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मंगलवार, 2 मार्च 2010

अपनी बुलाहट का पता लगाना

मसीह का अनुसरण करने के निरंतर प्रयास में हम मसीहियों का एक संघर्ष है अपनी जीवन की बुलाहट पहचान लेना। हम इसे अपने व्यवसाय और स्थान के संदर्भ में सोचते हैं, परन्तु इससे भी ज़्यादा ज़रूरी है हमारा चरित्र, जो हमारे हर कार्य पर अपनी छाप छोड़ता है। "प्रभु आप मुझे कैसा देखना चाहते हैं?"

इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में पौलूस विनती करता है कि हम अपनी बुलाहट के योग्य जीवन बिताएं (इफसियों ४:१)। इस ’योग्य जीवन’ के लिये वह कुछ बा्तों की अनिवार्यता को बताता है - दीन, नम्र और धैर्यवान होकर प्रेम से एक दूसरे की सहना (पद २)। पौलूस ने यह पत्र जेल से लिखा था, एक बहुत कठोर स्थान, लेकिन वहाँ पर भी वह परमेश्वर से मिली अपनी बुलाहट के अनुरूप जीवन जी रहा था।

ओस्वॉल्ड चैम्बर्स ने कहा है, "अर्पण केवल हमारे जीविका के कार्य को परमेश्वर को अर्पित करना नहीं है, परन्तु दूसरे सब कार्यों को छोड़कर अपने आप को परमेश्वर को समर्पित करना है, उसकी इच्छा के अनुसार उसके निश्चित स्थान पर रहना है, चाहे वह कारोबार, वकालत, विज्ञान, कारखाना, राजनीति या भारी परिश्रम में हो। हमें परमेश्वर के राज्य के नियम और सिद्धांतों के अनुसार उस स्थान पर रहकर काम करना है।"

जब हम परमेश्वर के सामने सही लोग होते हैं, तब जहाँ वह रखे हम वहाँ रहकर उसके द्वारा दिया गया कार्य कर सकते हैं। ऐसा करके हम अपने लिये परमेश्वर की बुलाहट पता लगाते और दृढ़ करते हैं। - David McCasland


तुम्हारे कार्य से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण, तु्म्हारा चरित्र है।


बाइबल पाठ: इफसियों ४:१-१६


सो मैं जो प्रभु का बन्धुआ हूँ, तुमसे विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गये थे, उसके योग्य चाल चलो। - इफिसियों ४:१


एक साल में बाइबल:
  • गिनती २६,२७
  • मरकुस ८:१-२१