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शुक्रवार, 7 मई 2010

प्रार्थना का प्रभाव

क्या प्रार्थना का वास्तव में संसार पर कोई प्रभाव होता है या यह केवल परमेश्वर से एक निज वार्तालाप है?

न्यू जर्सी में रहने वाले एक दंपत्ति ने जब यह जाना कि उनके इलाके में बंदीगृह से छूटकर आया एक व्यक्ति रहने लगा है तो उन्होंने उसके लिये प्रार्थना करनी आरंभ करी। फिर वे उससे मिलने गए, और उस जैसे पूर्व अपराधियों को सप्ताह में एक बार भोजन के लिये अपने घर बुलाने लगे। अब, २२ साल बाद, उस स्थान के तिरिस्कृत लोगों के लिये एक जगह है जहां उनका स्वागत किया जाता है और उनके साथ आदर से व्यवहार किया जाता है।

अगर हर व्यक्ति यीशु की इस शिक्षा, अपने बैरियों से प्रेम और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो, का पालन करने लगे तो क्या हो? क्या हो, यदि हमारी ख्याति समाज के निष्कासित और अप्रीय लोगों के लिये प्रार्थना करने वालों के रूप में हो?

प्रकाशितवाक्य में एक स्थान पर प्रेरित यूहन्ना अदृश्य और दृश्य जगत के बीच होने वाले एक सीधे संबंध को देखता है। इतिहास के एक अति महत्वपूर्ण क्षण पर स्वर्ग मौन है। सात स्वर्गदूत सात तुरहियां लिये प्रतीक्षा में खड़े हैं, स्वर्ग में पूर्ण सन्नाटा है, मानो सब वहां कुछ सनने को आतुर हैं। तब एक स्वर्गदूत पृथ्वी से परमेश्वर के लोगों की प्रार्थनाएं एकत्रित करके लाता है - स्तुति, विलाप, तजे जाने, निराशा, शिकायत की प्रर्थनाएं - उन्हें सुगंधित धूप के साथ मिलाकर परमेश्वर के सिंहासन के सामने प्रस्तुत करता है (प्रकाशितवाक्य ८:१-४)। आखिरकर सन्नाटा टूटता है और वे सुगंधित प्रार्थनाएं पृथ्वी पर उंडेल दी जाती हैं और तब गर्जन, बिजली कड़कना और भूकंप होने लगता है (पद५)।

सन्देश स्पष्ट है - बुराई, कष्ट और मृत्यु पर मिलने वाली अन्तिम विजय के लिये, प्रार्थना करने वाले लोग आवश्यक कार्यकर्ता हैं। - फिलिप यैन्सी


परमेश्वर के कार्य प्रार्थना करने वालों के द्वारा संपन्न होते हैं।


बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य ८:१-५


उस धूप का धुआं पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं सहित....परमेश्वर के सामने पहुंच गया। - प्रकाशितवाक्य ८:४


एक साल में बाइबल:
  • २ राजा १-३
  • लूका २४:१-३५