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शनिवार, 25 सितंबर 2010

नए जीवन की पीड़ाएं

प्राचीन युनानी दार्शनिक सुकरात की माँ एक दाई थी, इसलिये सुकरात यह देखते हुए बड़ा हुआ कि उसकी माँ संसार में नया जीवन लाने में स्त्रियों की सहायता करती है। उसके इन अनुभवों का प्रभाव बाद में उसके शिक्षा देने के तरीकों पर भी पड़ा। सुकरात ने कहा "मेरी दाई कि कला उनकी जैसी ही है, फर्क सिर्फ इतना है कि मेरे मरीज़ पुरुष होते हैं स्त्रीयां नहीं, और मेरा सरोकार शरीर से नहीं वरन आत्मा से है जो नया जीवन देने को कराह रही है।"

अपने शिष्यों को सिखाने के लिये अपना ज्ञान प्रदान करने की बजाए, सुकरात का तरीका कुछ कष्ट दायक था। वह उनसे टटोलने वाले प्रश्न पूछता था जिनके उत्तर खोजने और फिर निषकर्श निकालने के लिये उन्हें मेहनत करनी पड़ती थी। शिष्यों को ज्ञान अर्जित करने के लिये विचार और चिंतन करना सिखाना, सुकरात के लिये जच्चा की पीड़ा के समान था जो संसार में कुछ नया लाने के लिये स्वयं दर्द सहती है।

पौलुस ने भी, विश्वासियों को विश्वास में शिक्षित करने के लिये, कुछ ऐसे ही भावनाओं को व्यक्त किया, उसने लिखा " हे मेरे बालकों, जब तक तुम में मसीह का रूप न बन जाए, तब तक मैं तुम्हारे लिये फिर जच्‍चा की सी पीड़ाएं सहता हूं" (गलतियों ४:१९)। पौलुस की इच्छा थी कि प्रत्येक विश्वासी, आत्मिक रूप से परिपक्व होकर मसीह यीशु की समानता में बन जाये - "जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं" (इफिसियों ४:१३)।

मसीह यीशु की समानता में होना जीवन भर का प्रयत्न और कार्य है। इस के लिये हमें, अपने तथा दूसरों के प्रति धैर्य रखना होता है। मसीह की समानता के इस मार्ग में आगे बढ़ते हुए हम में से प्रत्येक को चुनौतियों, कठिनाइयों और निराशाओं का सामना करना पड़ेगा। परन्तु यदि विपरीत परिस्थितियों में भी हम अपना विश्वास प्रभु यीशु पर बनाए रखेंगे तो वह आत्मिक परिपक्वता प्राप्त करने में हमारी सहायता करेगा (२ पतरस १:३-८) और हमें इस योग्य करेगा कि हमारे द्वारा संसार में नए जन्म और जीवन के मार्ग खुल जाएं (मरकुस १६:१५-२०)। - डेनिस फिशर


मन परिवर्तन एक क्षण का चमात्कार है, परिपक्वता आने में सारा जीवन लग जाता है।

हे मेरे बालकों, जब तक तुम में मसीह का रूप न बन जाए, तब तक मैं तुम्हारे लिये फिर जच्‍चा की सी पीड़ाएं सहता हूं। - गलतियों ४:१९


बाइबल पाठ:

२ पतरस १:३-८
क्‍योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्‍ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपनी ही महिमा और सदगुण के अनुसार बुलाया है।
जिन के द्वारा उस ने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूट कर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्‍वभाव के समभागी हो जाओ।
और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्‍न कर के, अपने विश्वास पर सदगुण, और सदगुण पर समझ।
और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति।
और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।
क्‍योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचान में निकम्मे और निष्‍फल न होने देंगी।

मरकुस १६:१५-२०

और उस[यीशु] ने उन[चेलों] से कहा, तुम सारे जगत में जा कर सारी सृष्‍टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।
जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उद्धार होगा, परन्‍तु जो विश्वास ने करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा।
और विश्वास करने वालों में ये चिन्‍ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को निकालेंगे।
नई नई भाषा बोलेंगे, सांपों को उठा लेंगे, और यदि वे नाशक वस्‍तु भी पी जांए तौभी उन की कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएंगे।
निदान प्रभु यीशु उन से बातें करने के बाद स्‍वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठ गया।
और उन्‍होंने निकल कर हर जगह प्रचार किया, और प्रभु उन के साथ काम करता रहा, और उन चिन्‍हों के द्वारा जो साथ साथ होते थे वचन को, दृढ़ करता रहा। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • श्रेष्ठगीत ६-८
  • गलतियों ४