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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

प्रेम के स्मृति-चिन्ह

जब १९४१ में अमेरिका दूसरे विश्वयुद्ध में उतरा तो एस्टेल ने बहुत प्रयास किया कि उसका प्रेमी सिडनी सेना में भरती न हो, परन्तु वह न माना। वह सेना में भर्ती हुआ और प्रशिक्षण लिया और युद्ध पर गया। अगले तीन वर्ष तक, युद्ध भूमि से वह एस्टेल को प्रेम पत्र लिखता रहा, उसने कुल ५२५ पत्र लिखे। मार्च १९४५ में एस्टेल को मालूम पड़ा कि उसका प्रीय मंगेतर युद्ध में मारा गया।

एस्टेल ने आखिरकर शादी तो कर ली, पर अपने पहले प्रेम की यादों को वह कभी भुली नहीं। अपने पहले प्रेम को सम्मानित करने के लिये, ६० वर्ष पश्चात उसने एक पुस्तक प्रकाशित करी - सिडनी के युद्धकालीन पत्रों के अपने संकलन की।

उन पत्रों की तरह, हमारे प्रभु ने भी हमारे प्रति अपने प्रेम के स्मृति-चिन्ह रख छोड़े हैं - उसका वचन। प्रभु कहता है:
"मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ, इस कारण मैं ने तुझ पर अपनी करुणा बनाए रखी है।" - यर्मियाह ३१:३
"जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैंने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।" - युहन्ना १५:९
बाइबल हमें यह भी बताती है कि "मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।" - इफिसियों ५:२५
"जिस [यीशु] ने अपने आप को हमारे लिये दे दिया, कि हमें हर प्रकार के अधर्म से छुड़ा ले, और शुद्ध करके अपने लिये एक ऐसी जाति बना ले जो भले भले कामों में सरगर्म हो।" - तीतुस २:१४
"...परमेश्वर प्रेम है।" - १ युहन्ना ४:८

परमेश्वर के वचन को बारंबार पढ़िये और स्मरण रखिये कि यीशु ने आपसे प्रेम किया है और आपके लिये अपनी जान दी है। - एनी सेटास


परमेश्वर का प्रेम अतुल्य है।

...परमेश्वर प्रेम है। - १ युहन्ना ४:८


बाइबल पाठ: युहन्ना १९:१-७, १६-१८

इस पर पीलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए।
और सिपाहियों ने कांटों का मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंजनी वस्‍त्र पहिनाया।
और उसके पास आ आकर कहने लगे, हे यहूदियों के राजा, प्रणाम! और उसे थप्‍पड़ मारे।
तब पीलातुस ने फिर बाहर निकल कर लोगों से कहा, देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूं ताकि तुम जानो कि मैं उसमें कुछ भी दोष नहीं पाता।
तब यीशु कांटों का मुकुट और बैंजनी वस्‍त्र पहिने हुए बाहर निकला और पीलातुस ने उन से कहा, देखो, यह पुरूष।
जब महायाजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, कि उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर : पीलातुस ने उन से कहा, तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ क्‍योंकि मैं उस में दोष नहीं पाता।
यहूदियों ने उस को उत्तर दिया, कि हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्‍योंकि उस ने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया। तब उस ने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।।
तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो खोपड़ी का स्थान कहलाता है और इब्रानी में गुलगुता।
वहां उन्‍होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १३५, १३६
  • १ कुरिन्थियों ११:१७-३४

सोमवार, 30 अगस्त 2010

हीरों से भी बेशकीमती

खगोल शास्त्रियों को आकाश मंडल में अपनी खोज के दौरान एक ऐसे तारे का पता लगा जो बुझ कर ठंडा हो गया , सिकुड़ कर विशालकाय हीरा बन गया था। पृथ्वी पर पाया गया सबसे बड़ा हीरा ’कलिनन हीरे’ के नाम से जाना जाता है और उसका वज़न है ३१०० कैरट, इसकी तुलना में आकाश मंडल में पाए गए उस हीरे का वज़न हज़ारों खरबों कैरट है।

हमारे संसार में हीरों की कीमत उनके अनूठेपन, सौन्दर्य और टिकाऊ होने से होती है; कहावत है कि ’हीरा सदा के लिये होता है’। किंतु परमेश्वर हीरों से आसक्त नहीं है, उसके लिये तो कुछ और ही है जिसे वह बेशकीमती मानता है।

हज़ारों साल पहले, दाउद ने अचंभा किया कि परमेश्वर ने मनुष्य जाति को इतना कीमती क्योंकर जाना? दाउद ने कहा कि "तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? क्योंकि तू ने उसको परमेश्वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है" (भजन ८:४, ५)।

असलियत तो यह है कि परमेश्वर ने हमारी इतनी कीमत आंकी कि पाप और उसके दण्ड से हमारे छुटकारे के लिये उसने अपने प्रीय पुत्र मसीह यीशु को दे दिया (१ पतरस १:१८, १९)।

यदि परमेश्वर हमें इतना बहुमूल्य मानता है तो हमें भी उन लोगों को कीमती मानना चाहिये जिन्हें वह हमारे जीवनों में लेकर आता है। हमें चाहिये कि उन लोगों को हम प्रभु के समक्ष अपनी प्रार्थनाओं में लेकर आएं। परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें दिखाए कि कैसे प्रत्येक मनुष्य सृष्टी के सबसे बेशकीमती हीरे से भी बहुमूल्य है। - डेनिस फिशर


यीशु के लिये हम सबसे बहुमूल्य हीरे से भी अधिक कीमती हैं।

तू ने...महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। - भजन ८:५


बाइबल पाठ: भजन ८

हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! तू ने अपना विभव स्वर्ग पर दिखाया है।
तू ने अपने बैरियों के कारण बच्चों और दूध पिउवों के द्वारा सामर्थ्य की नेव डाली है, ताकि तू शत्रु और पलटा लेने वालों को रोक रखे।
जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तरागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं,
तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?
क्योंकि तू ने उसको परमेश्वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है।
तू ने उसे अपने हाथों के कार्यों पर प्रभुता दी है, तू ने उसके पांव तले सब कुछ कर दिया है।
सब भेड़-बकरी और गाय-बैल और जितने वन पशु हैं,
आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियां, और जितने जीव-जन्तु समुद्रों में चलते फिरते हैं।
हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १२९-१३१
  • १ कुरिन्थियों ११:१-१६

रविवार, 29 अगस्त 2010

प्रेम की सामर्थ

एक डॉक्युमेन्टरी फिल्म "Young@Heart" (दिल से जवान) २४ गायकों के ऐसे समूह की रोचक कहानी है जिनकी औसत आयु ८० वर्ष है। इस फिल्म में उनके इस गुट के कार्यों को बड़े रोचक, विनोद से भरे और हलके फुलके अन्दाज़ में दिखाया गया है। इस फिल्म की एक मर्मस्पर्षी घटना है जब वे एक बन्दीगृह में जाकर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं, और कार्यक्रम के अन्त में वे मंच से उतरकर उपस्थित बन्दियों के बीच में चले जाते हैं और उनके के साथ हाथ मिलाकर और उन से गले लगकर, उन अवाक कैदियों का अभिनन्दन करते हैं।

कैदी उनके इस कोमल और अप्रतिक्षित व्यवहार से प्रभावित और विस्मित हुए। यह मुझे स्पनयाह की पुस्तक स्मरण दिलाता है जहां स्पन्याह भविष्यद्वक्ता दुखः में पड़े लोगों के लिये परमेश्वर की उपस्थिति और प्रेम का सन्देश लेकर आता है - "तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है वह तेरे कारण आनन्द से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुप ना रहेगा, वह फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा" (स्पन्याह ३:१७)।

बाइबल शिक्षिका हेनरीयटा मेयर्स के अनुसार, "स्पन्याह की पुस्तक का आरंभ तो दुखः के साथ, परन्तु अन्त आनन्द के गीत के साथ होता है। पुस्तक के पहले भाग में उदासी और निराशा है, किंतु अन्तिम भाग में पुराने नियम में पाये जाने वाले प्रेम के सबसे मधुर गीत हैं।"

परमेश्वर का प्रेम हमें सदा चकित करता रहता है, विशेषकर तब जब वह हमें जीवन के किसी निराशा से भरे समय में छूता है। निराशा के ऐसे समयों में परमेश्वर हमारे पास अपने आनन्द, अपने प्रेम और अपने गीत लिये हुए आता है। - डेविड मैककैसलैंड


परमेश्वर की वाटिका में हम कभी न भुलाए जाने वाले सुमन की तरह हैं।

तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है वह तेरे कारण आनन्द से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुप ना रहेगा, वह फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा। - स्पन्याह ३:१७


बाइबल पाठ: स्पन्याह ३:१४-२०

हे सिय्योन, ऊंचे स्वर से गा, हे इस्राएल, जयजयकार कर! हे यरूशलेम अपने सम्पूर्ण मन से आनन्द कर, और प्रसन्न हो!
यहोवा ने तेरा दण्ड दूर कर दिया और तेरा शत्रु भी दूर किया गया है। इस्राएल का राजा यहोवा तेरे बीच में है, इसलिये तू फिर विपत्ति न भोगेगी।
उस समय यरूशलेम से यह कहा जाएगा, हे सिय्योन मत डर, तेरे हाथ ढीले न पड़ने पाएं।
तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है वह तेरे कारण आनन्द से मगन होगा, वह अपने प्रेम के मारे चुप ना रहेगा, फिर ऊंचे स्वर से गाता हुआ तेरे कारण मगन होगा।
जो लोग नियत पर्वो में सम्मिलित न होने के कारण खेदित रहते हैं, उनको मैं इकट्ठा करूंगा, क्योंकि वे तेरे हैं और उसकी नामधराई उनको बोझ जान पड़ती है।
उस समय मैं उन सभों से जो तुझे दु:ख देते हैं, उचित बर्ताव करूंगा। और मैं लंगड़ों को चंगा करूंगा, और बरबस निकाले हुओं को इकट्ठा करूंगा, और जिनकी लज्जा की चर्चा सारी पृथ्वी पर फैली है, उनकी प्रशंसा और कीर्ति सब कहीं फैलाऊंगा।
उसी समय मैं तुम्हें ले जाऊंगा, और उसी समय मैं तुम्हें इकट्ठा करूंगा, और जब मैं तुम्हारे साम्हने तुम्हारे बंधुओं को लौटा लाऊंगा, तब पृथ्वी की सारी जातियों के बीच में तुम्हारी कीर्ति और प्रशंसा फैला दूंगा, यहोवा का यही वचन है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १२६-१२८
  • १ कुरिन्थियों १०:१९-३३

शनिवार, 28 अगस्त 2010

पलटी हुई भेड़

अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक "A Shepherd Looks at Psalm 23" (भजन २३ - एक चरवाहे के नज़रिये से) में फिलिप केलेर भेड़ों के प्रति चरवाहों की देख-रेख और कोमलता का सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हैं। भजन के तीसरे पद को समझाने के लिये, जहां दाउद कहता है "वह मेरे जी में जी ले आता है" फिलिप भेड़ों की देख-रेख से संबन्धित ऐसे उदाहरणों का उपयोग करता है जिन्हे हर एक चरवाहा पहचानता है।

भेड़ों के शरीर का गठन ऐसा होता है कि यदि वे किसी एक तरफ गिरकर पलट जाएं और पीठ के बल हो जाएं तो उनके लिये फिर अपने आप सीधे खड़े हो जाना बहुत कठिन होता है; वे केवल हवा में अपनी टांगें चलाती और मिमियाती रहती हैं, किंतु सीधी नहीं हो पातीं। ऐसे कुछ घंटे पलटे हुए पड़े रहने से उनके पेट में हवा जमा होने लगती है, पेट के फूलने से उनके सांस लेने में बाधा उत्पन्न होने लगती है और फिर वे सांस रुकने से मर जातीं हैं। उनकी इस स्थिति को पलटी हुई स्थिति कहते हैं।

जब चरवाहा ऐसी पलटी हुई भेड़ को फिर सीधा खड़ा करता है, तो वह उससे कोमलता से बात करता है, उसके टांगों की मालिश करके उनमें खून का प्रवाह ठीक करता है, फिर धीरे से उसे सीधा करके उसे अपने हाथों में उठा लेता है और उसके फिर से संतुलन पा लेने तक उसे सहारा दिये रहता है।

जो परमेश्वर हमारे लिये करना चाहता है यह उसका कितना अद्भुत चित्र है। जब हम परेशानियों के कारण ’पलटे’ हुए होते हैं, दुखः या असन्तोष या पाप के प्रभाव में छटपटा रहे होते हैं, हमारा प्रेमी और अच्छा चरवाहा अपने अनुग्रह से हमें सांत्वना देता है, हमें उठा कर खड़ा करता है और जब तक हम अपना आत्मिक सन्तुलन फिर प्राप्त न कर लें, वह हमें संभाले रहता है।

यदि किसी भी कारण से आप ’पलट’ गए हैं, तो परमेश्वर ही है जो अच्छे चरवाहे के समान आपको फिर से खड़ा कर सकता है। वही है जो आपके विश्वास, आनन्द और सामर्थ को आपको फिर से लौटा कर दे सकता है। - मार्विन विलियम्स


जो लाचार और कमज़ोर हैं वे उस ’अच्छे चरवाहे’ की विशेष देख-रेख में रहते हैं।

वह मेरे जी में जी ले आता है - भजन २३:३


बाइबल पाठ: भजन २३

यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी।
वह मुझे हरी हरी चराइयों में बैठाता है, वह मुझे सुखदाई जल के झरने के पास ले चलता है;
वह मेरे जी में जी ले आता है। धर्म के मार्गो में वह अपने नाम के निमित्त अगुवाई करता है।
चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है, तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है।
तू मेरे सताने वालों के साम्हने मेरे लिये मेज बिछाता है, तू ने मेरे सिर पर तेल मला है, मेरा कटोरा उमण्ड रहा है।
निश्चय भलाई और करूणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १२३-१२५
  • १ कुरिन्थियों १०:१-१८

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

हल्का मन

हम मसीही कभी कभी अपने गौरव को बनाए रखने के भ्रम में आवश्यक्ता से अधिक गंभीर और विनोद रहित हो जाते हैं। यह एक अजीब व्यवहार है, यह जानते हुए कि हम उस परमेश्वर के लोग हैं जिसने हंसी और आनन्द का अद्भुत दान हमें दिया है।

आनन्द-विनोद करना कोई गलत बात नहीं है, हर परिवार इसे अपने ही तरीके से करता है। मैं परमेश्वर का धन्यवादी हूँ कि उसने मुझे हंसी खुशी से भरे परिवार में रखा है। परिवार के हम सब सदस्य, आपस में हंसी मज़ाक करने, एक दूसरे की टांग खेंचने और एक दूसरे के साथ किसी न किसी बात में स्वस्थ प्रतियोगिता करने में लगे रहते हैं। हंसी हमारे जीवन की अनेक कठिनाईयों में परमेश्वर का ऐसा वरदान रहा है, जिसके साथ हम उन में से निकल सके। परमेश्वर का आनन्द अक्सर हमारा शरण स्थान और दृढ़ गढ़ रहा है (नेहेमेयाह ८:१०)।

जब राजा दाउद वाचा का पवित्र सन्दूक ओबेदेदोम के घर से यरुशलेम में लेकर आया तो "यहोवा के सम्मुख तन मन से नाचता रहा" ( २ शमुएल ६:१४)। पद १६ बताता है कि "जब यहोवा का सन्दूक दाऊदपुर में आ रहा था, तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना।" मीकल, जो दाउद की पत्नी भी थी, को लगा कि दाउद का यह करना उसके राजा होने की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं था और उसने दाउद को इसके लिये कड़ा उलाहना दिया। दाउद की प्रतिक्रिया थी कि वह परमेश्वर के सम्मुख अपने आप को और भी तुच्छ कर लेगा (पद २२) क्योंकि परमेश्वर में, दाउद का मन हलका और निश्चिंत था।

हंसी और आनन्द के लिये समय निकालिये (सभोपदेशक ३:४)। - डेविड रोपर


स्वस्थ हंसी बेशकीमती होती है।

मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं। - नीतिवचन १७:२२


बाइबल पाठ: २ शमुएल ६:१२-२३

तब दाऊद राजा को यह बताया गया, कि यहोवा ने ओबेदेदोम के घराने पर, और जो कुछ उसका है, उस पर भी परमेश्वर के सन्दूक के कारण आशिष दी है। तब दाऊद ने जाकर परमेश्वर के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर से दाऊदपुर में आनन्द के साथ पहूंचा दिया।
जब यहोवा के सन्दूक के उठानेवाले छ: कदम चल चुके, तब दाऊद ने एक बैल और एक पाला पोसा हुआ बछड़ा बलि कराया।
और दाऊद सनी का एपोद कमर में कसे हुए यहोवा के सम्मुख तन मन से नाचता रहा।
यों दाऊद और इस्राएल का समस्त घराना यहोवा के सन्दूक को जय जयकार करते और नरसिंगा फूंकते हुए ले चला।
जब यहोवा का सन्दूक दाऊदपुर में आ रहा था, तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना।
और लोग यहोवा का सन्दूक भीतर ले आए, और उसके स्थान में, अर्थात उस तम्बू में रखा, जो दाऊद ने उसके लिये खड़ा कराया था, और दाऊद ने यहोवा के सम्मुख होमबलि और मेलबलि चढ़ाए।
जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा चुका, तब उस ने सेनाओं के यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया।
तब उस ने समस्त प्रजा को, अर्थात‌, क्या स्त्री क्या पुरुष, समस्त इस्राएली भीड़ के लोगों को एक एक रोटी, और एक एक टुकड़ा मांस, और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। तब प्रजा के सब लोग अपने अपने घर चले गए।
तब दाऊद अपने घराने को आशीर्वाद देने के लिये लौटा। और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से मिलने को निकली, और कहने लगी, आज इस्राएल का राजा जब अपना शरीर अपके कर्मचारियों की लौंडियों के साम्हने ऐसा उघाड़े हुए था, जैसा कोई निकम्मा अपना तन उघाढ़े रहता है, तब क्या ही प्रतापी देख पड़ता था!
दाऊद ने मीकल से कहा, यहोवा, जिस ने तेरे पिता और उसके समस्त घराने की सन्ती मुझ को चुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने को ठहरा दिया है, उसके सम्मुख मैं ने ऐसा खेला--और मैं यहोवा के सम्मुख इसी प्रकार खेला करूंगा।
और इस से भी मैं अधिक तुच्छ बनूंगा, और अपने लेखे नीच ठहरूंगा, और जिन लौंडियों की तू ने चर्चा की वे भी मेरा आदरमान करेंगी।
और शाऊल की बेटी मीकल के मरने के दिन तक उसके कोई सन्तान न हुआ।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १२०-१२२
  • १ कुरिन्थियों ९

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

आध्यात्म विद्या का महत्व

किसी नई कार को खरिदते समय खरीदने वाले केवल उसकी बहरी रंग-रूप को ही नहीं देखते, वे उसके आंतरिक भागों को और उसे सुचारू रूप से और भली भांति चलाने वाले इंजन को भी जांचते हैं।

किंतु जीवन साथी चुनते समय, कुछ लोग इस प्रकार सावधान नहीं होते। उन्हें बहुत देर से समझ आता है कि आकर्षक दिखने वाली देह के अंदर एक दोषपूर्ण दिमाग और आत्मा है। आदमी और औरत, दोनों ही यह गलती करते हैं, परन्तु लेखिका कैरोलिन जेम्स विशेषकर मर्दों के लिये यह लिखती है कि, "एक मर्द के लिये जीवन साथी चुनते समय जो जांचने की प्रथम बात होनी चाहिये वह है उस औरत की आध्यात्म विद्या में रुचि। इस बात का महत्व समझ में तब आता है जब आदमी को जीवन में किसी गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ता है और उसे प्रोत्साहन देने के लिये केवल वह स्त्री ही उसके साथ हो।

राजा सुलेमान को यह पता होना चहिये था, आखिरकर वह संसार का सबसे बुद्धिमान मनुष्य था ( १ राजा ३:१२, ४:२९-३४)। परन्तु सुलेमान ने परमेश्वर की आज्ञा मानने के स्थान पर, अपनी इच्छाओं के अनुसार मनमानी करी, और ऐसी स्त्रीओं से ब्याह किया जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करतीं थीं (११:१, २)। इसके परिणाम घातक हुए, सुलेमान की पत्नियों ने उसका मन अन्य देवी-देवताओं की ओर मोड़ दिया (पद ३, ४) और परमेश्वर उससे क्रोधित हुआ। इसका दीर्घकालीन परिणाम हुआ कि इस्त्राएल का राज्य विभाजित और पराजित हुआ (पद ११-१३)।

परमेश्वर का अच्छा ज्ञान सबके लिये आवश्यक है। यदि हमारा प्रेम किसी ऐसे जन के प्रति है जो परमेश्वर को नहीं जानता और न प्रेम करता है, तो जीवन में सही निर्णय ले पाना हमारे लिये कठिन होगा। - जूली ऐकरमैन लिंक


परमेश्वर के संबंध में गलत धारणाएं और विश्वास रखने से, मनुष्यों के संबंध में गलत निर्णय ले लिए जाते हैं।


अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो - २ कुरिन्थियों ६:१४

बाइबल पाठ: १ राजा १:४-१३

सो जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपने पिता दाऊद की नाईं अपने परमेश्वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा।
सुलैमान तो सीदोनियों की अशतोरेत नाम देवी, और अम्मोनियों के मिल्कोम नाम घृणित देवता के पीछे चला।
और सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और यहोवा के पीछे अपने पिता दाऊद की नाईं पूरी रीति से न चला।
उन दिनों सुलैमान ने यरूशलेम के साम्हने के पहाड़ पर मोआबियों के किमोश नाम घृणित देवता के लिये और अम्मोनियों के मोलेक नाम घृणित देवता के लिये एक एक ऊंचा स्थान बनाया।
और अपनी सब पराये स्त्रियों के लिये भी जो अपने अपने देवताओं को धूप जलातीं और बलिदान करती थीं, उस ने ऐसा ही किया।
तब यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया, क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से फिर गया था जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया था।
और उस ने इसी बात के विषय में आज्ञा दी थी, कि पराये देवताओं के पीछे न हो लेना, तौभी उस ने यहोवा की आज्ञा न मानी।
और यहोवा ने सुलैमान से कहा, तुझ से जो ऐसा काम हुआ है, और मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई वीधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं राज्य को निश्चय तुझ से छीन कर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा।
तौभी तेरे पिता दाऊद के कारण तेरे दिनो में तो ऐसा न करूंगा, परन्तु तेरे पुत्र के हाथ से राज्य छीन लूंगा।
फिर भी मैं पूर्ण राज्य तो न छीन लूंगा, परन्तु अपने दास दाऊद के कारण, और अपने चुने हुए यरूशलेम के कारण, मैं तेरे पुत्र के हाथ में एक गोत्र छोड़ दूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११९:८९-१७६
  • १ कुरिन्थियों ८

बुधवार, 25 अगस्त 2010

मित्र के लिए विलाप

एक पास्टर होने के नाते मुझे कई बार अन्त्येष्टि क्रियाओं का नेतृत्व करना पड़ता है। ऐसे में सभा का संचालक मुझे एक पोस्ट कार्ड के आकार का कार्ड पकड़ा देता है जिसमें मृतक के बारे में लिखा होता है, जिससे मैं उस व्यक्ति के बारे में जानकारी बता सकूं। चाहे यह पद्वति कितनी भी व्यावाहरिक और आवश्यक हो, मैं कभी भी इसके साथ सन्तुष्ट नहीं रहा। मुझे सदा यही लगा कि किसी के संपूर्ण जीवन को एक छोटे से कार्ड पर सीमित कर देना सही नहीं है, जीवन एक कार्ड से कहीं बड़ा है।

अपने मित्र योनातान की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद, दाउद ने उसके जीवन को याद करने में समय बिताया, उसने अपने मित्र की याद में एक विलपगीत भी लिखा (२ शमुएल १:१७-२७) जिसे गाकर लोग उसे स्मरण कर सकें। विलापगीत में दाउद ने अपने मित्र के साहस और कौशल को स्मरण किया, अपने गहरे दुखः की बात कही, योनातान के उत्तम, मनोहर और वीरता से भरे जीवन की सराहना करी। दाउद के लिए यह यादगारी और गहरे विलाप का समय था।

जब हम किसी प्रीय के लिये दुखी होते हैं, तो यह अति आवश्यक है कि हम उसके जीवन की प्रीय यादों और उसके साथ के अपने अनुभवों को स्मरण करें। यह यादें हमारे हृदय में ख्यालों की एक बाढ़ सी ले आतीं हैं, जिन्हें एक कार्ड में सीमित कर पाना संभव नहीं है। जिस दिन यह दुखः हमारे पास आता है, वह दिन संक्षिप्त यादों और अपने प्रीय के जीवन की छोटी झांकियों को याद करने का समय नहीं है। वह समय है विस्तारपूर्वक और गहराई से अपने प्रीय जन को याद करने का और उसके जीवन के प्रसंगों, विवरण और उसके द्वारा हमारे जीवन पर पड़ी छाप के लिये परमेश्वर को धन्यवाद देने का।

ऐसा समय होता है ठहरने, मनन करने और आदर देने का। - बिल क्राउडर


जीवन की बहुमूल्य यादें मृत्यु के गंभीर दुखः को सहने योग्य बना देती हैं।

हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दु:खित हूँ, तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था - २ शमुएल १:२६


एक साल में बाइबल:
  • भजन ११९:१-८८
  • १ कुरिन्थियों ७:२०-४०

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

अपनी कहानी सुनाओ

न्यूयॉर्क के एक संगठन में कार्य करने वाले एक सलहकार का कहना है उसके स्नातक विद्यार्थी उसके द्वारा उनके सामने रखी गई बातों का केवल लगभग ५ प्रतिशत ही याद रखते हैं, किंतु उन्हीं बातों के दौरान, उदाहरण स्वरूप सुनाई गई कहानियों का लगभग ५० प्रतिशत उन्हें याद रहता है। संपर्क विशेषज्ञों में यह मत बढ़ता जा रहा है कि किसी बात को दूसरों तक पहुंचाने में व्यक्तिगत संपर्क का बहुत महत्व है। किसी भी वकतव्य में, कोरे तथ्य और संख्याएं श्रोताओं को सुला देते हैं किंतु वास्तविक अनुभवों के दृष्टांत उन्हें कार्य करने के लिये प्रेरित करते हैं। लेखिका ऐनैट सिमन्स का कहना है कि किसी भी असफल संपर्क में असफलता का मुख्य कारण मानवीय स्पर्श का अभाव होता है।

मरकुस ५:१-२० में वृतान्त है एक ऐसे मनुष्य का जो दुष्टात्माओं से पीड़ित था, किसी के भी काबू में नहीं रहता था और अपने आप को घायल करता रहता था। प्रभु यीशु ने उसे उन दुष्टआत्माओं से छुड़ाया, तो उस चंगे हुए व्यक्ति ने प्रभु से विनती करी कि अब प्रभु उसे अपने साथ ही रहने दे, "परन्‍तु उस [प्रभु यीशु] ने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं। वह जाकर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए, और सब अचम्भा करते थे।" (मरकुस ५:१९, २०)

साधारणतया, प्रभु यीशु के सुसमाचार के प्रचार में ज्ञान और वाकपटुता को आवश्यक्ता से कहीं अधिक महत्व दिया जाता है। परमेश्वर ने आप के साथ जो किया है, उसकी सामर्थ को कम मत समझिये, और अपने उद्धार के जीवन कि कहानी लोगों को सुनाने से मत घबराइये। - डेविड मैककैसलैंड


सुसमाचार बांटना, एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे को अच्छी खबर सुनाने जैसा है।

...अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं। - मरकुस ५:१९


बाइबल पाठ:

और वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुंचे।
और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्‍त एक मनुष्य जिस में अशुद्ध आत्मा थी कब्रों से निकल कर उसे मिला।
वह कब्रों में रहा करता था। और कोई उसे सांकलों से भी न बान्‍ध सकता था।
क्‍योंकि वह बार बार बेडिय़ों और सांकलों से बान्‍धा गया था, पर उस ने साकलों को तोड़ दिया, और बेडिय़ों के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था।
वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ो में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया।
और ऊंचे शब्‍द से चिल्लाकर कहा "हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्‍या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि मुझे पीड़ा न दे।"
क्‍योंकि उस ने उस से कहा था, "हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।"
उस ने उस से पूछा "तेरा क्या नाम है?" उस ने उस से कहा "मेरा नाम सेना है क्‍योंकि हम बहुत हैं।"
और उस ने उस से बहुत बिनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज।
वहां पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्‍ड चर रहा था।
और उन्‍होंने उस से बिनती करके कहा, कि "हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं।"
सो उस ने उन्‍हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकल कर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्‍ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर फील में जा पड़ा, और डूब मरा।
और उन के चरवाहों ने भाग कर नगर और गांवों में समाचार सुनाया।
और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। और यीशु के पास आकर, वह जिस में सेना समाई थी, उसे कपड़े पहिने और सचेत बैठे देख कर, डर गए।
और देखने वालों ने उसका जिस में दुष्‍टात्माएं थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उन को कह सुनाया।
और वे उस से बिनती कर के कहने लगे, कि हमारे सिवानों से चला जा।
और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिस में पहिले दुष्‍टात्माएं थीं, उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे।
परन्‍तु उस ने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, "अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।"
वह जाकर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए, और सब अचम्भा करते थे।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११६-११८
  • १ कुरिन्थियों ७:१-१९

सोमवार, 23 अगस्त 2010

दाउद के समान

एक वृद्धा को अपने पास्टर का प्रति रविवार की प्रातः प्रार्थना करने का तरीका अच्छा नहीं लगता था, सो उसने जाकर यह बात उनसे कही। वृद्धा ने पास्टर से कहा कि, "मेरा पास्टर पाप कर सकता है, मैं ऐसा सोचना भी नहीं चाहती"। जब सन्देश देने से पहले पास्टर प्रार्थना में परमेश्वर के आगे यह अंगीकार और पश्चाताप करता कि बीते सप्ताह में उससे पाप हुआ है, इससे उसे परेशानी होती थी।

हम यह मानना चाहते हैं कि हमारे आत्मिक अगुवे पाप नहीं करते, परन्तु वास्तविकता यही है कि कोइ भी मसीही शरीर के पापी स्वभाव के बोझ से मुक्त नहीं है। पौलुस ने कुलुस्सियों के विश्वासियों से कहा "इसलिये अपने उन अंगो को मार डालो, जो पृथ्वी पर [के] हैं..."(कुलुस्सियों ३:५)। समस्या तब होती है जब हम ऐसा करने की अपेक्षा प्रलोभनों के आगे झुक जाते हैं और फिर पाप द्वारा परेशनियों में पड़ जाते है। यदि ऐसा हो तो हमें अपने आप को विवश और असहाय समझकर निराश नहीं हो जाना चाहिये। परमेश्वर ने आत्मिक अवस्था की पुनः प्राप्ति के लिये उपाय दिया है, परमेश्वर के वचन में हमारे पास अनुसरण करने के लिये एक उदाहरण है - राजा दाउद का।

राजा दाउद के पाप प्रलोभनओं के आगे घुटने टेकने से उत्पन्न दुशपरिणामों का उदाहरण हैं। ऐसी अव्स्था में पड़कर, जब दाउद ने परमेश्वर के सन्मुख अपने पाप को स्वीकार किया, तो उसके मन और कलम से जो निकला वह भजन ५१ में हमारे लिये एक नमूना है। भजन ५१ को ध्यान से पढ़िये और देखिये कि दाउद ने क्या किया - सबसे पहले वह परमेश्वर के चरणों पर गिर पड़ा, उससे अपने पाप का अंगीकार किया, क्षमा याचना करी और परमेश्वर के खरे न्याय पर विश्वास व्यक्त किया (पद १-६)। फिर उसने परमेश्वर द्वारा, जो क्षमा करके उसके पापों का लेखा मिटा सकता है, शुद्ध और स्वच्छ किये जाने का आग्रह किया (पद ७-९)। फिर अपने साथ पवित्र आत्मा की सहायता के बने रहने और अपने बहाल होने के लिये प्रार्थना करी (पद १०-१२)।

क्या पाप ने आपके आनन्द को छीन लिया है और परमेश्वर से आपकी संगति में बाधक हो गया है? तो दाउद के समान, आप भी अपनी समस्या के साथ परमेश्वर की शरण में जाएं। - डेव ब्रैनन


पश्चाताप, परमेश्वर के साथ हमारे चलने के लिये मार्ग को साफ करता है।

मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं... - भजन ५१:३


बाइबल पाठ: भजन ५१:१-१२

हे परमेश्वर, अपनी करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर, अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे।
मुझे भलीं भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ा कर मुझे शुद्ध कर!
मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।
मैं ने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है, ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे।
देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।
देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है, और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा।
जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्र हो जाऊंगा, मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा।
मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिस से जो हडि्डयां तू ने तोड़ डाली हैं वह मगन हो जाएं।
अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल।
हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर।
मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर।
अपने किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११३-११५
  • १ कुरिन्थियों ६

रविवार, 22 अगस्त 2010

अविनाशी

अंतरिक्ष यान, पृथ्वी पर अपनी वापसी के समय ध्वनि कि गति से २५ गुना अधिक तीव्र गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है। वायुमंडल से उत्पन्न घर्षण के कारण, यान का बाहरी तापमान ३००० डिग्री फैरन्हाईट तक हो जाता है। इतने अधिक तापमान पर यान को भस्म होने से बचाने के लिये विशेष ताप रोधक पदार्थ से बनी ३४,००० पट्टियों से बने खोल से उसकी सुरक्षा की जाती है। इन पट्टियां का ताप से नाश अथवा भस्म न होना अनिवार्य है, नहीं तो अंतरिक्ष यान नाश हो जाएगा।

मृत्यु और विनाश के इस संसार में कुछ भी अविनाशी नहीं है, परन्तु बाइबल अविनाशी जीवन के बारे में बताती है। प्रभु यीशु की तुलना व्यवस्था के कामों से करके कहा गया है कि, "जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्‍पष्‍टता से प्रगट हो गया" (इब्रानियों ७:१६)।

मसीह हमारा महायाजक (महापुरोहित) है, जिसकी याजकीय सेवकाई में हमारे पापों के लिये उसका बलिदान दिया जाना अनिवार्य था, और उसने ऐसा किया। पापों के लिये उस एक बलिदान के दिये जाने के बाद अब मृतकों में से मसीह का पुनरुत्थान इस बात को निश्चित करता है कि जितने पापों से पश्चाताप के साथ उसमें विश्वास लाएंगे, वे मसीह में अनन्त उद्धार को प्राप्त करेंगे।

स्वास्थ्य, संबंधों, धन-संपत्ति आदि की हानि में हम सोच सकते हैं कि जीवन विनाश हो गया, किंतु एक विश्वासी के लिये यह सत्य कदापि नहीं है। मसीह के साथ हुए हमारे आत्मिक गठजोड़ के कारण, यह उसका वायदा है कि हम उसके अविनाशी जीवन के भागीदार होंगे (युहन्ना १४:१९)। - डेनिस फिशर


जिन्होंने अपनी सुरक्षा परमेश्वर के हाथों में रखी है उन्हें कुछ भी हिला नहीं सकता।

...परन्‍तु तुम मुझे देखोगे, इसलिये कि मैं जीवित हूं, तुम भी जीवित रहोगे। - यूहन्ना १४:१९


बाइबल पाठ: इब्रानियों ७:११-२१

तक यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिस के सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्‍या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए
क्‍योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।
क्‍योंकि जिस के विषय में ये बातें कही जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिस में से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की।
तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की।
और जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्‍पन्न होने वाला था।
जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्‍पष्‍टता से प्रगट हो गया।
क्‍योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, कि तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है।
निदान, पहिली आज्ञा निर्बल और निष्‍फल होने के कारण लोप हो गई।
(इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं कि) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिस के द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं।
और इसलिये कि मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई।
(क्‍योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उस की ओर से नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा, कि प्रभु ने शपथ खाई, और वह उस से फिर ने पछताएगा, कि तू युगानुयुग याजक है)।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११०-११२ १
  • कुरिन्थियों ५

शनिवार, 21 अगस्त 2010

२० अगस्त की पोस्ट "मैं कर सकता हूँ" पर प्राप्त टिप्पणी के सन्दर्भ में


श्रीमन दीपक जी,
रोज़ की रोटी ब्लॉग पर करी गई आपकी टिप्पणी और प्रस्तुत विचारों के लिये धन्यवाद। दो पंक्तियों में आपने कुछ बहुत महत्वपुर्ण बातें अंकित करीं हैं। इनके और आपकी टिप्पणी बारे में, बहुत संक्षेप में और तीन शीर्षकों (- भाषा, क्षेत्र एवं संस्कृति, धर्म एवं धन) के अन्तर्गत अपनी बात कहना चाहुंगा।

१. - भाषा:
सृष्टि के सर्जनहार-पालनहार-तारणहार सृष्टिकर्ता को संसार की प्रत्येक भाषा में किसी न किसी शब्द से संबोधित और प्रकट किया जाता है। हमारी मातृभाषा हिंदी में यह शब्द है "परमेश्वर"। क्योंकि मसीही विश्वास प्रभु यीशु मसीह को इस समस्त सृष्टि का सर्जनहार-पालनहार-तारणहार सृष्टिकर्ता मानता है, इसीलिये उसके वचन को परमेश्वर का वचन कहते हैं। यह किसी भाषा अथवा संस्कृति की अवमानना या "आत्मसात करके उसके साथ खिलवाड़" नहीं है, केवल अपने विचार को जिस भाषा में व्यक्त करना है, उस भाषा में उपलब्ध उचित शब्द का प्रयोग है। यदि आप अंग्रेज़ी भाषा में परमेश्वर के बारे में कुछ कहना चाहेंगे तो "god" शब्द का प्रयोग तो करेंगे ही, तो क्या आपके ऐसा करने से पश्चिमी संस्कृति और विचारधारा की अवमानना होगी?

२. - क्षेत्र एवं संस्कृति:
न तो प्रभु यीशु मसीह और न मसीही विश्वास किसी संस्कृति या भूभाग तक सीमित हैं। बाइबल स्पष्ट बताती है कि प्रभु यीशु मसीह सारे संसार के लिये आये और सारे संसार के पापों के लिये उन्होंने अपना बलिदान दिया। इसमें किसी देश, धर्म, भाषा, जाति, रंग, शिक्षा, संपन्न्ता, पद-प्रतिष्ठा आदि का कोई स्थान या महत्व नहीं है। सारे संसार में जो कोई स्वेच्छा से उन पर विश्वास करके अपने निज पापों से पश्चाताप करता है, वह पापों की क्षमा, उद्धार एवं परमेश्वर कि सन्तान होने का अधिकार प्राप्त करता है। इस संदर्भ में अनुरोध करूंगा कि आप http://samparkyeshu.blogspot.com/2009/12/blog-post_20.html तथा संपर्कयीशु ब्लॉग पर उपलब्ध अन्य लेखों का अवलोकन एवं अधयन करें।

एक और गलतफहमी जो बहुत से लोगों में है, और आपने भी जिसका प्रयोग किया है - प्रभु यीशु मसीह पश्चिमी सभ्यता के हैं। जी नहीं; वैसे तो वे सारे संसार के हैं, किंतु यदि मात्र उनके जन्मस्थान, जीवन और कार्य स्थल के परिपेक्श की अति सीमित दृष्टि से भी देखें तो वे उस भूभाग से हैं जिसे संसार इस्त्राएल के नाम से जानता है और जो विश्व के एशिया महाद्वीप के मध्य-पूर्व का एक भाग है न कि पश्चिम का; हमारा देश भारत भी इसी महाद्वीप के दक्षिण का ही भाग है। इस दृष्टिकोण से भी प्रभु यीशु पश्चिम कि अपेक्षा हमारे अधिक निकट ठहरे।

इसी से संबंधित कुछ और बातों को कहना चाहुंगा: आम और प्रचलित धारणा के विपरीत, मसीही विश्वास अंग्रेज़ हमारे देश में लेकर नहीं आये, अंग्रेज़ों के भारत आने से लगभग १७००-१८०० तथा अब से लगभग २००० वर्ष पूर्व, प्रभु यीशु मसीह के मृत्कों में से पुनुर्त्थान और स्वर्गारोहण के कुछ ही वर्ष पश्चात उनके चेले, उन की आज्ञा के अनुसार, संसार के विभिन्न इलाकों में, उद्धार और पापों की क्षमा का उनका संदेश लेकर निकल पड़े और उन्हीं में से एक चेला - थोमा, भारतवर्ष आया और दक्षिण भारत में बस गया। उसके जीवन भर उसके पास सिवाय अपने प्रभु और गुरू की शिक्षाओं और उनकी आज्ञाकारिता के, और कुछ भी नहीं था; न कोई विदेशी मिशन, न कोई देशी अथवा विदेशी धन, न किसी पश्चिमी देश की संस्कृति या सभ्यता, न ही ऐसी किसी बात को दूसरों पर थोपने का इरादा, न अन्य कोई भी ऐसा उद्देश्य, जिसका आज अक्सर लोग मसीहीयों पर निराधार आरोप लगाते हैं। दुखः की बात है कि हमारे देश के जो ज्ञानी और समाज पर प्रभाव रखने वाले लोग इस एतिहासिक सत्य को जानते हैं, वे इसे प्रकट नहीं करते, वरन कुछ निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये, प्रचलित गलत धारणा को ही जानबूझकर लोगों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर रखते रहते हैं, तथ्यों से अन्जान लोगों को बरगलाते रहते हैं और उन्हें असत्य के आधार पर मसीहियों के विरुध भड़काते रहते हैं।

३. - धर्म और धन:
यह एक और बहुत बड़ी गलतफहमी है कि प्रभु यीशु संसार में अपना कोई धर्म स्थापित करने आये थे। वे कोई धर्म देने के लिये नहीं वरन संसार को पापों से मुक्ति का मार्ग देने आये थे। न तो उन्होंने स्वयं किसी धर्म की स्थापना करी और न ही कभी अपने अनुयायियों से ऐसा करने को कहा। इसाई धर्म और मसीही विश्वास में ज़मीन-आसमान का अंतर है। मसीही विश्वास प्रभु यीशु मसीह पर व्यक्तिगत रूप से और स्वेच्छा से किया जाता है, यह विश्वास है - कोई धर्म नहीं है। हमारी अपनी भारतीय संस्कृति के संदर्भ में इसे समझना और भी सरल है - यह प्रभु यीशु को गुरू धारण करके पूर्ण रूप से उसे समर्पित होना, अपने गुरू का अनुसरण करना और आज्ञाकारी रहना ही है। यदि मेरे पास सर्वोत्तम गुरू और उसकी सर्वोत्तम शिक्षाएं हैं, तो उसके बारे में दुसरों को बताने में क्या बुराई है? क्या प्रभु यीशु में या उसकी शिक्षाओं में आपने कुछ ऐसा पाया जो गलत है? हो सकता है कि इसाई धर्म या उस धर्म का पालन करने वालों में आपने कोई आपत्तिजनक बातें पाईं हों, पर प्रभु यीशु में? प्रभु यीशु धर्म, देश, संस्कृति, जाति आदि की सीमाओं में बंधा नहीं है, न ही वह इन और ऐसी बातों के आधार पर संसार और संसार के लोगों को विभाजित करता है, और न ही वह किसी को इन बातों के आधार पर ऊंचा-नीचा, छोटा-बड़ा, भला-बुरा आदि करके बताता है। वह तो अपने प्रेम और अनुग्रह में सब को, चाहे वे जो भी और जैसे भी हों, अपने आप में एक करके, बराबरी का एक ही दर्जा देता है - परमेश्वर की संन्तान होने का।

प्रत्येक धर्म में, इसाई धर्म में भी, उस धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेने से, स्वाभाविक रीति से, जन्म लेने वाला बच्चा उसी धर्म का हो जाता है और उस धर्म के संसकारों में ही उसका पालन-पोषण होता है, और उसका उस धर्म की लीक से हटना बहुत बुरा माना जाता है। किंतु मसीही विश्वास में ऐसा नहीं है। मसीही विश्वास में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वेच्छा से अपने पापों का अंगीकार और पश्चाताप करके प्रभु यीशु को समर्पण करना होता है। मेरे मसीही विश्वासी होने से मेरे परिवार का कोई भी सदस्य मसीही नहीं हो जाता, और ना ही मुझे पापों की क्षमा मिलने के कारण मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को पापों की क्षमा स्वाभाविक रूप से या विरासत में मिल जाती है। मेरा उद्धार किसी दूसरे पर कदापि लागू नहीं होता। मैं उन्हें इसके बारे में बता सकता हूँ, समझा सकता हूँ, किंतु मसीही विश्वास में आना उनका अपना ही निर्णय होगा। यदि उन्होंने इस को नहीं माना और यह निर्णय नहीं लिया तो इस जीवन के बाद जब वे परमेश्वर के सामने अपने न्याय के लिये खड़े होंगे, तो मेरे मसीही विश्वास के सहारे अपने पापों की सज़ा से नहीं बच सकते। इसाई परिवार में जन्म लेने से, या इसाई धर्म अपना लेने से कोई मसीही विश्वासी नहीं हो जाता।

प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि धन या अन्य किसी संसारिक वस्तु के लालच का उपयोग करके उसके नाम में कोई समूह खड़ा करो, वरन उसने अपने चेलों को धरती पर नहीं परन्तु स्वर्ग में अपना धन एकत्रित करने को कहा, और धरती की नहीं वरन स्वर्गीय वस्तुओं के खोजी होने की शिक्षा दी। प्रभु यीशु का राज्य पृथ्वी का नहीं स्वर्ग का है, वह नाशमान नहीं वरन अविनाशी की ओर अपने चेलों का ध्यान करवाता है। ऐसे में प्रभु यीशु का कोई भी वास्तविक अनुयायी कैसे धन या सांसारिक वस्तुओं के लालच का उपयोग उसके नाम से कर सकता है? प्रभु यीशु ने न तो कोई धर्म दिया और न कभी किसी के धर्म परिवर्तन कराने की शिक्षा दी। उसने कहा "हे सब [पाप के] बोझ से दबे और थके लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।" प्रभु यीशु के नाम से धन या सांसारिक वस्तुओं के लालच का प्रयोग करना पाप है और उस लालच को स्वीकार करके उसका चेला बनने का दावा करना भी पाप है; दोनो ही बातें प्रभु यीशु की शिक्षाओं के विपरीत हैं। किंतु यदि प्रभु यीशु को ग्रहण करने से परिवार, समाज और संसार से तिरिस्कार मिले, तो ऐसे तिरिस्कृत लोगों की सहायता, प्रभु यीशु मसीह का सन्देश उन तक लाने वालों के द्वारा करी जाना, क्या अनुचित है? यदि ऐसे अनुचित और निराधार तिरिस्कार और कटुता नहीं होगी, अस्त्य के आधार पर लोगों को विभाजित करना नहीं होगा तो फिर लालच के आरोप का स्थान भी नहीं होगा।

मैं आपका आभारी हूँ कि आपकी टिप्पणी ने ये कुछ अति महत्वपूर्ण बातें उजागर करने का मुझे यह सुअवसर दिया। आशा करता हूँ कि आपकी गलतफहमी दूर हुई होगी और निवेदन है कि यथासंभव इन सत्यों को उजागर करें क्योंकि अन्ततः जीत तो सत्य की ही होती है, तथा प्रभु यीशु को परख कर देखें कि वह कैसा भला है।

धन्यवाद सहित - रोज़ की रोटी

प्रतिफल

एक समय था जब मैं प्रभु यीशु द्वारा मत्ती ५:३-१२ में कहे धन्य वचनों को ऐसे देखता था मानो वे अभागे व्यक्तियों को सांत्वना देने और उनका मन बहलाने के लिये प्रभु द्वारा कही गई कुछ भली बातें हों - "ओ गरीबों, बीमारों, दुखियों और रोने वालों, मैं तुम्हें थोड़ा अच्छा महसूस कराने के लिये, कुछ भली बातें बताता हूँ।"

पुराने समय के राजा, अपनी प्रजा के गरिब लोगों के बीच कुछ सिक्के फेंक दिया करते थे, किंतु यीशु इस योग्य है कि वह अपने लोगों को वास्तविक उपहार बांट सके। क्योंकि वह स्वर्ग से आया था, वह भली भांति जानता था कि स्वर्ग की महिमामय वस्तुओं का सुख इस संसार के दुख-क्लेशों से कहीं अधिक बढ़कर और उत्तम है।

आज के समय में बहुतेरे मसीहीयों के अन्दर से भविष्य के प्रतिफलों की लालसा जाती रही है। मेरे पूर्व पास्टर बिल लेस्ली कहते थे "जैसे जैसे चर्चों में धन और ऐश्वर्य बढ़ता जाता है, उनका स्तुति गीत भी बदल जाता है; फिर वे यह नहीं गाते कि ’संसार मेरा घर नहीं है, मैं तो इसमें केवल यात्री के समान हूँ’ वरन वे गाने लगते हैं कि ’यह संसार तो मेरे पिता का है’"।

भविष्य के प्रतिफलों की कीमत को हम कभी कम करके न आंकें। उन प्रतिफलों को ध्यान में रखने से मिलने वाली आशा और सांत्वना का उदाहरण हम अमेरिका के गुलाम विश्वासियों के गीतों में देख सकते हैं, जिन्होंने अपनी बदहाली में निराशाओं से निकलने के लिये अपने भविष्य के प्रतिफलों को याद किया और उसी के अनुसार गीत गाये, जैसे: "हे आशा के सुन्दर रथ, नीचे आ और मुझे मेरे स्थायी घर ले चल" ; "मेरे दुख को कोई नहीं जानता, कोई नहीं जानता, केवल यीशु"।

समय के साथ मैंने सीख लिया है कि यीशु द्वारा दिये जाने वाले भावी प्रतिफलों का न केवल आदर करूं, वरन उन की लालसा भी करूं। - फिलिप यैनसी


काले क्लेशों का प्रतिफल उज्जवल मुकुट होगा।

धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है। - मत्ती ५:३


बाइबल पाठ: मत्ती ५:३-१२

धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्‍योंकि वे शांति पाएंगे।
धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्‍योंकि वे पृथ्वी के अधिक्कारी होंगे।
धन्य हैं वे, जो दयावन्‍त हैं, क्‍योंकि उन पर दया की जाएगी।
धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे।
धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण झूठ बोल बोलकर तुम्हरे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
आनन्‍दित और मगन होना क्‍योंकि तुम्हारे लिये स्‍वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्‍होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।
तुम पृथ्वी के नमक हो, परन्‍तु यदि नमक का स्‍वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्‍तु से नमकीन किया जाएगा?

एक साल में बाइबल:
  • भजन १०७-१०९ १
  • कुरिन्थियों ४

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

मैं कर सकता हूँ

बच्चों की एक कहानी है, एक छोटे ट्रेन ईंजन के बारे में। एक चढ़ाई पर आकर उसने ट्रेन को ऊपर ले जाने की ठान ली और अपने अप से कहता गया ’मैं सोचता हूँ कि मैं यह कर सकता हूँ’ और चढ़ता गया। थोड़ी देर में उसका विचार निश्चय में बदल गया और फिर उसने कहना शुरू कर दिया ’मैं जानता हूँ कि मैं कर सकता हूँ।’

कोई इस बात से इन्कार नहीं करेगा कि मसीह के अनुयायीयों को सकारात्मक सोच के साथ जीवन निर्वाह करना है। किंतु क्या कभी आप अपने आप को अपनी योग्यताओं और सामर्थ पर अधिक और आप में बसने वाले परमेश्वर के आत्मा की सामर्थ पर कम भरोसा रखते हुए पाते हैं?

यूहन्ना १५ में प्रभु यीशु ने समझाया कि उसके अनुयायीयों को पूर्ण्तयाः उस पर निर्भर रहना चाहिये, उसने कहा " मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो, जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्‍योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते" (यूहन्ना १५:५)। पौलुस ने स्मरण दिलाया कि "जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं" (फिलिप्पियों ४:१३); और "कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ" (इफिसियोम ३:१६) जिससे "...कि यह असीम सामर्थ हमारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर ही की ओर से ठहरे" (२ कुरिन्थियों ४:७)।

परमेश्वर की उपलब्ध सामर्थ के द्वारा, उसमें होकर हम वह सब कुछ कर सकते हैं जो वह हमसे चाहता है। हम अपना भरोसा अपनी सीमित योग्यताओं और सामर्थ पर नहीं, वरन परमेश्वर की असीमित सामर्थ और वाचाओं पर रख सकते है।

इसलिये आज अपनी हर परिस्थिति और कठिनाई में, हमें उपलब्ध उस असीम सामर्थ के आधार पर, उस छोटे ट्रेन इंजन से कहीं अधिक दृढ़ता से हम कह सकते हैं "मैं जानता हूँ मैं कर सकता हूँ; मैं जानता हूँ मैं कर सकता हूँ - प्रभु यीशु के कारण।" - सिंडी हैस कैस्पर


परमेश्वर के काम परमेश्वर की सामर्थ से ही पूरे होते हैं

अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है - इफीसियों ३:२०


बाइबल पाठ: इफीसियों ३:१४-२१

मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं,
जिस से स्‍वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।
कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ।
और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़ कर और नेव डाल कर।
सब पवित्र लागों के साथ भली भांति समझने की शक्ति पाओ कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।
और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ।
अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है,
कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १०५, १०६ १
  • कुरिन्थियों ३

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

दिल की बात

टी. वी. के एक व्यापरिक विज्ञापन में, विनोदात्मक रूप से दिखाया गया, कि जब भी सूसन मुहँ खोलती तो उसके मुहँ से सायरन की सी आवाज़ निकलती, क्योंकि सूसन के दांत खराब थे और वह अपने दन्त चिकित्सक के पास जाना टालती जा रही थी। उसे स्मरण दिलाने के लिये उसके दांतों से सायरन बजता था।

इस विज्ञापन ने मुझे सोच में डाल दिया कि जब मैं मुहँ खोलता हूँ तो मेरे मुहँ से क्या निकलता है? प्रभु यीशु ने कहा कि हमारे मुहँ के शब्द हमारे हृदय से आते हैं (मत्ती १५:१८)। यीशु ने कहा कि "जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्‍या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई" (मत्ती १५:११, १२), और उसकी इस बात ने उसके समय के धर्मगुरुओं - फरीसियों को क्रुद्ध किया। फरीसी मानते थे कि वे परमेश्वर के साथ सही हैं क्योंकि वे धर्म संबंधी नियमों और रीति रिवाज़ों का कड़ाई से पालन करते थे। वे केवल "शुद्ध" भोजन वस्तुएं ही ग्रहण करते थे और भोजन से पहले शरीर की स्वच्छता का पालन करते थे। यीशु ने अपनी शिक्षाओं से उनके धर्म संबम्धी घमण्ड को झकझोरा, जो उन्हें अच्छा नहीं लगा।

प्रभु यीशु हमारे घमण्ड को भी झकझोरता है। हम सोचते हैं कि हम धर्मी हैं क्योंकि हम नियम से चर्च जाते हैं, प्रार्थना करते हैं, विधियों का पलन करते हैं आदि; लेकिन और क्या करते हैं - पीठ पीछे लोगों की बुराई, इससे-उससे किसी के बारे में उलटा सीधा बोलना? याकूब ने अपनी पत्री में लिखा "इसी [हमारी जीभ] से हम प्रभु और पिता की स्‍तुति करते हैं, और इसी से मनुष्यों को जो परमेश्वर के स्‍वरूप में उत्‍पन्न हुए हैं श्राप देते हैं। एक ही मुंह से धन्यवाद और श्राप दोनों निकलते हैं। हे मेरे भाइयों, ऐसा नहीं होना चाहिए।" (याकूब ३:९-११)

जब हम मुहँ खोलें और अनुचित बोलें तो हमें अपने दिल को जांचने और मन की मलिन्ता के लिये परमेश्वर से क्षमा माँगने की आवश्यक्ता है, और साथ ही परमेश्वर से यह भी माँगें कि उसकी सहायता से हम दूसरों के लिये आशीश का कारण हो सकें। - एने सेटास


आपका मुहँ आपके मन का दर्पण है।

पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। - मत्ती १५:१८


बाइबल पाठ: मत्ती १५:७-२०

हे कपटियों, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की।
कि ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है।
और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्‍योंकि मनुष्य की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।
और उस ने लोगों को अपने पास बुलाकर उन से कहा, सुनो और समझो।
जो मुंह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, पर जो मुंह से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
तब चेलों ने आकर उस से कहा, क्‍या तू जानता है कि फरीसियों ने यह वचन सुनकर ठोकर खाई
उस ने उत्तर दिया, हर पौधा जो मेरे स्‍वर्गीय पिता ने नहीं लगाया, उखाड़ा जाएगा।
उन को जाने दो; वे अन्‍धे मार्ग दिखाने वाले हैं: और अन्‍धा यदि अन्‍धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे।
यह सुनकर, पतरस ने उस से कहा, यह दृष्‍टान्‍त हमें समझा दे।
उस ने कहा, क्‍या तुम भी अब तक ना समझ हो?
क्‍या नहीं समझते, कि जो कुछ मुंह में जाता, वह पेट में पड़ता है, और सण्‍डास में निकल जाता है?
पर जो कुछ मुंह से निकलता है, वह मन से निकलता है, और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
क्‍योंकि कुचिन्‍ता, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्‍दा मन ही से निकलती हैं।
यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्‍तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।

एक साल में बाइबल:
  • भजन१०३, १०४ १
  • कुरिन्थियों २

बुधवार, 18 अगस्त 2010

धोखे से सावधान

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, ६ जून १९४४ को मित्र देशों की सम्मिलित सेना ने फ्रांस के नॉरमैण्डी शहर के निकट समुद्र तट पर नौसेना द्वारा बहुत बड़ा हमला किया। साथ ही वायुसेना ने हज़ारों छाताधारी सैनिक उस इलाके में उतारे गये। इन छाताधारी सैनिकों के साथ उन्होंने रबर के बने बहुत से पुतले भी, जिन्हें ’रूपर्ट’ नाम दिया गया था, शत्रु की सेना के पीछे उतारे, जिससे शत्रु को पीछे से हमले की गलतफहमी हो और वह असमंजस में पड़ जाए। पुतलों को अपने पीछे ज़मीन पर उतरते देख कई जर्मन चौकियों का ध्यान उनसे लड़ने की ओर चला गया जिससे उनकी सुरक्षा पंक्ति कमज़ोर हो गई और असली सैनिकों को पांव जमाने का अवसर मिल गया।

इस तरह के धोखे को हम दुशमन के इरादों को नाकाम करने और युद्ध लड़ने की एक जायज़ नीति कह सकते हैं, किंतु शैतान द्वारा हमें ऐसे ही किसी धोखे में फंसाना, कभी स्वीकार्य नहीं होना चाहिये। पौलुस ने समझाया कि, "यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है" और "शैतान के सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धारण करते हैं" ( २ कुरिन्थियों ११:१४, १५)।

हमें सचेत रहना है! हमारा आत्मिक शत्रु सदा इस प्रयास में रहता है कि मसीह के अनुयायी झूठी शिक्षा और गलत सिद्धांतों को मानकर गलत रास्ते पर चल निकलें। परन्तु यदि हम अपना ध्यान प्रभु यीशु मसीह पर और उसके वचन की स्पष्ट शिक्षाओं पर केंद्रित रखते हैं तो प्रभु से हमें सही दिशा निर्देश मिलता रहेगा।

धोखे से सावधान, शैतान के ’रूपर्टों’ से सचेत रहो। - बिल क्राउडर


परमेश्वर का सत्य शैतान के झूठ को उजागर कर देता है।

यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है। - २ कुरिन्थियों ११:१४, १५


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ११:३, ४, १२-१५

परन्‍तु मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्‍वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्‍ट न किए जाएं।
यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले, जो पहिले न मिला था, या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता।
परन्‍तु जो मैं करता हूं, वही करता रहूंगा, कि जो लोग दांव ढूंढ़ते हैं, उन्‍हें मैं दांव न पाने दूं, ताकि जिस बात में वे घमण्‍ड करते हैं, उस में वे हमारे ही समान ठहरें।
क्‍योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करने वाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले हैं।
और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिमर्य स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है।
सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्‍तु उन का अन्‍त उन के कामों के अनुसार होगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १००-१०२
  • १ कुरिन्थियों १

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

स्तुति का नया गीत

पास्टर विलिस को ९४ वर्ष की आयु में एक बुज़ुर्गों की देख भाल करने वाली संस्था में भर्ती कराया गया। एक से दूसरे स्थान जाने के लिये पहिये वाली कुर्सी पर निर्भर होने पर भी, उन्होंने आनन्द के साथ बताया कि कैसे इस संस्था में भर्ती होने के द्वारा परमेश्वर ने उन्हें सुसमाचार प्रचार का नया क्षेत्र दिया है। कुछ वर्ष पश्चात जब वह पूर्णत्य: शय्याग्रस्त हो गये तो वे बड़े जोश के साथ परमेश्वर की ओर मुंह रखने की सबसे उत्तम स्थिति में होने के बारे में बात करते थे। जब १०० वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ तो वे अपने पीछे जीवन के हर मोड़ पर परमेश्वर की स्तुति का एक नया गीत गाने की विरासत छोड़ कर गए।

भजन ९८ हमें परमेश्वर के लिये एक नया गीत गाने के लिये प्रेरित करता है "क्योंकि उस ने आश्चर्य कर्म किए हैं! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिये उद्धार किया है!" (भजन ९८:१)। हमें मुश्किल परिस्थितियों में भी उसकी स्तुति करनी चाहिये क्योंकि "...अपनी करूणा और सच्चाई की सुधि ली..." (पद ३)। यद्यपि यह भजन परमेश्वर द्वारा इस्त्राएलियों को बंधुआई से छुड़ाए जाने के बारे में है, यह आने वाले समय में प्रभु यीशु द्वारा पाप की गुलामी से मिलने वाली स्वतंत्रता की और उसके न्याय की भविष्यद्वाणी भी है। जब हम याद करते हैं कि परमेश्वर ने हमारे लिये क्या कुछ किया है तो हम उस पर भरोसा भी रख सकते हैं कि वह आज की मुश्किलों और आने वाले समय की अनिश्चित्ताओं में भी हमारी सहायता करेगा।

भजनकार ने लिखा "समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, जगत और उसके निवासी महाशब्द करें! नदियां तालियां बजाएं, पहाड़ मिलकर जयजयकार करें। यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा" (पद ७-९)। आइये हम भी परमेश्वर की सृष्टि के साथ मिलकर अपने उद्धारकर्ता की स्तुति करें। - अल्बर्ट ली


परमेश्वर के साथ स्वर मिलाने वाल हृदय ही उसकी स्तुति के गीत गा सकता है।


हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा का जय जय कार करो, उत्साह पूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ! - भजन ९८:४


बाइबल पाठ: भजन ९८

यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ, क्योंकि उस ने आश्चर्यकर्म किए है! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिये उद्धार किया है!
यहोवा ने अपना किया हुआ उद्धार प्रकाशित किया, उस ने अन्य जातियों की दृष्टि में अपना धर्म प्रगट किया है।
उस ने इस्राएल के घराने पर की अपनी करूणा और सच्चाई की सुधि ली, और पृथ्वी के सब दूर दूर देशों ने हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार देखा है।
हे सारी पृथ्वी के लोगों यहोवा का जयजयकार करो, उत्साह पूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ!
वीणा बजाकर यहोवा का भजन गाओ, वीणा बजाकर भजन का स्वर सुनाओ।
तुरहियां और नरसिंगे फूंक फूंककर यहोवा राजा का जयजयकार करो।
समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, जगत और उसके निवासी महाशब्द करें!
नदियां तालियां बजाएं, पहाड़ मिलकर जयजयकार करें।
यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगों का न्याय करेगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ९७-९९
  • रोमियों १६

सोमवार, 16 अगस्त 2010

प्रभुत्व की पहचान

बालकपन में मुझे एक फिल्म Little Lord Fauntleroy देखना बहुत पसन्द था। यह फिल्म एक बालक सेडरिक की कहानी है जो अपनी मां के साथ न्यूयॉर्क में गरीबी की हालत में रहता है। एक दिन उसे समाचार मिलता है कि वह इंग्लैंड के एक कुलीन परिवार का सीधा वंशज है और बड़ी संपत्ति का उत्तराधिकारी है। न्यूयॉर्क की सड़कों पर खेलने वाला यह गरीब बालक अब अचानक ही इंग्लैंड की सड़कों पर लोगों से जयज्यकार के नारे सुनने और राजसी ठाठ के साथ चलने वाला व्यक्ति बन जाता है।

यदि आपने यीशु को नासरत की सड़कों पर खेलते देखा होता तो आपने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया होता। यदि उसे उसकी बढ़ई की दुकान में काम करते देखते तो उसके देवत्व के बारे में आपको आभास भी न होता। और यदि आपने उसे क्रूस पर लटके देखा होता, और आप उसमें निहित महान रहस्य को नहीं जानते, तो उस हृदय विदारक दृष्य ने आपको उसका आदर करने को कतई न उभारा होता।

लेकिन अपने मृत्कों में से पुनुरुत्थान के द्वारा यीशु ने अपनी सच्ची पहिचन संसार के सामने रख दी, कि वह सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च महाराजाधिराज है! जबकि "...परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है" (फिलिप्पियों २:९) इसलिये आइये हम बड़े आदर के साथ उसकी आराधना करें, जिसने इतनी नम्रता से अपना समर्पण किया और अपना बलिदान दिया ताकि वह हमारे लिये पाप और मृत्यु पर विजयी महाराजाधिराज हो सके। - जो स्टोवैल


परमेश्वर द्वारा निर्धारित राजाधिकारी को पहिचानिये, उसका आदर कीजिये, उसकी उपासना कीजिये।

..जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है। - फिलिप्पियों २:१०, ११


बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:५-११

जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो।
जिस ने परमेश्वर के स्‍वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्‍तु न समझा।
वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है।
कि जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ९४-९६
  • रोमियों १५:१४-३३

रविवार, 15 अगस्त 2010

नियमित अभ्यास

पाईक्स पीक चढ़ाई की दौड़ १३.३२ मील की एक अत्यन्त चुनौती भरी दौड़ है जो पहाड़ की तले से आरंभ होकर पहाड़ पर ७८१५ फीट की उंचाई पर समाप्त होती है। मेरे मित्र डॉन वालेस ने इसमें २० बार हिस्सा लिया है। अन्तिम बार जब उसने हिस्सा लिया तब वह अपने ६७वें जन्म दिन से केवल एक सप्ताह दूर था! डॉन इस की तैयारी दौड़ से कुछ समय पहले आरंभ नहीं करता, वरन उसने नियम बना रखा है कि वह प्रतिदिन ६ मील दौड़ेगा और सारे साल वह ऐसा करता है, चाहे वह जहां भी हो। यह अभ्यास वह लगभग अपने संपूर्ण व्यस्क जीवन करता रहा है और अब भी करता है।

पौलुस, १ कुरिन्थियों ९ अध्याय में अपने अनुशासित मसीही जीवन को जीने की उपमा दौड़ने से देता है। वह उद्देश्य और अनुशासन से दौड़ा जिससे कि अनन्त जीवन में वह जीत का मुकुट पा सके, और उसने औरों को भी ऐसा ही करने को प्रोत्साहित किया: "क्‍या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्‍तु इनाम एक ही ले जाता है तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो" (१ कुरिन्थियों ९:२४)।

इससे अगले पद, पद २५ में, वह अपने पाठकों को स्मरण दिलाता है कि जो खिलाड़ी इनाम पाने की आशा रखते हैं वे संयम के साथ नियमित अभ्यास करते हैं, क्योंकि अन्तिम समय पर करी गई किसी भी तैयारी की अपेक्षा ऐसा करना कहीं अधिक महत्वपूर्ण और कार्यकारी होता है।

जो जीवन की दौड़ हमारे सामने रखी है (इब्रानियों १२:१), हम उसे कैसा लेते हैं - परमेश्वर को प्रसन्न करने के निश्चय और उद्देश्य के अनुशासन के साथ या हलके में और लापरवाही से?

मसीही जीवन की दौड़ को सफलता से पूरी करने की कुंजी, प्रतिदिन उसके अनुशासन का नियमित अभ्यास है। - डेविड मैककैसलैंड


मसीही जीवन की दौड़ को दौड़ने के लिये समर्पण और अनुशासन अनिवार्य हैं।

क्‍या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्‍तु इनाम एक ही ले जाता है तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो। - १ कुरिन्थियों ९:२४


बाइबल पाठ:१ कुरिन्थियों ९:२४-२७

क्‍या तुम नहीं जानते, कि दौड़ में तो दौड़ते सब ही हैं, परन्‍तु इनाम एक ही ले जाता है तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।
और हर एक पहलवान सब प्रकार का संयम करता है, वे तो एक मुरझाने वाले मुकुट को पाने के लिये यह सब करते हैं, परन्‍तु हम तो उस मुकुट के लिये करते हैं, जो मुरझाने का नहीं।
इसलिये मैं तो इसी रीति से दौड़ता हूं, परन्‍तु बेठिकाने नहीं, मैं भी इसी रीति से मुक्कों से लड़ता हूं, परन्‍तु उस की नाईं नहीं जो हवा पीटता हुआ लड़ता है।
परन्‍तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं, ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ९१-९३
  • रोमियों १५:१-१३

शनिवार, 14 अगस्त 2010

सबसे घातक रोग

वियतनाम में सन २००३ में एक घातक शवास रोग SARS (Severe Acute Respiratory Syndrome) का पता लगा। जब तक कि इसे नियंत्रित किया जा पाता, यह सारे विश्व में फैल चुक था और ८०० के लगभग लोगों की जान ले चुका था। आरंभ में इसके घातक होने का प्रमुख कारण इसे उत्पन्न करने वाले वायरस का पता ना होना था। एक बार उस वायरस को पहचान कर और उसे समझ लिया गया, तो SARS पर काबू पाना आसान हो गया और काबू पा लिया गया।

एक अन्य, इससे भी घातक, बीमारी हमारे संसार में व्याप्त है - पाप का रोग। इसे भी काबू करना आसान नहीं है क्योंकि बहुत से लोग इसकी भयानकता को नहीं पहचानते, और कई इसके विष्य में बाइबल द्वारा दिये निदान और उपचार को नहीं मानते।

यहोशु ७ में हम अकान के पाप की दुखद घटना पढ़ते हैं। परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध उसने यरीहो से युद्ध की लूट की कुछ वस्तुएं ले कर, अपने डेरे में छिपा दीं (पद २१). उसे और उसके परिवार को इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी (पद २५)।

परमेश्वर द्वारा दिया गया यह घोर दंड हमें सहमा सकता है। धन्यावाद की बात है कि परमेश्वर हमसे ऐसा व्यवहार नहीं करता, यदि उसने ऐसा किया होता तो हम में से कोई भी जीवित नहीं बचता। तौभी हमें पाप की भयानक घातकता को हलका करके नहीं आंकना चाहिये - हमारे पाप के कारण ही मसीह यीशु को क्रूस पर बलि होना पड़ा।

जैसे SARS को काबू करने के लिये, वैसे ही पाप को काबू करने के लिये भी, पहली आवश्यक्ता है उसकी वास्तविक्ता और कारण को पहिचानना और फिर उसके सही उपचार का पालन करना। परमेश्वर से, पाप के प्रतिफल मृत्यु के स्थान पर मसीह यीशु में अनन्त जीवन के दान को कृतज्ञता से स्वीकार करें। फिर "...अपने उन अंगो को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्‍कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्ति पूजा के बराबर है। इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न मानने वालों पर पड़ता है" (कुलुसियों ३:५,६)। यही तरीका है संसार के सबसे घातक रोग को काबू करने का। - सी. पी. हिया


पाप एक ऐसा रोग है जिसका उपचार केवल सृष्टि का सबसे बड़ा चिकित्सक - परमेश्वर ही कर सकता है।

परन्तु वह [यीशु] हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया, हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं। - याशायाह ५३:५

बाइबल पाठ: यहोशु ७:१, १९-२६
परन्तु इस्राएलियों ने अर्पण की वस्तु के विषय में विश्वासघात किया, अर्थात्‌ यहूदा के गोत्र का आकान, जो जेरहवंशी जब्दी का पोता और कर्म्मी का पुत्र था, उस ने अर्पण की वस्तुओं में से कुछ ले लिया, इस कारण यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़क उठा।
तब यहोशू आकान से कहने लगा, हे मेरे बेटे, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का आदर कर, और उसके आगे अंगीकार कर, और जो कुछ तू ने किया है वह मुझ को बता दे, और मुझ से कुछ मत छिपा।
और आकान ने यहोशू को उत्तर दिया, कि सचमुच मैं ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, और इस प्रकार मैं ने किया है,
कि जब मुझे लूट में शिनार देश का एक सुन्दर ओढ़ना, और दो सौ शेकेल चांदी, और पचास शेकेल सोने की एक ईट देख पड़ी, तब मैं ने उनका लालच करके उन्हें रख लिया, वे मेरे डेरे के भीतर भूमि में गड़े हैं, और सब के नीचे चांदी है।
तब यहोशू ने दूत भेजे, और वे उस डेरे में दौड़े गए और क्या देखा, कि वे वस्तुएं उसके डेरे में गड़ी हैं, और सब के नीचे चांदी है।
उन को उन्हों ने डेरे में से निकाल कर यहोशू और सब इस्राएलियों के पास लाकर यहोवा के साम्हने रख दिया।
तब सब इस्राएलियों समेत यहोशू जेरहवंशी आकान को, और उस चांदी और ओढ़ने और सोने की ईंट को, और उसके बेटे-बेटियों को, और उसके बैलों, गदहों और भेड़-बकरियों को, और उसके डेरे को, निदान जो कुछ उसका था उन सब को आकोर नाम तराई में ले गया।
तब यहोशू ने उस से कहा, तू ने हमें क्यों कष्ट दिया है? आज के दिन यहोवा तुझी को कष्ट देगा। तब सब इस्राएलियों ने उसको पत्थरवाह किया, और उनको आग में डालकर जलाया, और उनके ऊपर पत्थर डाल दिए।
और उन्होंने उसके ऊपर पत्थरों का बड़ा ढेर लगा दिया जो आज तक बना है। तब यहोवा का भड़का हुआ कोप शान्त हो गया। इस कारण उस स्थान का नाम आज तक आकोर तराई पड़ा है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ८९, ९०
  • रोमियों १४

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

नियमों का प्रेम

लेखन कला सिखाते समय मैं अपने विद्यार्थियों को समझाता हूं कि छोटे और संक्षिप्त वाक्यों का प्रयोग ज़्यादा अच्छा होता है जैसे "कला और लेखन" अथवा "जीवन, स्वतन्त्रता और आनन्द की खोज" आदि। अपनी जीविका के इस कार्य के आरंभिक दिनों में, उन के लेखों की समीक्षा करते समय मुझे लेखकों को समझाना और मनना पड़ता था कि बस ऐसा करना अच्छा होता है; कुछ समय बाद मुझे इस बारे में एक "नियम" मिल गया। मैंने पाया कि मेरा कहना कि "इस बारे में बस मेरा विश्वास करो" की अपेक्षा, अब इस "नियम" के आधार पर मेरा उन लेखकों के लेखों की समीक्षा एवं सम्पादन करना उनको सहजता से ग्रहण योग्य होता था।

यह मानव स्वभाव का एक भाग है। नियमों के साथ हमारा एक प्रेम/बैर का संबंध है। हमें नियम पसन्द नहीं लेकिन नियमों के बिना हम सही-गलत की पहचान करने और मानने के लिये भी असमंजस में रहते हैं।

परमेश्वर का, हमारे आदी पूर्वज, आदम और हव्वा से संबंध प्रेम पूर्ण विश्वास पर आधारित था। उन्हें केवल एक ही नियम दिया गया था जो उन्हें ऐसे ज्ञान से बचाने के लिये था जिसका अन्त मृत्यु था। लेकिन जब अनाज्ञाकारिता के कारण विश्वास का यह संबंध टूट गया तो उस भटके हुए दम्पति और उनकी आने वाली सन्तान की सुरक्षा के लिये, परमेश्वर ने और कई नियम दिये।

प्रभु यीशु मसीह में एक बार फिर परमेश्वर ने प्रगट किया कि जो उत्तम जीवन वह हमारे लिये चाहता है वह नियमों पर नहीं वरन उसके साथ बने संबंध पर आधारित है। जैसा पौलुस ने लिखा, परमेश्वर के सारे नियमों का सार एक शब्द - प्रेम, में निहित है। क्योंकि हम मसीह - जो प्रेम का प्रतिरूप है, "में हैं" इसलिये हम परमेश्वर और मनुष्य, दोनों के साथ शांति और मेल मिलाप का आनन्द ले सकते हैं - किसी नियम के कारण नहीं, परन्तु प्रेम में होने के कारण। - जूली एकरमैन लिंक


संसार की सबसे शक्तिशाली सामर्थ किसी नियम की मजबूरी नहीं वरन प्रेम की अनुकम्पा है।

प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिये प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है। - रोमियों १३:१०

बाइबल पाठ: रोमियों १३:१-१०
हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे, क्‍योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।
इस से जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है, और साम्हना करने वाले दण्‍ड पाएंगे।
क्‍योंकि हाकिम अच्‍छे काम के नहीं, परन्‍तु बुरे काम के लिये डर का कारण हैं, सो यदि तू हाकिम से निडर रहना चाहता है, तो अच्‍छा काम कर और उस की ओर से तेरी सराहना होगी।
क्‍योंकि वह तेरी भलाई के लिये परमेश्वर का सेवक है। परन्‍तु यदि तू बुराई करे, तो डर, क्‍योकि वह तलवार व्यर्थ लिये हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करने वाले को दण्‍ड दे।
इसलिये आधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्‍तु डर से अवश्य है, वरन विवेक भी यही गवाही देता है।
इसलिये कर भी दो, क्‍योंकि वे परमेश्वर के सेवक हैं, और सदा इसी काम में लगे रहते हैं।
इसलिये हर एक का हक चुकाया करो, जिस कर चाहिए, उसे कर दो, जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो, जिस से डरना चाहिए, उस से डरो, जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।।
आपस के प्रेम को छोड़ और किसी बात में किसी के कर्जदार न हो, क्‍योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है।
क्‍योंकि यह कि व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, लालच न करना, और इन को छोड़ और कोई भी आज्ञा हो तो सब का सारांश इस बात में पाया जाता है, कि अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता, इसलिये प्रेम रखना व्यवस्था को पूरा करना है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ८७, ८८
  • रोमियों १३

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

वह पर्याप्त है

कभी कभी हम जीवन की कुछ बातों से हताश और उदास हो जाते हैं, जैसे, किसी न किसी कारण चढ़ते रहने वाल कर्ज़, निराशाएं, बीमारीयां, लोगों से मनमुटाव आदि। ऐसा प्रभु यीशु के चेलों के साथ हुआ और मेरे साथ भी हुआ।

ऐसे में, इन परिस्थितियों पर जयवन्त होने के लिये, प्रभु यीशु विभिन्न तरीकों से हमें आश्वासन देता है। मत्ती रचित सुसमाचार के चौथे अध्याय में तीन बार प्रभु यीशु शैतान द्वारा उसपर लाई गई परीक्षाओं पर यह कह कर विजयी हुआ, (परमेश्वर के वचन के संदर्भ में) कि "लिखा है..." (पद ४, ७, १०)। प्रभु यीशु ने इस प्रकार हमें प्रमाण दिया कि परमेश्वर का वचन खरा है और हर प्रकार की परीक्षा पर जयवन्त करने में सक्षम है।

गरजते तूफान और उफनते समुद्र को शांत करके (मत्ती १४:२७) प्रभु यीशु ने भयभीत चेलों को दिखाया कि उसकी उपस्थिति उन पर आने वाले परेशानी के हर तूफान को रोकने के लिये काफी है।

क्रूस पर से यह कह कर कि "पूरा हुआ" (यूहन्ना १९:३०) प्रभु यीशु ने आशव्स्त किया कि उसकी मृत्यु हमारे पापों की कीमत चुका कर हमें पाप की गुलामी से आज़ाद करने के लिये पर्याप्त है।

हमारी कोई भी परिस्थिति हो, प्रभु यीशु अपने प्रेम, अनुकंपा और अनुग्रह के साथ, सर्वदा हमारे साथ बना रहता है। जीवन की हर परिस्थिति के पार ले जाने के लिये, हमारे साथ सदा बनी रहने वाली उसकी उपस्थिति पर्याप्त है। - डेव एगनर


परमेश्वर का प्रेम हमें परीक्षाओं में पड़ने से नहीं बचाता, वरन उन में से जयवन्त होकर निकलने में हमारी सहायता करता है।

बाइबल पाठ: मत्ती १४:२२-३३
और उस ने तुरन्‍त अपने चेलों को बरबस नाव पर चढ़ाया, कि वे उस से पहिले पार चले जाएं, जब तक कि वह लोगों को विदा करे।
वह लोगों को विदा कर के, प्रार्थना करने को अलग पहाड़ पर चढ़ गया, और सांझ को वहां अकेला था।
उस समय नाव झील के बीच लहरों से डगमगा रही थी, क्‍योंकि हवा साम्हने की थी।
और वह रात के चौथे पहर झील पर चलते हुए उन के पास आया।
चेले उस को झील पर चलते हुए देखकर घबरा गए! और कहने लगे, वह भूत है; और डर के मारे चिल्ला उठे।
यीशु ने तुरन्‍त उन से बातें की, और कहा, ढाढ़स बान्‍धो, मैं हूं; डरो मत।
पतरस ने उस को उत्तर दिया, हे प्रभु, यदि तू ही है, तो मुझे अपने पास पानी पर चल कर आने की आज्ञा दे।
उस ने कहा, आ: तब पतरस नाव पर से उतरकर यीशु के पास जाने को पानी पर चलने लगा।
पर हवा को देखकर डर गया, और जब डूबने लगा, तो चिल्लाकर कहा हे प्रभु, मुझे बचा।
यीशु ने तुरन्‍त हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया, और उस से कहा, हे अल्प-विश्वासी, तू ने क्‍यों सन्‍देह किया?
जब वे नाव पर चढ़ गए, तो हवा थम गई।
इस पर जो नाव पर थे, उन्‍होंने उसे दण्‍डवत कर के कहा, सचमुच तू परमेश्वर का पुत्र है।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ८४-८६
  • रोमियों १२

बुधवार, 11 अगस्त 2010

चिंता या परमेश्वर

क्या आप अपने खर्चों, भविष्य, स्वास्थ्य, कर्ज़, पारिवारिक जीवन आदि बातों के कारण सदा चिंतित रहते हैं? क्या कोई न कोई चिंता आप पर सदा हावी रहती है? यदि ऐसा है तो संभवतः आपको चिंता करने का मानसिक रोग है। इस रोग का रोगी लगातार, जीवन की लगभग हर बात के लिये, चिंता करता रहता है। थोड़ी सी चिंता करना तो स्वभाविक है, परन्तु हर बात के लिये लगातार अनियंत्रित चिंता करते रहना असामान्य और अस्वभाविक है।

क्लेश और उत्पीड़न से प्रताड़ित प्रथम शताब्दी के मसीही विश्वासी यरुशलेम से खदेड़े जकर सारे एशिया में फैल गए (१ पतरस १:१-७)। प्रभु यीशु के इन अनुयायीयों में से कई, जीवन के खतरे और इधर उधर भटकने के कारण चिंतित थे। पतरस ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे स्व्यं चिंता न करें, वरन अपनी सारी चिंता परमेश्वर पर डाल दें (१ पतरस ५:७)। उसने उन्हें समझाया कि उनका अपनी चिंताओं का बोझ उठाकर चलना व्यर्थ है जबकि वे अपनी सारी चिंता परमेश्वर पर छोड़ सकते हैं, जो उनके साथ घटित होने वाली हर बात का ध्यान रखता है।

क्या आप को चिंता करने की आदत है? अपनी चिंताएं परमेश्वर को उठाने दीजिए। चिंता करना छोड़िये, परमेश्वर पर विश्वास करना आरंभ कीजीए। - मारविन विलियम्स


हम चिंताओं का बोझ उठाएं, परमेश्वर की कभी ऐसी मन्सा नहीं रही।

और अपनी सारी चिन्‍ता उसी पर डाल दो, क्‍योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है। - १ पतरस ५:७


बाइबल पाठ: १ पतरस ५:६-११

इसलिये परमेश्वर के बलवन्‍त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए।
और अपनी सारी चिन्‍ता उसी पर डाल दो, क्‍योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।
सचेत हो, और जागते रहो, क्‍योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जने वाले सिंह की नाईं इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए।
विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जान कर उसका साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।
अब परमेश्वर जो सारे अनुग्रह का दाता है, जिस ने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्‍त महिमा के लिये बुलाया, तुम्हारे थोड़ी देर तक दुख उठाने के बाद आप ही तुम्हें सिद्ध और स्थिर और बलवन्‍त करेगा।
उसी का साम्राज्य युगानुयुग रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ८१-८३
  • रोमियों ११:१९-३६

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

सुसमाचार का केन्द्र बिन्दु

भारत में कार्य करने वाले प्रसिद्ध सुसमाचार प्रचारक स्टैनली जोन्स को महात्मा गांधी से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने गांधीजी से पूछा "आपके देश में मसीही विश्वास और अधिक प्रभावकारी कैसे हो सकता है?" गांधीजी ने कुछ समय विचार कर उत्तर दिया कि इसके लिये तीन बातों की आवश्यक्ता होगी।

पहली, मसीहियों को मसीह के समान जीवन जी कर दिखाना होगा; दूसरा, मसीही विश्वास को बिना किसी मिलावाट या लालच के प्रस्तुत करना होगा; तीसरा, मसीहियों को वह प्रेम दिखाना होगा जो मसीही शिक्षा का केंद्र बिन्दु है।

ये तीन महत्वपूर्ण सुझाव संसार भर में प्रभावकारी रीति से सुसमाचार प्रचार के लिये आवश्यक हैं। परमेश्वर के प्रेम के सन्देशवाहक होने के कारण, हमें ऐसे मानवीय दर्पण बनना है, जो अपने निज जीवन को लगातार प्रभु के स्वरूप में ढलते हुए, बिना किसी बिगाड़ के, प्रतिबिंबित करते हैं। ना ही हमें कुटिलता के साथ जीवन व्यतीत करना है (२ कुरिन्थियों ४:२)। यदि हमारे जीवन प्रभु का एक धुंधला आत्मिक स्वरूप प्रतिबिंबित करेंगे तो अनुग्रह से मिले उद्धार का सत्य स्पष्ट रूप से प्रतिपादित नहीं हो सकेगा (पद ३-५)। हमें अपने विश्वास की प्रमुख बातों को सफाई से, बाइबल द्वारा बताना है। हमें परमेश्वर के वचन को खराई से प्रयोग करना है, किसी मिलावट के साथ नहीं (पद २)। साथ ही, हमारे जीवन परमेश्वर और दूसरों के प्रति प्रेम का चित्रण होने चाहियें (१ युहन्ना ५:१, २)।

हम यह सुनिश्चित करें कि क्या हम मसीह के स्वरूप और परमेश्वर के प्रेम का सत्य अपने जीवनों द्वारा साफ साफ प्रतिबिंबित करते हैं? - वेर्नन ग्राउंड्स


विश्वासी के लिये संसार में जीने का मुख्य उद्देश्य मसीह की समानता को दिखाना है।

परन्‍तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं। - २ कुरिन्थियों ३:१८


बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ४:१-६

इसलिये जब हम पर ऐसी दया हुई, कि हमें यह सेवा मिली, तो हम हियाव नहीं छोड़ते।
परन्‍तु हम ने लज्ज़ा के गुप्‍त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परन्‍तु सत्य को प्रगट करके, परमेश्वर के साम्हने हर एक मनुष्य के विवेक में अपनी भलाई बैठाते हैं।
परन्‍तु यदि हमारे सुसमाचार पर परदा पड़ा है, तो यह नाश होने वालों ही के लिये पड़ा है।
और उन अविश्वासियों के लिये, जिन की बुद्धि को इस संसार के ईश्वर ने अन्‍धी कर दी है, ताकि मसीह जो परमेश्वर का प्रतिरूप है, उसके तेजोमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमके।
क्‍योंकि हम अपने को नहीं, परन्‍तु मसीह यीशु को प्रचार करते हैं, कि वह प्रभु है, और उसके विषय में यह कहते हैं, कि हम यीशु के कारण तुम्हारे सेवक हैं।
इसलिये कि परमेश्वर ही है, जिस ने कहा, कि अन्‍धकार में से ज्योति चमके, और वही हमारे हृदयों में चमका, कि परमेश्वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७९, ८०
  • रोमियों ११:१-१८

सोमवार, 9 अगस्त 2010

हां, परन्तु...

विश्वविद्यालय के छात्रों के परीक्षा पत्र जांचते समय कई बार अचंभित करने वाली बातें लिखी मिलती हैं। कभी अनपेक्षित रूप से कोई छात्र बड़ी अच्छी तरह से विष्य को समझने का प्रमाण देता है और उसके उत्तर की लेखन शैली भी अच्छी होती है, और तब लगता है कि मेरा पढ़ाना सफल हुआ।

किन्तु कुछ अन्य अचंभे की बातें ऐसे प्रसन्न करने वाली नहीं होतीं। जैसे, एक छात्र ने लिखा, "बाइबल कहती है, ’तू ....मत करना।’" उसने रिक्त स्थान में वह कार्य लिखा जिसमें वह संलग्न था, यद्यपि पवित्र शास्त्र में ऐसा कोई पद नहीं है। उसका पर्चा पढ़ते समय, आरंभ में मुझे लगा कि वह पवित्र शास्त्र भली भांति नहीं जानता है, जब तक मैं उसके निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा। उसके द्वारा लिखे अन्तिम वाक्य, "यद्यपि बाइबल इस को गलत कहती है, परन्तु मैं ऐसा नहीं समझता, मैं तो उसे ठीक मानता हूं" ने उसकी वास्तविक्ता स्पष्ट करी।

किसी भी व्यक्ति का यह समझना कि वह किसी भी विष्य के बारे में परमेश्वर से अधिक या बेहतर जानता है, उसमें विद्यमान बहुत खतरनाक अहंकार का सूचक है। पवित्र शास्त्र ने भविष्य में ऐसी विचारधारा लोगों में पनपने की भविष्यद्वाणी पहले से ही कर रखी है। पौलुस ने २ तिमिथियुस ४:३, ४ में चिताया "क्‍योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और वे अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।" यह बात ऐसे लोगों के सन्दर्भ में लिखी गई है जो पवित्र शास्त्र की खरी शिक्षा नहीं अपितु अपनी दृष्टि में सही और अपनी पसन्द के अनुसार शिक्षाएं चाहते हैं, और नहीं मानते कि संपूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचित है (२ तिमिथियुस ३:१६)।

जब बाइबल किसी बात अथवा सिद्धान्त को स्पष्ट दिखा देती है, तो उसका पालन करके हम परमेश्वर का आदर करते हैं। विश्वासियों के लिये "हां, परन्तु..." जैसे प्रत्युत्तर का कोई स्थान नहीं है। - डेव ब्रैनन


बाइबल को पढ़िये, उसपर विश्वास कीजिये और उसका पालन कीजिये।

और वे अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे। - २ तिमिथियुस ४:४


बाइबल पाठ: २ तिमिथियुस ४:१-८

परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, उसे और उसके प्रगट होने, और राज्य को सुधि दिलाकर मैं तुझे चिताता हूं।
कि तू वचन को प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना दे, और डांट, और समझा।
क्‍योंकि ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे।
और वे अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे।
पर तू सब बातों में सावधान रह, दुख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर और अपनी सेवा को पूरा कर।
क्‍योंकि अब मैं अर्घ की नाईं उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है।
मैं अच्‍छी कुश्‍ती लड़ चुका हूं मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है।
भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७७, ७८
  • रोमियों १०

रविवार, 8 अगस्त 2010

ग्रैनविल शार्प

ग्रैनविल शार्प (सन १७३५-१८१३) युनानी भाषा का एक प्रख्यात विद्वान था। जब मैं बाइबल कॉलेज में पढ़ता था तो युननी भाषा की कक्षा में उसका नाम भी लिया जाता था। युनानी भाषा के उसके अध्ययन द्वारा ही उन सिध्दांतों का प्रतिपादन हुआ जिनके आधार पर नए नियम का उसकी मूल युनानी भाषा से अनुवाद और व्याख्या संभव हो सकी।

पवित्र शास्त्र को पढ़ना और उसके सामर्थी सत्यों को जानना श्रेष्ठ कार्य है, लेकिन हम चाहे जितनी भी गहराई से उसे पढ़ लें, केवल उसे पढ़ना ही काफी नहीं होता है। याकूब ने इस बात को समझने की चुनौती दी जब उसने लिखा: "परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। क्‍योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्‍वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है। इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्‍त भूल जाता है कि मैं कैसा था" (याकूब १:२२-२४)।

ग्रैनविल शार्प ने इस बात को समझा और अपने विश्वास को व्यावाहरिक रूप दिया। वह न केवल बाइबल का विद्वान था वरन इंगलैंड में दास प्रथा के विरुद्ध सन्घर्ष करने वाला भी बना। उसने कहा, "दास प्रथा का समर्थन करना अमानवीय व्यवहार का समर्थन करना है।" बाइबल से उसे प्राप्त हुए मानवीय आत्मा की कीमत के बोध और पवित्र परमेश्वर के न्याय की समझ ने उसे अपने विश्वास को कार्यन्वित करने पर बाध्य किया।

वचन की ज्ञान के प्रति शार्प के जोश और उसके सत्य का पालन करने की उसकी कटिबद्धता से हमें शिक्षा लेनी चाहिये। - बिल क्राउडर


यदि हम बाइबल के वचनों का पालन नहीं करते तो हम बाइबल को जानते ही नहीं।

परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। - याकूब १:२२


बाइबल पाठ: याकूब १:१९-२७

हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्‍पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।
क्‍योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है।
इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो ह्रृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
परन्‍तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।
क्‍योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्‍वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है।
इसलिये कि वह अपने आप को देखकर चला जाता, और तुरन्‍त भूल जाता है कि मैं कैसा था।
पर जो व्यक्ति स्‍वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपके काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुन कर नहीं, पर वैसा ही काम करता है।
यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे, पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है।
हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों ओर विधवाओं के क्‍लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्‍कलंक रखें।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७४-७६
  • रोमियों ९:१६-३३

शनिवार, 7 अगस्त 2010

अनुसरण

जब मैं कॉलेज में था तो मेरा सहकर्मी बड अपनी तीक्षण बुद्धिमता की बातों द्वारा अकसर मेरे जीवन को नई रौशनी से रौशन करता रहता था। एक दिन हम एक साथ बैठे भोजन कर रहे थे और मैंने बड से कहा कि मैं एक दूसरे कॉलेज में दाखिला ले रहा हूँ।

उसने पूछा, "क्यों?"

मैंने उत्तर दिया, "क्योंकि मेरे सारे दोस्त ऐसा ही कर रहे हैं।"

वह कुछ देर अपने भोजन को चबाता रहा, फिर दबी आवाज़ में व्यंग्य के साथ बोला, "शायद कॉलेज चुनने का यही सही तरीका है।"

उसके शब्द मेरे मन में गड़ गए। मैंने सोचा, " हो सकता है, लेकिन क्या कॉलेज चुनने का यही एक तरीका है? क्या मैं अपनी सारी उम्र अपने मित्रों का अनुसरण करता रहूंगा, या मसीह यीशु का अनुसरण करूंगा? क्या मैं प्रभु यीशु के दर्शन और उसकी इच्छा का खोजी होकर वहां जाऊंगा जहां वह मुझे भेजना चाहता है?"

नए नियम में प्रभु यीशु ने पच्चीस बार अपने चेलों से कहा कि वे उसका अनुसरण करें। मरकुस ८:३४ में यीशु ने कहा, "...जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आपे से इन्‍कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले।" और लोग चाहे जो भी करें, या उनके जीवन चाहे किसी भी दिशा में जाएं, हमें वही करना है जो प्रभु हम से करने को कहता है।

इस संदर्भ में एक पुराने गीत की पंक्ति स्मरण आती है, "मेरा प्रभु जंगल से होकर निकलने का मार्ग जानता है; मुझे केवल उसका अनुसरण करना है।" - डेविड रोपर


जीवन में सही मार्ग पाने के लिये, प्रभु यीशु का अनुसरण करें।

यदि कोई मेरी सेवा करना चाहे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहां मैं हूं वहां मेरा सेवक भी होगा। - यूहन्ना १२:२६


बाइबल पाठ: मरकुस ८:३४-३८

उस ने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाकर उन से कहा, जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आपे से इन्‍कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले।
क्‍योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा।
यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे और अपके प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्‍या लाभ होगा?
और मनुष्य अपके प्राण के बदले क्‍या देगा?
जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७२, ७३
  • रोमियों ९:१-१५

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

सही मार्ग सुझाना

एक नई वैबसाईट आपकी सहायता करती है कि आप अपने किसी सहकर्मी तक वह सन्देश पहुंचा सकें जो आप व्यक्तिगत तौर पर उससे कहने में घबराते हैं, जैसे "मुंह स्वच्छ रखने वाली गोली का प्रयोग तुम्हारे लिये लाभकारी होगा", या "तुम्हारे मोबाइल फोन की आवाज़ बहुत उंची है", या "तुम सदा बहुत तेज़ इत्र प्रयोग करते हो" आदि। आप इन और ऐसे अन्य मुद्दों का सामना बेनाम होकर कर स्कते हैं क्योंकि वह वैबसाईट आपके लिये आपके सहकर्मी को आपका सन्देश एक बेनाम ई-मेल द्वारा भेज देगी।

दूसरों को उनकी वह बातें बताने में संकोच करना, जिनसे हमें परेशानी होती है, स्वभाविक बात है। परन्तु जब बात आती है सहविश्वासियों से उनके जीवन में पाये जाने वाले पाप के विष्य में बात करने की, तो यह और भी गंभीर बात हो जाती है। चाहे हम कितना ही चाहें कि यह बात हम बेनाम होकर कर सकें, किंतु यह हमें प्रत्यक्ष ही करना है। ऐसा करने के लिये गलतियों ६:१-५ कुछ सुझाव देता है। दूसरों से उनके पाप के बारे में बात करने के लिये, सबसे पहली और अनिवार्य बात है कि हम स्वयं परमेश्वर के निकट हों, तथा उस दूसरे से जो पाप में है, हम अपने आप को श्रेष्ठ जता के अपनी बड़ाई न करें। फिर हमें उस परिस्थिति को इस तरह आंकना है कि हम किसी पर दोष लगा कर उसे नीचा दिखाने वाले नहीं वरन उसे सहारा देकर सुधार तक लाने वाले बनें। नम्रता का आत्मा हम में सदा बना रहना है, इस भय में कि कभी हम भी ऐसी ही किसी परीक्षा में गिर सकते हैं।

प्रभु यीशु ने भी पापों के प्रति व्यक्तिगत व्यवहार के लिये कुछ निर्देश दिये - मत्ती ७:१-५, १८:१५-२०।

परमेश्वर की सामर्थ द्वारा हम हिम्मत और सहनुभूति सहित दूसरों को उनके पापों का सामना करवा सकते हैं और उन्हें पुनः परमेश्वर के निकट ला सकते हैं। - ऐने सेटास

लोगों को वापस सही मार्ग पर लाने के लिये पहले उनके साथ चलिये और तब मार्गदर्शन कीजिए।


तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो। - गलतियों ६:२


बाइबल पाठ: गलतियों ६:१-५

हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।
तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो।
क्‍योंकि यदि कोई कुछ न होने पर भी अपने आप को कुछ समझता है, तो अपने आप को धोखा देता है।
पर हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्‍तु अपने ही विषय में उसको घमण्‍ड करने का अवसर होगा।
क्‍योंकि हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ७०, ७१
  • रोमियों ८:२२-३९

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

मन की बात

एक आध्यत्मिक सभा के आरंभ में हमारे वक्ता ने प्रश्न पूछा, "आपका मन कैसा है?" मैं इस प्रश्न से अवाक रह गया क्योंकि मैं अपनी बुद्धि से विश्वास और हाथों से काम करने पर केंद्रित रहता हूँ। सोचने और करने के बीच मेरा मन एक किनारे रह जाता है। सभा के दौरान वह वक्ता हमें बाइबल से दिखाता गया कि कैसे बाइबल हमारे जीवन के इस केंद्र - हमारे मन पर बार बार ज़ोर देती है; और मैं उस वक्ता की प्रस्तावना को समझने पाया कि विश्वास और सेवा, किसी भी अन्य बात से बढ़कर, अन्ततः मन ही की बात है।

जब प्रभु यीशु ने एक दृष्टांत द्वारा समझाया कि लोग कैसे उसकी शिक्षाओं को ग्रहण करते और उनके प्रति अपनी प्रतिक्रीया करते हैं (मत्ती १३:१-९) तो उसके चेलों ने उससे पूछा (पद १०), की "तू उन से दृष्‍टान्‍तों में क्‍यों बातें करता है?" उत्तर में प्रभु यीशु ने यशायाह भविष्यद्वक्ता को उद्वत किया, "क्‍योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्‍हों ने अपनी आंखें मूंद लीं हैं, कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों, से देखें, और कानों, से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्‍हें चंगा करूं" (पद १५, यशायाह ६:१०)।

अपने मन को नज़र अंदाज़ करना कितना आसान और खतरनाक है। यदि हमारे मन कठोर हो जाएं तो जीने और सेवा करने में हम कोई आनन्द नहीं पाएंगे और जीवन नीरस और खोखला लगेगा। किंतु यदि हमारे मन परमेश्वर की ओर कोमल रहेंगे तो हम दूसरों के लिये समझ-बूझ और सहानुभूति के स्त्रोत बन जाएंगे।

तो आपका मन कैसा है? - डेविड मैक्कैसलैंड


हम भले कार्य करने में इतने व्यस्त न हो जाएं कि हमारा मन ही परमेश्वर से दूर हो जाए।

इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्‍हों ने अपनी आंखें मूंद लीं हैं - मत्ती १३:१५


बाइबल पाठ: मत्ती १३:१०-१५

और चेलों ने पास आकर उस से कहा, तू उन से दृष्‍टान्‍तों में क्‍यों बातें करता है?
उस ने उत्तर दिया, कि तुम को स्‍वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उन को नहीं।
क्‍योंकि जिस के पास है, उसे दिया जाएगा, और उसके पास बहुत हो जाएगा; पर जिस के पास कुछ नहीं है, उस से जो कुछ उसके पास है, वह भी ले लिया जाएगा।
मैं उन से दृष्‍टान्‍तों में इसलिये बातें करता हूं, कि वे देखते हुए नहीं देखते, और सुनते हुए नहीं सुनते, और नहीं समझते।
और उन के विषय में यशायाह की यह भविष्यद्ववाणी पूरी होती है, कि तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं, और आंखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा।
क्‍योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्‍हों ने अपनी आंखें मूंद लीं हैं, कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्‍हें चंगा करूं।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६८, ६९
  • रोमियों ८:१-२१

बुधवार, 4 अगस्त 2010

हमारा नैतिक कुतुबनुमा

जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति एब्राहम लिंकन का परिचय लेखिका हैरियट बीचर स्टोव से करवाया गया तो कहा जाता है कि उन्हों ने उन से कहा कि "आप ही वह छोटी सी नारी हैं जिनकी लिखी पुस्तक के कारण यह बड़ा युध्द आरंभ हुआ।"

यद्यपि राष्ट्रपति लिंकन की यह टिपण्णी पूर्ण्तया गंभीरता सहित नहीं वरन कुछ विनोद के भाव से कही गई थी, किंतु यह सत्य है कि अमेरिका से दास प्रथा के अन्त कराने में स्टोव के उपन्यास ’अंकल टोम्स कैबिन’ (Uncle Tom's Cabin) का बहुत बड़ा योगदान रहा था। इस उपन्यास में दिये रंगभेद और दास प्रथा के सुचित्रित वर्णन द्वारा ही लोग इन बातों की दुखदायी वास्तविकता को पहिचान सके और इनके अन्त के लिये लड़ने को प्रोत्साहित हो सके। इसी युद्ध के अन्त में एब्राहम लिंकन द्वारा की गई स्वतंत्रता की घोषणा से सभी दास स्वतंत्र घोषित हुए। इस प्रकार स्टोव के उपन्यास ने एक राष्ट्र की नैतिक दिशा बदलने में सहायता की।

इससे सदियों पहिले, राजा सुलेमान को परमेश्वर ने बताया कि वह क्या होगा जो परमेश्वर की प्रजा इस्त्राएल की नैतिक दिशा बदलेगा - इसका आरंभ नम्रता और पापों के अंगीकार से होगा। परमेश्वर ने सुलेमान से कहा: "यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा" (२ इतिहास ७:१४)।

एक मसीही समुदाय होने के नाते हमें सबसे पहिले अपने जीवन का लेखा-जोखा लेना चाहिये। जब हम पापों के लिये पश्चाताप और प्रार्थना में नम्रता सहित परमेश्वर के निकट आते हैं, तो हमारे जीवनों में परिवर्तन आने आरंभ हो जाते हैं। तब परमेश्वर राष्ट्र की नैतिक दिशा बदलने में हमारा उपयोग कर सकता है। - डेनिस फिशर


नैतिक रीति से गलत बात कभी राजनैतिक रीति से सही नहीं हो सकती। - लिंकन

यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा।" - २ इतिहास ७:१४


बाइबल पाठ: २ इतिहास ७:१-१४

जब सुलैमान यह प्रार्थना कर चुका, तब स्वर्ग से आग ने गिरकर होमबलियों तथा और बलियों को भस्म किया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया।
और याजक यहोवा के भवन में प्रवेश न कर सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था।
और जब आग गिरी और यहोवा का तेज भवन पर छा गया, तब सब इस्राएली देखते रहे, और फर्श पर झुककर अपना अपना मुंह भूमि की ओर किए हुए दणडवत किया, और यों कहकर यहोवा का धन्यवाद किया कि, वह भला है, उसकी करुणा सदा की है।
तब सब प्रजा समेत राजा ने यहोवा को बलि चढ़ाई।
और राजा सुलैमान ने बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ -बकरियां चढ़ाई। यों पूरी प्रजा समेत राजा ने यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
और याजक अपना अपना कार्य करने को खड़े रहे, और लेवीय भी यहोवा के गीत के गाने के लिये बाजे लिये हूए खड़े थे, जिन्हें दाऊद राजा ने यहोवा की सदा की करुणा के कारण उसका धन्यवाद करने को बनाकर उनके द्वारा स्तुति कराई थी और इनके साम्हने याजक लोग तुरहियां बजाते रहे और सब इस्राएली खड़े रहे।
फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के साम्हने आंगन के बीच एक स्थान पवित्र करके होमबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई, क्योंकि सुलैमान की बनाई हुई पीतल की वेदी होमबलि और अन्नबलि और चर्बी के लिये छोटी थी।
उसी समय सुलैमान ने और उसके संग हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सारे इस्राएल की एक बहुत बड़ी सभा ने सात दिन तक पर्व को माना।
और आठवें दिन को उन्होंने महासभा की, उन्होंने वेदी की प्रतिष्ठा सात दिन की और पर्वों को भी सात दिन माना।
निदान सातवें महीने के तेइसवें दिन को उस ने प्रजा के लोगों को विदा किया, कि वे अपने अपने डेरे को जाएं, और वे उस भलाई के कारण जो यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और अपनी प्रजा इस्राएल पर की थी आनन्दित थे।
यों सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपने भवन में जो कुछ उस ने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरथ पूरा हुआ।
तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन देकर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी और इस स्थान को यज्ञ के भवन के लिये अपनाया है।
यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियों को देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपनी प्रजा में मरी फैलाऊं,
तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्थना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६६, ६७
  • रोमियों ७

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

प्रसन्न रहना

बच्पन में मेरी एक प्रीय पुस्तक थी ’पोलियन्ना’ (Pollyanna)। यह एक आशावादी लड़की की कहानी थी जो हर परिस्थिति में, चाहे वह बुरी ही क्यों न हो, प्रसन्न रहने की कोई न कोई बात ढूंढ लेती थी।

हाल ही में मुझे उस लड़की पोलियन्ना की कहानी याद आई जब मेरी एक सहेली, मेरिएन, साइकल चलते हुए दुर्घटनाग्रस्त हुई और उसकी बांह टूट गई। जब उससे मेरी बात हुई तो मेरीएन ने मुझे बताया कि वह कितनी धन्यावादी थी कि टूटी बांह के बावजूद वह घर तक साइकल चला के आ सकी। वह बहुत आभारी थी कि उसे अपनी टूटी बांह को ठीक कराने के लिये किसी ऑपरेशन के आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। उसे प्रसन्न्ता थी कि क्योंकि उसकी बांयी बाज़ू टूटी थी और वह दाहिने हाथ से काम करती थी, इसलिये वह अभी भी अपने काम को कर सकेगी। उसे हर्ष और अचंभा था कि उसकी हड्डियां इतनी मज़बूत थीं जिससे उसकी बांह जब जुड़ेगी तो उसमें पूरी ताकत होगी, और यह कितना अद्भुत था कि दुर्घटना के कारण कोई और गंभीर चोट नहीं आई।

वाह मेरिएन! मेरिएन उदाहरण है ऐसे व्यक्तित्व का जिसने परेशानियों में भी आनन्दित रहना सीख लिया है। उसे पूरा विश्वास है कि चाहे जो हो जाए, परमेश्वर उसकी सदा देखभाल करता है और करता रहेगा।

दुख कभी न कभी सब पर आते हैं, और अधिकतर लोगों के लिये दुखों में आभारी होना उनकी प्रथम प्रतिक्रीया नहीं होती। परन्तु परमेश्वर हमसे प्रसन्न होता है जब हम हर परिस्थिति में उसके प्रति धन्यवादी होने के कारण ढूंढते हैं (१ थिसलूनिकियों ५:१६-१८)। यदि हम सच्चे मन से खराब परिस्थितियों में भी भलाई ढूंढते हैं, तो हम आभारी रह सकते हैं कि परमेश्वर हमें संभाले हुए है। जब हम उसकी भलाई में विश्वास रखते हैं तब ही हम हर परिस्थिति में प्रसन्न रह सकते हैं। - सिंडी हैस कैस्पर


धन्यावादी मन हर परिस्थिति में कुछ भलाई ढूंढ लेता है।

आज का दिन जो यहोवा ने बनाया है, हम इस में मगन और आनन्दित हों। - भजन ११८:२४


बाइबल पाठ: भजन ३०

हे यहोवा मैं तुझे सराहूंगा, क्योंकि तू ने मुझे खींचकर निकाला है, और मेरे शत्रुओं को मुझ पर आनन्द करने नहीं दिया।
हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी और तू ने मुझे चंगा किया है।
हे यहोवा, तू ने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, तू ने मुझ को जीवित रखा और कब्र में पड़ने से बचाया है।।
हे यहोवा के भक्तों, उसका भजन गाओ, और जिस पवित्र नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो।
क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है, परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है। कदाचित् रात को रोना पड़े, परन्तु सवेरे आनन्द पहुंचेगा।।
मैं ने तो चैन के समय कहा था, कि मैं कभी नहीं टलने का।
हे यहोवा अपनी प्रसन्नता से तू ने मेरे पहाड़ को दृढ़ और स्थिर किया था, जब तू ने अपना मुख फेर लिया तब मैं घबरा गया।।
हे यहोवा मैं ने तुझी को पुकारा और यहोवा से गिड़गिड़ाकर यह बिनती की, कि
जब मैं कब्र में चला जाऊंगा तब मेरे लोहू से क्या लाभ होगा? क्या मिट्टी तेरा धन्यवाद कर सकती है? क्या वह तेरी सच्चाई का प्रचार कर सकती है?
हे यहोवा, सुन, मुझ पर अनुग्रह कर, हे यहोवा, तू मेरा सहायक हो।।
तू ने मेरे लिये विलाप को नृत्य में बदल डाला, तू ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बान्धा है;
ताकि मेरी आत्मा तेरा भजन गाती रहे और कभी चुप न हो। हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ६३-६५
  • रोमियों ६