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शनिवार, 2 जनवरी 2010

सांस बचाओ

बाइबिल पाठ : उत्पत्ति :१७

जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें - भजन १५०:

मुठी भर धूल लेकर उसमें फूंक दूँ तो नतीजा होगा गंदा चेहरा। लेकिन जब परमेश्वर ने सांस फूंकी तो उसे एक जीवित, सांस लेने वाला मनुष्य मिला, जिसमें सोचने, भावना, प्रेम करने, बच्चे उत्पन्न करने और हमेशा के लिए ज़िंदा रहने की क्षमता है।

मैं एक ऐसा मनुष्य, अगर सांस रोकने और सांस बचाने की बात करूँ तो यह केवल शब्द मात्र ही हैं। मैं भविष्य के उपयोग के लिए अपनी साँसें बचा कर नहीं रख सकता। अगर मैं अब अपनी सांस का उपयोग नहीं करता वह बंद हो जाती है, मैं बेहोश भी हो सकता हूँ।

परमेश्वर ने आदम में अपनी जान फूंकी, तो उसने उसे जीवन से बढ़कर कुछ दिया, उसने उसे जीने का कारण दिया: उपासना! जैसे भजनकर्ता ने कहा, "जितने प्राणी हैं सब याह की स्तुती करें" (भजन १५०:)

इसका अर्थ है की जब हम अपनी सांस को परमेश्वर का आदर करने के लिए प्रयुक्त नहीं करते, जिस परमेश्वर में हम "जीवित रहते, चलते-फिरते और स्थिर रहते हैं" (प्रेरितों १७:२८), तो हम अपनी सांस बरबाद करते हैं।

चाहे हम अपनी सांस से मिट्टी में जीवन नहीं ला सकते, तो भी हम सांस को सान्तवना के वचन कहानी, स्तुती-गान करने और बीमारों एवं पीड़ितों की सेवा करने के लिए उपयोग कर सकते हैं। जब हम अपनी अनुपम प्रतिभाओं, योग्यताओं और अवसरों से अपने सृष्टीकर्ता का सम्मान करते हैं तब हम अपनी सांस बरबाद नहीं करते। - जल
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मैं जो हूँ और मेरे पास जो है, उन सब के लिए मैं यीशु का ऋणी हूँ।

बाइबल एक साल में, पढिये:
  • उत्पत्ती ४ - ६
  • मत्ती 2