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रविवार, 24 जनवरी 2010

छोटा सुन्दर है

कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र के विषय में किसी ने कहा, "एक दिन यह एक बहुत बड़ी मसीही सेवाकाई संभालेगा।" उसका तात्पर्य था कि वह एक बड़ी प्रसिद्ध और धनी मण्डली के कार्य का संचालन करेगा।

मैं सोचने लगा कि हम क्यों यह सोचते हैं कि परमेश्वर का बुलावा बड़े कार्यों को चलाने से ही होता है? क्यों यह मान के चलें कि परमेश्वर अपने सबसे अच्छे कार्यकर्ताओं को एक छोटी जगह पर जीवन भर काम करने नहीं भेजेगा? क्या इन अन्जान जगहों में ऐसे लोग नहीं होते जिन्हें सुसमाचार सुनाना और सिखाना ज़रूरी है कि परमेश्वर नहीं चाहता कि किसी का नाश हो?

यीशु ने भीड़ की ओर ध्यान देने के साथ व्यक्ति की भी उपेक्षा नहीं की। अगर भीड़ उसके पास आई तो उसने बड़ी भीड़ को शिक्षा दी, परन्तु अगर अस्थिर लोगों ने उसे छोड़ दिया (युहन्ना ६:६६) तो उसने इससे घबराए बिना उन लोगों के साथ काम किया जिन्हें पिता ने उसे दिया।

हम ऐसी संसकृति में रहते हैं जहाँ ’अधिक’ और ’बड़ा’ सफलता के चिन्ह माने जाते हैं। इस पृव्रति का सामना करने के लिए एक दृढ़ और स्थिर जन होना अनिवार्य है, विशेषत्या तब जब आप एक छोटी जगह पर सेवकाई करते हों।

मूल्य आकार का नहीं, गुण का होता है। एक छोटी मण्डली के पास्टर हों, आप कोई छोटी बाइबल अद्‍धयन क्लास या रविवार की शाला चलाते हों, तो भी अपना सारा मन लगा कर उनकी सेवा, प्रार्थना, प्रेम, वचन और उदाहरण के द्वारा करो जिन्हें प्रभु ने तुम्हें सौंपा है। तुम्हारी छोटी सेवकाई बढ़प्पन के लिए सीड़ी नहीं है; वही बढ़प्पन है। - डेविड रोपर

अगर परमेश्वर उसमें है, तो थोड़ा भी बहुत होता है।

किसने छोटी बातों के दिन को तुच्छ जाना है? - ज़कर्याह ४:१०

बाइबल पाठ: यूहन्ना ६:५३-७१

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन ९-११
  • मत्ती १५:२१-३९