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रविवार, 8 अगस्त 2010

ग्रैनविल शार्प

ग्रैनविल शार्प (सन १७३५-१८१३) युनानी भाषा का एक प्रख्यात विद्वान था। जब मैं बाइबल कॉलेज में पढ़ता था तो युननी भाषा की कक्षा में उसका नाम भी लिया जाता था। युनानी भाषा के उसके अध्ययन द्वारा ही उन सिध्दांतों का प्रतिपादन हुआ जिनके आधार पर नए नियम का उसकी मूल युनानी भाषा से अनुवाद और व्याख्या संभव हो सकी।

पवित्र शास्त्र को पढ़ना और उसके सामर्थी सत्यों को जानना श्रेष्ठ कार्य है, लेकिन हम चाहे जितनी भी गहराई से उसे पढ़ लें, केवल उसे पढ़ना ही काफी नहीं होता है। याकूब ने इस बात को समझने की चुनौती दी जब उसने लिखा: "परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। क्‍योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्‍वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है। इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्‍त भूल जाता है कि मैं कैसा था" (याकूब १:२२-२४)।

ग्रैनविल शार्प ने इस बात को समझा और अपने विश्वास को व्यावाहरिक रूप दिया। वह न केवल बाइबल का विद्वान था वरन इंगलैंड में दास प्रथा के विरुद्ध सन्घर्ष करने वाला भी बना। उसने कहा, "दास प्रथा का समर्थन करना अमानवीय व्यवहार का समर्थन करना है।" बाइबल से उसे प्राप्त हुए मानवीय आत्मा की कीमत के बोध और पवित्र परमेश्वर के न्याय की समझ ने उसे अपने विश्वास को कार्यन्वित करने पर बाध्य किया।

वचन की ज्ञान के प्रति शार्प के जोश और उसके सत्य का पालन करने की उसकी कटिबद्धता से हमें शिक्षा लेनी चाहिये। - बिल क्राउडर


यदि हम बाइबल के वचनों का पालन नहीं करते तो हम बाइबल को जानते ही नहीं।

परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। - याकूब १:२२


बाइबल पाठ: याकूब १:१९-२७

हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्‍पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।
क्‍योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है।
इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो ह्रृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।
क्‍योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्‍वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है।
इसलिये कि वह अपने आप को देखकर चला जाता, और तुरन्‍त भूल जाता है कि मैं कैसा था।
पर जो व्यक्ति स्‍वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपके काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुन कर नहीं, पर वैसा ही काम करता है।
यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है।
हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों ओर विधवाओं के क्‍लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्‍कलंक रखें।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७४-७६
  • रोमियों ९:१६-३३