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सोमवार, 5 अप्रैल 2010

क्या आपने ’टिप’ दिया?

बहुत से देशों में ’टिप’ (धन्यवाद के रूप में कुछ पैसे) देना एक आम रिवाज़ है। लेकिन मुझे लगता है कि इस प्रथा का असर चर्च में भेंट देने की हमारी प्रवृति पर भी पड़ा है।

कई मसीही चर्च में पैसे देने को, परमेश्वर द्वारा किये गये उपकारों के प्रत्युत्तर में उसे दी गई एक भेंट के रूप में देखते हैं। कुछ की राय में अपनी आमदनी का दसवां भाग परमेश्वर के नाम से देने के बाद शेष पैसे को वह चाहे जैसे प्रयोग कर सकते हैं। किंतु मसीही जीवन धन के अतिरिक्त और बहुत कुछ से संबंधित है।

बाइबल सिखाती है कि हमारा सृष्टिकर्ता इस जगत और उसकी हर चीज़ का मालिक है (भजन ५०:१२) और हज़ारों पहाड़ों के जानवर भी उसी के हैं (पद १०)। वो ही हर चीज़ का स्त्रोत है और हमारे पास जो कुछ भी हो, वह उसी का है। उसने हमें केवल भौतिक वस्तुएं ही नहीं दीं लेकिन उसने अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह को भी हमारे लिये दे दिया, जो हमें उद्धार देता है।

पौलुस ने मकिदूनिया के मसीहियों को एक उदाहरण के रूप में रखा, यह दर्शाने के लिये कि परमेश्वर की अद्‍भुत उदारता के सामने हमारी दानशीलता कैसी होनी चाहिये। मकिदूनिया के मसीही "क्लेश और भारी कंगालपन" की बड़ी परीक्षा में भी उदारता में बढ़ते गये (२ कुरिन्थियों ८:२); लेकिन उन्होंने पहले अपने आप को प्रभु को दिया (पद ५)।

सृष्टिकर्ता परमेश्वर को हमारी किसी वस्तु कि आवश्यक्ता नहीं है। वह हमसे कोई ’टिप’ नहीं चाहता। वह चाहता है कि हम अपने आप को उसे समर्पित कर दें। - सी. पी. हीया


हम चाहे कितना भी दें, परमेश्वर से अधिक कभी नहीं दे पायेंगे।


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ८:१-९


वह धनी होकर भी तुम्हारे लिये कंगाल बन गया। - २ कुरिन्थियों ८:९


एक साल में बाइबल:
  • १ शमुएल १-३
  • लूका ८:२६-५६