ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

परमेश्वर की उपासना

परमेश्वर, सिद्ध पवित्र परमेश्वर, सच्ची उपासना के योग्य है। वह ही हमारा सृजनहार, पालनहार, तारणहार है। यदि उसका प्रेम भरा मार्गदर्शन और देख-रेख हमें उपलब्ध न हो तो हमारे जीवन के लिये कोई आशा न रहे। इसलिये हमें सर्वदा उसकी ऐसी उपासना करनी चाहिये जो उसके नाम को आदर और उसे सच्ची महिमा देती हो।

प्रभु यीशु ने सामरी स्त्री से अपनी बातचीत में कहा "परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्‍चाई से भजन करें।" (यूहन्ना ४:२४)

अपनी उत्कृष्ट पुस्तक "The Practice of the Presence of God" में लेखक भाई लौरेन्स इस का अर्थ इस प्रकार समझाते हैं "सच्चाई से परमेश्वर की आराधना करने का तातपर्य है कि परमेश्वर की वास्तविकता को जानना, उसके संपूर्ण गुणों को पहिचानना, अर्थात यह कि वह अपनी अनन्त संपूर्णता में सिद्ध, हर एक प्रकार कि बुराई से परे और समस्त दिव्यगुणों से परिपूर्ण है। किसी मनुष्य के पास उपासना करने का चाहे कोई बहुत ही छोटा प्रतीत होने वाला कारण ही क्यों न हो, लेकिन जब वह उपासना करे तो ऐसे महान परमेश्वर की उपासना उसे अपनी सारी सामर्थ से करनी चाहिये।"

हमें अपने आप से पूछने की आवश्यक्ता है कि जिस ने हमें बनाया है, क्या उसकी उपासना हम इस प्रकार करते हैं? क्या सदा अपने मन मस्तिष्क कि गहिराईयों से हम उसका आदर और मान बनाए रखते हैं? क्या जब हम उसके सन्मुख आते हैं तो उससे जिससे कोई बात छिपी नहीं है, जो मन की बात और मस्तिष्क के विचारों को भी जानता है, उसके सन्मुख अपने आप को पूरी सच्चाई से प्रस्तुत करते हैं या उससे कुछ छिपाते हुए, कोई बहाने बनाते हुए, अपने आप को सही प्रमाणित करने के प्रयास के साथ आते हैं? क्या वह जो है, हम उसकी हस्ती और उसके गुणों का अंगीकार करते हैं?

यदि उस सर्वसामर्थी, सर्वव्यापी और सर्वज्ञानी परमेश्वर की सच्ची उपासना करनी है तो यह केवल "आत्मा और सच्चाई" ही में हो सकती है। - डेव एग्नर


यदि जीवन में मसीह सबसे बहुमूल्य नहीं तो फिर उसका कोई मूल्य नहीं।

परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्‍चाई से भजन करें। - यूहन्ना ४:२४



बाइबल पाठ: यूहन्ना ४:९-२६

उस सामरी स्त्री ने उस से कहा, तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्‍यों मांगता है? (क्‍योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते)।
यीशु ने उत्तर दिया, यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है मुझे पानी पिला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता।
स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कूआं गहिरा है: तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहां से आया?
क्‍या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिस ने हमें यह कूआं दिया और आप ही अपने सन्‍तान, और अपने ढोरों समेत उस में से पीया?
यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा।
परन्‍तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्‍तकाल तक प्यासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्‍त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।
स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊं और न जल भरने को इतनी दूर आऊं।
यीशु ने उस से कहा, जा, अपने पति को यहां बुला ला।
स्त्री ने उत्तर दिया, कि मैं बिना पति की हूं: यीशु ने उस से कहा, तू ठीक कहती है कि मैं बिना पति की हूं।
क्‍योंकि तू पांच पति कर चुकी है, और जिस के पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तू ने सच कहा है।
स्त्री ने उस से कहा, हे प्रभु, मुझे ज्ञात होता है कि तू भविष्यद्वक्ता है।
हमारे बाप-दादों ने इसी पहाड़ पर भजन किया: और तुम कहते हो कि वह जगह जहां भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।
यीशु ने उस से कहा, हे नारी, मेरी बात की प्रतीति कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में।
तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो, और हम जिसे जानते हैं उसका भजन करते हैं; क्‍योंकि उद्धार यहूदियों में से है।
परन्‍तु वह समय आता है, वरन अब भी है जिस में सच्‍चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्‍चाई से करेंगे, क्‍योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही भजन करने वालों को ढूंढ़ता है।
परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्‍चाई से भजन करें।
स्त्री ने उस से कहा, मैं जानती हूं कि मसीह जो ख्रीस्‍तुस कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।
यीशु ने उस से कहा, मैं जो तुझ से बोल रहा हूं, वही हूं।

एक साल में बाइबल:
  • गिनती १२-१४
  • मरकुस ५:२१-४३