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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

दूरी

शांत समुद्र पर, रब्बर की डिंगी में आंखें मूंदे हुए निश्चिंत लेटकर सूर्य की गरमाहट को शरीर में सोखना और लहरों की आवाज़ का आनन्द लेना कितना अच्छा लगता है। जब तक आंख न खुले, कोई चिंता नहीं! किंतु ऐसे में कभी नाव, धीरे धीरे बह कर किनारे से दूर भी हो जाती है; और तब जब आंख खुलती है तो किनारा दूर और भय साथ होता है।

आत्मिक तौर पर भी कुछ इसी तरह हम अन्जाने में ही परमेश्वर से दूर बह जाते हैं, फिर अचानक किसी कारण जब ध्यान आता है तो मालूम पड़ता है कि दूरी कितनी हो गई है। दूरी की यह प्रक्रिया आरंभ होती है जब शैतान सृष्टीकर्ता परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम को चुराकर, उसके स्थान पर सन्देह डाल देता है। हमारे जीवन के किन्हीं अनुभवों के कारण, छल से वह हमारे मन में परमेश्वर पर विश्वास के स्थान पर सन्देह उत्पन्न कर देता है।

अय्युब और उसकी पत्नी का उदाहरण देखिये। दोनो के पास परमेश्वर पर क्रोधित होने के कई कारण थे। उनके बच्चे मर गए, धन-संपत्ति जाती रही, अय्युब की सेहत नाश हो गई। उसकी पत्नि ने कहा, "परमेश्वर की निन्दा कर और मर जा!" लेकिन अय्युब ने उत्तर दिया, " क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुख न लें?" (अय्युब २:९, १०)।

कई स्थितियां ऐसी होती हैं जो हमारा परमेश्वर से दूर बहना आरंभ करा सकती हैं, जैसे: यह मानना कि खुश रहने के लिये हमें परमेश्वर से अधिक भी कुछ आवश्यक है; कुछ करीबी संबंधों को परमेश्वर से अधिक महत्वपूर्ण मानना; यह मान के चलना कि परमेश्वर को हमारी हर इच्छा को पूरा करना अनिवार्य है; उसकी चेतावनियों को अन्देखा करना; जब उसका वचन हमारे मन के अनुसार न हो और हमें विचिलित करे तो उसे ठुकरा देना, आदि।

यदि आपने भी बहकर दूर जाना आरंभ कर दिया है तो शांति और संतुष्टि के एकमात्र स्त्रोत के पास आ जाएं। - जो स्टोवेल


परमेश्वर से दूर बहने से बचने के लिये अपना लंगर चट्टान (यीशु) पर डाले रहें


बाइबल पाठ: अय्युब १:१३-२२


क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुख न लें? अय्युब २:१०


एक साल में बाइबल:
  • १ राजा ६, ७
  • लूका २०:२७-४७