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मंगलवार, 11 मई 2010

संसार देख रहा है

मेरे कुछ मित्र एक सेवकाई में थे जो मुख्यतः मसीही विश्वासियों के लिये थी। उन्हें अवसर मिला कि वे अपना काम में परिवर्तन करें और हज़ारों अविश्वासियों के जीवनों को प्रभावित कर सकें। उन्हों ने यह रोमाँचकारी परिवर्तन कर लेने का निर्णय लिया।

कई लोगों को, जिनमें से कुछ उन्हें व्यक्तिगत रीति से जानते भी नहीं थे, इस बात से बहुत धक्का लगा, और उन्हों ने मेरे मित्रों पर दोष लगाया कि वे सांसारिक ख्याति और खज़ाना पाने के लिये ऐसा कर रहे हैं। किंतु यीशु की इस बात का विश्वास करके, कि वह "खोए हुओं को ढूंढने और उनका उद्धार करने आया" (लूका १९:१०), इसी के अनुसार, मेरे मित्रों ने इस और भी बड़े अवसर का उपयोग अपने समाज के "खोये हुओं" को ढूंढने के लिये करना चाहा।

बाद में उन्होंने बताया कि "कुछ मसीही्यों ने हमारे प्रति बहुत क्रूर व्यवहार किया और हमें घृणापूर्ण ई-मेल भेजे। हमारे नए गैर-मसीही मित्र उन पुराने मसीही मित्रों से अधिक सहृदय थे। हम उनके इस व्यवहार को समझ नहीं सके और बहुत आहत हुए।" उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा तो केवल जगत में ’नमक’ और ’ज्योति’ बनके रहने के परमेश्वर के निर्देश (मत्ती ५:१३, १४) का पालन करना की थी।

जब कोई, जिसे हम जानते हैं, किसी बदलाव के लिये निर्णय ले रहा हो, तो इस बदलव को लेने के पीछे उसके उद्देश्यों के बारे में पूछना मददगार हो सकता है, लेकिन हम किसी के हृदय की बात पूरी रीति से नहीं जान सकते। हमें अपने मसीही भाई-बहिनों को "काटना और फाड़ खाना" नहीं चाहिये (गलतियों ५:१५), अपितु ऐसा प्रेम दिखाना चाहिये जिससे अन्य लोग जान सकें कि हम मसीह के अनुयायी हैं (यूहन्ना १३:३५)।

संसार हमें देख रहा है। - ऐनी सेटास


केवल परमेश्वर ही हृदय देख सकता है।


बाइबल पाठ: यूहन्ना १३:३१-३५


यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो। - यूहन्ना १३:३५


एक साल में बाइबल:
  • २ राजा १३, १४
  • यूहन्ना २