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गुरुवार, 2 जून 2011

प्रशंसा की आवश्यक्ता

केन को उसके मित्र ने अपने घर भोजन पर बुलाया। भोजन तो बहुत बढ़िया था किंतु भोजन के बाद परोसा गया मिष्ठान इतना अच्छा नहीं था; लेकिन फिर भी केन को उस मिष्ठान की तारीफ करने के लिए कुछ अच्छा मिल गया और उसने तारीफ करी भी।

अगली बार जब केन अपने मित्र के घर भोजन पर आया तो फिर से भोजनोपरांत वैसा ही मिष्ठान परोसा गया, और इस बार यह मिष्ठान भोजन के समान ही लाजवाब था। केन बिना किसी भी प्रकार का एक भी शब्द कहे, परोसा हुआ सब कुछ खाता गया। अन्ततः उसके मित्र की पत्नी से रहा नहीं गया और वह बोल उठी, "पिछली बार जो मिष्ठान मैंने परोसा था, मैं स्वयं उससे शर्मिंदा थी, लेकिन आप ने उसकी तारीफ करी; इस बार जो मिष्ठान मैंने परोसा है, शायद उससे अच्छा मैंने इसे कभी नहीं बनाया, लेकिन आप ने उसके विष्य में कुछ भी नहीं कहा?" केन ने उत्तर दिया, "इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि आज जो आपने परोसा है वह लाजवाब है, और जो पिछली बार परोसा था वह इतना अच्छा नहीं था। चाहे प्रशंसा का कारण आज हो, लेकिन प्रशंसा की आवश्यक्ता तो उसी दिन थी।"

लोगों के साथ हमारे सबंध कुछ इसी तरह हैं - कुछ लोगों को अधिक प्रशंसा की आवश्यक्ता होती है, कुछ को कम। यदि कोई चीज़ वास्तव में बुरी है तो झूठे ही उसे भला कहने या उसकी प्रशंसा करना गलत है। लेकिन किसी व्यक्ति में कितनी भी त्रुटि अथवा अपूर्णता क्यों न हो, हम उसमें कोई न कोई प्रशंसा के योग्य गुण पा सकते हैं।

एक कुचला हुआ सरकण्डा या लौ रहित धुंआ देती हुई बाती किस काम की हो सकती है? कुचला सरकण्डा तो अपने आप ही सीधा नहीं रह सकता, वह किसी दूसरे को क्या सहारा देगा; धुंआ देती बाती से दीवार काली और साँस में धुंए की बेचैनी ही मिल सकती है, लेकिन प्रभु यीशु के लिए कहा गया, "यह मेरा सेवक है, जिसे मैं ने चुना है, मेरा प्रिय, जिस से मेरा मन प्रसन्न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूंगा और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा। वह न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा, और न बाजारों में कोई उसका शब्‍द सुनेगा। वह कुचले हुए सरकण्‍डे को न तोड़ेगा, और धूआं देती हुई बत्ती को न बुझाएगा, जब तक न्याय को प्रबल न कराए। और अन्यजातियां उसके नाम पर आशा रखेंगी। " - मती १२:१८-२१

हमारे चारों ओर निराशा से भरे लोग हैं। मसीही विश्वासी होने के कारण हमारी यह ज़िम्मादारी है कि अपने प्रभु के समान हम न किसी को तुच्छ जाने और न किसी का तिरिस्कार करें, इन कुचले हुए सरकंडों और धुंआ देती बातियों को भी उभारें। हमारा जरा सा प्रयास, एक सकरात्मक रवैया और थोड़ी सी प्रशंसा ऐसे हतोत्साहित लोगों को भी प्रोत्साहन देने में सक्षम है।

निराश लोगों में भी प्रशंसा के कारण खोजिए, समाज को इसकी बहुत आवश्यक्ता है।

जिस किसी के चेहरे पर आपको मुस्कान दिखाई न दे, उसे अपनी मुस्कान दे दीजिए।

उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है। - नीतिवचन १२:२५


बाइबल पाठ: नीतिवचन १२:१७-२८

Pro 12:17 जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है, परन्तु जो झूठी साक्षी देता, वह छल प्रगट करता है।
Pro 12:18 ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाई चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।
Pro 12:19 सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु झूठ पल ही भर का होता है।
Pro 12:20 बुरी युक्ति करने वालों के मन में छल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करने वालों को आनन्द होता है।
Pro 12:21 धर्मी को हानि नहीं होती है, परन्तु दुष्ट लोग भारी विपत्ति में डूब जाते हैं।
Pro 12:22 झूठों से यहोवा को घृणा आती है परन्तु जो विश्वास से काम करते हैं, उन से वह प्रसन्न होता है।
Pro 12:23 चतुर मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता है, परन्तु मूढ़ अपने मन की मूढ़ता ऊंचे शब्द से प्रचार करता है।
Pro 12:24 कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं, परन्तु आलसी बेगारी में पकड़े जाते हैं।
Pro 12:25 उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है।
Pro 12:26 धर्मी अपने पड़ोसी की अगुवाई करता है, परन्तु दुष्ट लोग अपनी ही चाल के कारण भटक जाते हैं।
Pro 12:27 आलसी अहेर का पीछा नहीं करता, परन्तु कामकाजी को अनमोल वस्तु मिलती है।
Pro 12:28 धर्म की बाट में जीवन मिलता है, और उसके पथ में मृत्यु का पता भी नहीं।

एक साल में बाइबल:
२ इतिहास १७-१८
यूहन्ना १३:१-२०