियो, जब कि तुम इन बातों की आस देखते हो तो यत्‍न करो कि तुम शान्‍ति से उसके साम्हने निष्‍कलंक और निर्दोष ठहरो।
2Pe 3:15 और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसे हमारे प्रिय भाई पौलुस न भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है।
2Pe 3:16 वैसे ही उस ने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है जिन में कितनी बातें ऐसी है, जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन के अर्थों को भी पवित्र शास्‍त्र की और बातों की नाईं खींच तान कर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं।
2Pe 3:17 इसलिये हे प्रियो तुम लोग पहिले ही से इन बातों को जान कर चौकस रहो, ताकि अधमिर्यों के भ्रम में फंस कर अपनी स्थिरता को हाथ से कहीं खो न दो।
2Pe 3:18 पर हमारे प्रभु, और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनुग्रह और पहचान में बढ़ते जाओ। उसी की महिमा अब भी हो, और युगानुयुग होती रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • नहेम्याह ७-९
  • प्रेरितों ३