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शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

बुढ़ापे की ओर कदम बढ़ाना

मेरे मित्र ने हाल में अपना ६०वां जन्म दिन मनाया, उसके साथ प्रातःकाल का नाश्ता करते समय हमने उस आयु में होने वाली घबराहट की चर्चा की और ६० साल के होने के सब परिणामों, जैसे अवकाश प्रप्ति, पेंशन तथा ऐसी अन्य बातों के बारे में बातें कीं। हमने यह भी सोचा कि इतनी बड़ी आयु का होने पर भी वह अपने आप को उससे बहुत कम उम्र का महसूस कर रहा था।

फिर वह अपने जीवन के ६० सालों के अनुभवों से मिली शिक्षाओं, खुशियों और आशिर्वादों के बारे में बोलने लगा, फिर उसने कहा "जानते हो, यह अनुभव इतना बुरा भी नहीं है, वास्तव में तो यह बहुत रोमांचक है। " भूतकाल के अनुभवों से मिली उन शिक्षाओं ने वर्तमान के प्रति उसके दृष्टिकोण को एक नया नज़रिया दिया।

यह बूढ़े होने की प्रक्रिया है। हम वर्तमान के जीवन को जीने की शिक्षा अपने बीते कल से पाते हैं। भजनकर्ता भी यही कहता है, "हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूँ, बचपन से मेरा आधार तू है" (भजन ७१:५)। फिर उसने कहा, "मैं गर्भ से निकलते ही तुझसे संभाला गया; मुझे माँ की कोख से तू ही ने निकाला; इसलिये मैं नित्य तेरी स्तूति करता रहूंगा" (पद ६)। भजनकर्ता ने अपने अतीत को देखा तो परमेश्वर की विश्वासयोग्यता को स्पष्टता से देखा। उस विश्वासयोग्यता पर निरभर रहकर वह भविष्य और उसकी अनिशचितताओं का सामना कर सका, हम भी वैसा कर सकते हैं।

हम भजनकर्ता के साथ कहें, हे मेरे परमेश्वर, मैं तेरी आराधना करुंगा और तेरी विश्वासयोग्यता का धन्यवाद करूंगा" (पद २२)। - बिल क्राउडर

उम्र तो जुड़ती (add) है लेकिन परमेश्वर की विश्वासयोग्यता गुणा (multiply) होती है

बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझको छोड़ न दे। - भजन ७१:९

बाइबल पाठ: भजन ७१

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन २१, २२
  • मत्ती १९