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शनिवार, 5 मार्च 2011

व्यवस्था की समस्या

अमेरिका के आयकर विभाग में २५ वर्ष से कार्यरत एक अधिकारी को अपने आयकर की चोरी करने के लिये पकड़ा गया। जब यह खबर फैली, लगभग उसी समय समाचार पत्रों में एक और खबर भी प्रमुख रूप से प्रकाशित हुई - अपराधी मामलों का न्याय करने वाले कुछ न्यायाधिशों के अनैतिक चालचलन और बेईमानियों के बारे में। समाचार पत्रों ने समाज के समक्ष सवाल उठाया "न्यायियों का न्याय कौन करेगा?"

व्यवस्था और नियमों से भली भांति अवगत लोगों द्वारा व्यवस्था और नियमों का उल्लंघन केवल आयकर विभाग के अधिकारियों और न्यायाधीशों तक ही सीमित नहीं है। एक ऐसी भी व्यवस्था है जिसका उल्लंघन प्रत्येक व्यक्ति ने किया है - परमेश्वर की व्यवस्था। लेकिन इससे भी गंभीर बात यह है कि कुछ स्वधर्मी लोग परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले होकर के भी उसका पालन करने के अपने अनुचित दावे में घमंड करते हैं। बिना शक, जिस व्यवस्था का पालन करने का वे दावा करते हैं, वही व्यवस्था उन्हें दोषी ठहराती है, उनके असली चेहरे को दिखाती है। परमेश्वर की व्यवस्था प्रत्येक स्वधर्मी घमंडी को उसकी वास्तविक्ता - व्यवस्था का उल्लंघन करने वाला के रूप में दिखा देती है। व्यवस्था की समस्या यही है कि व्यवस्था के नियमों के पालन में एक भी नियम की चूक या उल्लंघन से मनुष्य सारी व्यवस्था का दोषी ठहरता है "सो जितने लोग व्यवस्था के कामों पर भरोसा रखते हैं, वे सब श्राप के आधीन हैं, क्‍योंकि लिखा है, कि जो कोई व्यवस्था की पुस्‍तक में लिखी हुई सब बातों के करने में स्थिर नहीं रहता, वह श्रापित है।" (गलतियों ३:१०) "क्‍योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्‍तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों मे दोषी ठहरा।" (याकूब २:१०)

रोमियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस स्पष्ट करता है कि व्यवस्था का उद्देश्य धर्मी ठहराना नहीं वरन परमेश्वर की पवित्रता का ज्ञान कराना और उस पवित्रता का मापदंड हमारे सामने रखना है जिससे हम पाप की पहचान कर सकें "क्‍योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके साम्हने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।" (रोमियों ३:२०) व्यवस्था इसलिये दी गई कि हमारी शिक्षक बन कर हमें मसीह के विश्वास तक लाए "पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्था की अधीनता में हमारी रखवाली होती थी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होने वाला था, हम उसी के बन्‍धन में रहे। इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।" (गलतियों ३:२३, २४)

परमेश्वर की व्यवस्था का उपयोग कभी स्वधार्मिकता का घमंड संसार के समक्ष बघारने के लिये नहीं किया जाना चाहिये, वरन व्यवस्था का सही उपयोग है कि उसके सम्मुख अपने आप को रखकर हम अपनी पापमय दशा को पहचान सकें और जान सकें कि परमेश्वर की दया और अनुग्रह की हमें कितनी अधिक आवश्यक्ता है। जब हम अपनी स्वधार्मिकता पर नहीं वरन परमेश्वर की दया और अनुग्रह पर आधारित जीवन जीना आरंभ करेंगे, तब ही व्यवस्था की समस्या से मुक्ति पा सकेंगे "परन्‍तु जिस के बन्‍धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं।" (रोमियों ७:६) - मार्ट डी हॉन


मसीह यीशु में प्रत्येक जन व्यवस्था की समस्या का समाधान पा सकता है।

तू जो व्यवस्था के विषय में घमण्‍ड करता है, क्‍या व्यवस्था न मानकर, परमेश्वर का अनादर करता है? - रोमियों २:२३


बाइबल पाठ: रोमियों ७:१-६

हे भाइयो, क्‍या तुम नहीं जानते, मैं व्यवस्था के जानने वालों से कहता हूं, कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तक तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?
क्‍योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उस से बन्‍धी है, परन्‍तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई।
सो यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्‍तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहां तक कि यदि किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।
सो हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिये फल लाएं।
क्‍योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषायें जो व्यवस्था के द्वारा थीं, मृत्यु का फल उत्‍पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।
परन्‍तु जिस के बन्‍धन में हम थे उसके लिये मर कर, अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं, वरन आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं।

एक साल में बाइबल:
  • गिनती ३४-३६
  • मरकुस ९:३०-५०