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सोमवार, 30 मई 2011

विश्वास की भविष्यवाणी

एक लंबी और कठिन शीत ऋतु के बाद बसन्त के सुखदायी, साफ आसमान और चमकती धुप के दिन आरंभ हुए। ऐसे में ध्रुवीय ठंडी हवाओं से भरा एक तूफान आया, और ऐसा लगने लगा कि शीत ऋतु फिर से आरंभ हो गई है। जो बन्द घरों में रहना पसन्द नहीं करते, वे घबराने लगे; जो आंगन में बार बार जमने वाली बर्फ को साफ करते करते थक चुके थे वे फिर इसी काम में लगने के विचार से पस्त होकर अपनी कुर्सियों पर पसर गए और घर गर्म रखने के खर्च का अन्दाज़ लगाने लगे। हर तरफ निराशा का माहौल था, लेकिन दुबारा ठंडा हो जाने पर किसी ने भी यह निश्कर्ष नहीं निकाला कि सदियों से चला आ रहा मौसम बदलने का क्रम आक्समत ही रुक गया है या बदल गया है, और न ही किसी ने कहा कि पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर घूमने की दिशा उलट गई है। पुनः ठंडे हुए मौसम से निराश होने वालों ने जब बीते समयों का ध्यान किया तो उनको याद आया कि बदलती ऋतु में ऐसे ठंडे तूफान पहले भी आए हैं, और वे आश्वस्त हो गए कि बसन्त ऋतु फिर शीघ्र ही अपनी पूरी बहार में आ जाएगी।

ऐसे ही जब हम अपनी बीते समयों की आशीशों को ध्यान करते हैं तो हमें वर्तमान में आशा और आते समय के लिए हिम्मत मिलती है। भजन ७७ का लेखक निराशा में इतना धंस चुका था कि अब उसे कोई आशा नहीं रही थी, उसकी नींद जाती रही थी और वह अपनी दशा के बारे में किसी से कोई बात भी करना नहीं चाहता था। लेकिन फिर कुछ हुआ - उसने अपने पुरखाओं को स्मरण किया; उसे ध्यान आय कि वे भी घोर निराशाजनक परिस्थितियों से होकर निकले थे और परमेश्वर ने उन्हें सभी परिस्थितियों में न केवल सुरक्षित रखा, वरन उनसे सकुशल निकाला भी। अपने पुरखाओं के प्रति परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को स्मरण करने से भजन के लेखक का विश्वास भी पु्नर्जीवित हो गया।

परमेश्वर का वचन बाइबल हमें स्मरण दिलाती है कि विकट परिस्थितियों से होकर निकलने वाले हम प्रथम नहीं हैं। परमेश्वर के लोग सदा ही ऊँच-नीच का सामना करते रहे हैं और परमेश्वर उन्हें हर परिस्थिति से निकालता रहा है।

निराशा का अन्धकार कितना ही गहरा क्यों न हो, विश्वास की भविष्यवाणी सदा उज्जवल भविष्य ही की रहती है। - मार्ट डी हॉन


बीते समय में परमेश्वर से मिली भलाई और भविष्य के लिए उसकी प्रतिज्ञाएं हमें वर्तमान में आशा देती हैं।

मैने कहा यह तो मेरी दुर्बलता ही है, परन्तु मैं परमप्रधान के दाहिने हाथ के वर्षों को विचारता हूं। - भजन ७७:१०


बाइबल पाठ: भजन ७७:१-१५

Psa 77:1 मैं परमेश्वर की दोहाई चिल्ला चिल्लाकर दूंगा, मैं परमेश्वर की दोहाई दूंगा, और वह मेरी ओर कान लगाएगा।
Psa 77:2 संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा, रात को मेरा हाथ फैला रहा, और ढीला न हुआ, मुझ में शांति आई ही नहीं।
Psa 77:3 मैं परमेश्वर का स्मरण कर कर के करहाता हूं, मैं चिन्ता करते करते मूर्छित हो चला हूं। (सेला)
Psa 77:4 तू मुझे झपकी लगने नहीं देता, मैं ऐसा घबराया हूं कि मेरे मुंह से बात नहीं निकलती।
Psa 77:5 मैंने प्राचीनकाल के दिनों को, और युग युग के वर्षों को सोचा है।
Psa 77:6 मैं रात के समय अपने गीत को स्मरण करता और मन में ध्यान करता हूं, और मन में भली भांति विचार करता हूं:
Psa 77:7 क्या प्रभु युग युग के लिये छोड़ देगा और फिर कभी प्रसन्न न होगा?
Psa 77:8 क्या उसकी करूणा सदा के लिये जाती रही? क्या उसका वचन पीढ़ी पीढ़ी के लिये निष्फल हो गया है?
Psa 77:9 क्या ईश्वर अनुग्रह करना भूल गया? क्या उस ने क्रोध करके अपनी सब दया को रोक रखा है? (सेला)
Psa 77:10 मैने कहा यह तो मेरी दुर्बलता ही है, परन्तु मैं परमप्रधान के दहिने हाथ के वर्षों को विचारता हूं।
Psa 77:11 मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्चय मैं तेरे प्राचीन काल वाले अद्भुत कामों को स्मरण करूंगा।
Psa 77:12 मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।
Psa 77:13 हे परमेश्वर तेरी गति पवित्राता की है। कौन सा देवता परमेश्वर के तुल्य बड़ा है?
Psa 77:14 अद्भुत काम करनेवाला ईश्वर तू ही है, तू ने अपने देश देश के लोगों पर अपनी शक्ति प्रगट की है।
Psa 77:15 तू ने अपने भुजबल से अपनी प्रजा, याकूब और यूसुफ के वंश को छुड़ा लिया है।

एक साल में बाइबल:
  • २ इतिहास १०-१२
  • यूहन्ना ११:३०-५७