ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

बनावटी सेवकाई

जै, जो मुझे कार में चर्च लेकर जा रहा था, मुझसे बोला "मुस्कुराओ, तुम दुखी लग रही हो।" मैं दुखी नहीं थी, केवल विचारों में थी और एक साथ दो काम नहीं कर सकती थी। तो भी उसे प्रसन्न करने के लिये मैं मुस्कुराई। वह बोला "ऐसे नहीं, एक सच्ची मुस्कान।"

उसकी इस टिपण्णी ने मुझे और गंभीर सोच में डाल दिया। क्या किसी को मुस्कुराने की आज्ञा देकर उससे सच्ची मुस्कुराहट की आशा रखना संभव है? सच्ची मुस्कान तो अन्दर से आती है, वह मन की भावना की अभिव्यक्ति होती है, चेहरे की नहीं।

फोटो खींचने के समय हम कृत्रिम हंसी स्वीकार कर लेते हैं। हम प्रसन्न होते हैं जब सब लोग फोटो खींचने वाले के साथ सहयोग करके मुस्कुराते चेहरों के साथ फोटो खींचवाते हैं। आखिरकर हम खुशी की तस्वीर ही तो बना रहें हैं, ज़रूरी नहीं कि वह वास्तविक हो।

परन्तु परमेश्वर के सामने ऐसी दिखावटी बातें स्वीकार्य नहीं हैं। चाहे हम प्रसन्न हों, उदास हों या विचिलित हों, उसके समक्ष ईमान्दारी अनिवार्य है। परमेश्वर आराधना के झूठे भाव नहीं चाहता और न ही वह लोगों या परिस्थितियों से सम्बंधित झूठी बातें सुनना चाहता है (मरकुस ७:६)।

चेहरे के भाव बदलना, मन की भावना बदलने से अधिक आसान है किंतु सच्ची आराधना के लिये अनिवार्य है कि हम पूरे मन, पूरी आत्मा और पूरी शक्ति से मानें कि परमेश्वर उपासना के पूर्ण्तः योग्य है। यदि हमारी परिस्थिति प्रतिकूल भी हो, हम तब भी परमेश्वर के अनुग्रह और करुणा के लिये उसके धन्यवादी हो सकते हैं, जिनकी कीमत दिखावटी मुस्कान या बनवटी सेवकाई से कहीं अधिक है। - जूली ऐकरमैन लिंक


यदि हृदय में गान है तो चेहरे पर मुस्कान होगी।


बाइबल पाठ: मरकुस ७:५-१५


ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उनका मन मुझसे दूर रहता है। - मरकुस ७:६


एक साल में बाइबल:
  • २ शमुएल २३, २४
  • लूका १९:२८-४८